पुणे की रहने वाली दीपाली पिछले 30 सालों से गाड़ियों की ही नहीं, समाज की भी ‘मरम्मत’ कर रही हैं

Ishi Kanodiya

दुनिया आगे बढ़ रही है हम भी अपनी-अपनी सोच और रहन-सहन में बदलाव ला रहे हैं. मगर महिलाओं को आज भी अपने हक़ के लिए लड़ना पड़ता है. बार-बार ख़ुद को साबित करना पड़ता है. 

और जो लोग ये सोचते हैं कि महिलाओं को चार दीवारी के अंदर रहना चाहिए और उनको बाइक, मैकेनिक्स जैसी चीज़ों से दूर रहना चाहिए उनको दीपाली की ये कहानी ज़रूर पढ़नी चाहिए. 

जब मैं 4 साल की थी, मेरे पिता काम से रिटायर हो गए और उन्होंने अपना एक ऑटो रिपेयर गैराज शुरू किया. क्योंकि हम पास में रहते थे, मैं हर दिन उनके साथ यहां आती थी. इसलिए मैं उन्हें काम करते हुए देखती बड़ी हुई हूं. मेरे पिता बहुत खुले विचारों वाले थे. उन्होंने कभी भी मुझसे या मेरी बहन से अलग व्यवहार नहीं किया क्योंकि हम लड़कियां थीं. 
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हमें स्वतंत्र होने और नई चीजों को सीखने के लिए प्रोत्साहित किया जाता था, इसलिए बहुत कम उम्र में ही मैंने सीख लिया था कि मशीनें कैसे काम करती हैं. यहां तक कि जब मैं स्कूल जाती थी, मैं क्लास से पहले और बाद में गैराज में जाती थी. मुझे हर तरह के ऑटोमोबाइल्स पसंद थे. पहली बार जब मैंने कोई दो पहिया वाहन चलाया था मैं केवल 8 साल की थी, मेरे पैर ज़मीन तक भी नहीं पहुंच रहे थे.  मेरे दादा जी के पास एक लूना थी और हर रोज़ जब भी वो झपकी लेते थे तो मैं उसे चलाने बाहर निकल जाती थी. जब मेरे पिता जी को पता चला तो उन्होंने मुझे बताया कि सबसे पहले मुझे सावधानियों को जानना चाहिए और एक बाइक की मरम्मत भी करनी आनी चाहिए. इस तरह मैं कानूनी रूप से बाइक चलाने लायक उम्र से पहले ही एक एक्सपर्ट मैकेनिक बन चुकी थी. 
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जब मैं 10 वीं कक्षा में थी तो मेरे पिताजी के साथ काम पर एक दुघर्टना हो गई- काम करते हुए उनका हाथ बाइक की चेन में आ गया जिसकी वजह से उनकी चार उंगलियां कट गईं. उसके बाद उन्हें काम पर वापस जाने में परेशानी हुई, वे परिवार में एकमात्र सहारे थे और जब व्यवसाय में दिक्कत आने लगी तो हम बहुत सारी वित्तीय समस्याओं से गुजरने लगे. तब मैंने गैराज में मदद करने के लिए अधिक समय बिताना शुरू किया. क्लास 10 के बाद मेरी आगे की पढ़ाई का समय आ गया था. मैंने गैप लेने का फैसला लिया और अपना पूरा समय गैराज को दिया. मैंने अपना ग्रेजुएशन पूरा किया पर क्योंकि मैं व्यापार में इतनी व्यस्त हो गई थी कि मुझे 12 साल लग गए. 
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अब इस जगह को संभालते हुए मुझे 30 साल हो गए हैं. जब 16 साल की उम्र में मैंने यहां पर काम करना शुरू किया था, मैं ऐसे बहुत से ग्राहकों से मिलती थी जो मुझे अपनी गाड़ी देने में हिचकिचाते थे क्योंकि मैं एक लड़की थी और हर दिन मुझे अपने आप को सही साबित करना होता था. लेकिन बीते सालों में वही लोग अब अपनी गाड़ी मेरे अलावा किसी और को नहीं देना चाहते हैं.  

हमें उन सभी महिलाओं पर गर्व है जिन्होंने लोगों की रूढ़िवादी सोच और ‘महिलाओं को ऐसा नहीं करना चाहिए’ वाली मानसिकता को चुनौती देकर अपनी अलग जगह बनाई है और सब को दिखाया है कि ऐसी कोई चीज़ नहीं है जो एक महिला न कर सके. 

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