ये हैं 1965 हिन्द-पाक युद्ध की वो तस्वीरें, जिनमें झलकता है दोनों देशों के सिपाहियों का साहस

Sumit Gaur

बंटवारे के बाद हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच की दूरियां मिटने के बजाय और बढ़ गई, जिसका असर हिन्द-पाक के बीच हुई लड़ाई में देखने को मिला. 1948 में लड़ाई के मैदान में एक-दूसरे के सामने आने के बाद भी 1965 में दोनों देशों का एक बार फिर युद्ध क्षेत्र में आमना-सामना हुआ. हालांकि इस लड़ाई को ले कर दोनों देश जीत के दावे करते रहते हैं, जिसकी बहस आज तक जारी है. आज हम आपके लिए इसी युद्ध की कुछ तस्वीरें ले कर आये हैं, जिन्हें देख कर आप भी 17 दिन चले इस युद्ध दोनों देश के जवानों का सम्मान करने लगेंगे, जो आज भी देश की हिफ़ाजत के लिए सरहद पर तैनात हैं.

आज़ाद कश्मीर की कमान संभाले हुए एक स्थानीय, जबकि दाईं तरफ़ BRB कैनाल पर हिंदुस्तानी फ़ौज को रोकने की कोशिश करते सिपाही.

मेजर जनरल आघा मोहम्मद याह्या खान, फील्ड मार्शल अयूब खान को निर्देश देते हुए.

हिंदुस्तान की तरफ़ बढ़ते पाकिस्तानी सेना के टैंक.

पाकिस्तान द्वारा कैद किये गए भारतीय जवान जेल में भी आपस में घुलने-मिलने का वक़्त निकल ही लेते थे.

भारतीय चेक पोस्ट पर कब्ज़ा करके जश्न मानते हुए पाकिस्तानी, जबकि दूसरी तरफ़ तिरंगे को उतार कर पाकिस्तान का झंडा लगते हुए.

छम्ब सेक्टर में घुसा पाकिस्तानी टैंक.

भारतीय टैंक्स पर कब्ज़ा जमाते हुए पाकिस्तानी सैनिक.

लोगनेवाला पोस्ट्स को अपने अधिकार क्षेत्र में लेते पाकिस्तानी.

घुटरू किले पर कब्ज़ा करने के बाद पाकिस्तानी फ़ौज ने किशनगढ़ के किले को अपने नियंत्रण में ले लिया था.

भारत के पूना हॉर्स रेजिमेंट के टैंक पर अधिकार जमा कर तस्वीर खींचते हुए सिपाही.

POK में हिंदुस्तान के ख़िलाफ़ मोर्चा संभाले हुए पाकिस्तानी सेना के जवान.

भारत के खेम करण में पाकिस्तानी जवान.

Munabao चेक पोस्ट पर अधिकार जमाने के बाद पाकिस्तानी झंडा फेहराती हुई पाकिस्तानी फ़ौज.

राजस्थान के किशनगढ़ किले पर पाकिस्तानी झंडा.

मुनाबाव रेलवे स्टेशन पर तस्वीर खिंचाता हुआ पाकिस्तानी जवान.

घायल सिपाहियों का इलाज करती ईरानी और तुर्क नर्सें, जबकि दूसरी तस्वीर में युद्ध में मारे गए मेजर अज़ीज़ भट्टी की विधवा पत्नी को सम्मानित करते हुए फ़ील्ड मार्शल अयूब खान.

मेजर अज़ीज़ भट्टी के हेलमेट और बन्दूक को उसी जगह रखा गया, जहां हिंदुस्तानी सिपाही ने उन्हें गोली मारी थी.

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