Hong Kong के लोग कब्र जैसे घरों में रहने को हैं मजबूर. झकझोर देंगी Coffin Homes की ये तस्वीरें

Sanchita Pathak

अपना घर तो सभी का सपना होता है, लेकिन बहुत कम लोग हैं, जो इस सपने को पूरा कर पाते हैं. कड़ी मेहनत करने के बावजूद बहुत से लोगों को अपने सिर पर छत नसीब नहीं होती.

कुछ लोग तो ऐसे भी हैं, जो सिर पर छत होने के बावजूद ‘बाड़े के जानवरों’ की तरह ही गुज़र-बसर कर रहे हैं.

चकाचौंध वाले शहर हॉन्ग-कॉन्ग के तकरीबन 200,000 लोग अमानवीय तरह से गुज़र बसर करने पर मजबूर हैं. तस्वीरों से इनकी बेबसी साफ़ झलकती है.

फ़र्ज़ करिए, आप जिस जगह पॉटी करते हैं, उसी पॉटी सीट के पास ही खाना खा रहे हैं. घिन आ गई होगी. पर कुछ लोग ऐसे ही गुज़ारा करने पर मजबूर हैं.

Census and Statistics Department की एक रिपोर्ट के अनुसार, लाखों लोगों को 88,000 छोटे-छोटे Apartments में रहने के जगह दी गई है.

Society for Community Organisation के Exhibition में लगाई गई तस्वीरों से साफ़ तौर पर ज़ाहिर हो गया कि इस देश के लोग किस तरह से ज़िन्दगी बिता रहे हैं. इन घरों की लंबाई किसी Mattress जितनी है और नहाना और खाना एक ही जगह पर होता है.

पब्लिक हाउसिंग स्कीम का फ़ायदा न मिलने के कारण, हॉन्ग-कॉन्ग के गरीब लोग ऐसे जीने के लिए मजबूर हैं.

South China Morning Post से बात करते हुए Tony ने बताया,

‘सबसे ज़्यादा दिक्कत सांस लेने में होती है. आप खुली हवा में सांस ही नहीं ले सकते. दम घुटता है.’

हॉन्ग कॉन्ग की सरकार अपने रहवासियों के साथ जैसा व्यवहार कर रही है, इसकी जितनी निंदा की जाए, कम है. जैसे घरों में ज़िन्दा इंसान रह रहे हैं, इससे बड़े तो लोगों की कब्रें होती हैं.

इंसान की मजबूरी की तस्वीरें-

न खाने की जगह और न सांस लेने की, फिर भी जिए जा रहे हैं.

इतनी सी जगह में ही रहते हैं सैंकड़ों लोग.

मुश्किलों में भी पढ़ाई का साथ नहीं छोड़ते ये बच्चे.

बेहतर ज़िन्दगी की कोई उम्मीद ही नहीं है.

अकेलपन से ज़्यादा घुटन सताता है इन्हें.

ज़िन्दगी तूने मुझे कब्र से कम दी है ज़मीन, पांव फैलाऊं तो दीवार से सिर लगता है.

जहां खाना, वहीं पर नित्य क्रिया भी.

ज़िन्दगी में सुकून नहीं, फिर भी जिए जा रहे हैं.

15 फ़ीट में ही समा गई ज़िन्दगी

इन्हें तो हाथ-पैर फ़ैलाने की भी जगह नसीब नहीं हुई.

इंसान भी कितना मजबूर हो जाता है.

इतने ग़म में भी आराम ढूंढ लेते हैं लोग.

बेचारे, पार्टी करने के लिए भी कहीं दूर जाना पड़ता होगा.

सरकार को अपनी ही जनता की कोई परवाह नहीं.

हम बस उम्मीद कर सकते हैं कि इन लोगों की हालत में कोई सुधार आए.

Source: Daily Mail

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