टीचर जो स्कूल की कक्षाओं में न पढ़ा पाये, नेता और बाबा गणों ने चंद बयानों में समझा दिया

Sanchita Pathak

स्कूल के दिन याद हैं?

ज़िन्दगी के बेहतरीन दिनों में से एक होते हैं हमारे स्कूल के दिन. स्कूल में रहते हुए हमें उन दिनों की अहमियत पता नहीं चलती, लेकिन बड़े होते-होते हमें ये पता चल ही जाता है कि, ‘स्कूल डेज़ आर द बेस्ट डेज़.’

स्कूल की किताबों में दुनियाभर का ज्ञान छिपा होता था. चाहे वो अंग्रेज़ी का कोई नया शब्द हो या फिर हिन्दी की कोई बेहतरीन कहानी. या फिर Geography की किताब में सिमटी दुनिया. Biology का Reproduction चैप्टर दुनिया के अनसुलझे रहस्यों में से एक था…

क्या दिन थे वो?

इन सब के बावजूद मुझे स्कूल की किताबों और अपने शिक्षकों से बहुत बड़ी शिकायतें हैं. टीचर्स ने हमें काफ़ी सारे ज्ञान से वंचित रखा या फिर यूं कहें कि पढ़ाया ही नहीं. यहां तक कि पुस्तकालय की किताबों में भी इतना झोल होगा, ये उम्मीद नहीं थी.

इस आधे-अधूरे ज्ञान को पूरा किया है हमारे यहां के कुछ नेताओं और बाबा गणों ने. किसी का कहना है कि ‘मोर-मोरनी सेक्स नहीं करते.’ तो किसी का कहना था कि ‘सिविल इंजीनियर को ही सिविल सर्विस में जाना चाहिए.’

Out of Syllabus इन ज्ञान के टुकड़ों को हमने जोड़कर बनाई है एक लिस्ट. देखो और अपनी स्कूली शिक्षा को पूरा कर लो:

अंत में एक सवाल, क्या इन सबको पढ़ाई का हिस्सा बना देना चाहिए. और अगर इन लोगों की बातें सच्ची नहीं है, तो वो समय कब आएगा जब इनकी बातों पर पूर्ण विराम लगेगा? अपनी राय कमेंट बॉक्स में ज़रूर दें.

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