भारत को अंग्रेज़ों से 1947 में आज़ादी मिली, लेकिन इस आज़ादी के पीछे हज़ारों वीरांगनाओं और वीरों का हाथ है.
आमतौर पर भारतीय रानी लक्ष्मीबाई को देश की पहली योद्धा रानी मानते हैं, पर लक्ष्मीबाई से काफ़ी पहले दूर दक्षिण में एक योद्धा रानी ने अंग्रेज़ों की नींदें हराम कर दी थीं.
कौन थी रानी चेन्नमा?
चेन्नमा का जन्म, 23 अक्टूबर, 1778 को बेलागावी ज़िले के छोटे से गांव में हुआ था. चेन्नमा को बहुत ही छोटी आयु में शस्त्र विद्या और घुड़सवारी सिखाई गई थी और उनकी बहादुरी के चर्चे गांवभर में होते थे. जब चेन्नमा 15 वर्ष की हुईं तो उनका विवाह किट्टूर के राजा, मल्लासरजा देसाई से कर दिया गया.
1816 में रानी चेन्नमा के पति की मृत्यु हो गई. 1824 में उनके एकमात्र पुत्र की भी मौत हो गई. अब रानी चेन्नमा के ऊपर किट्टूर राज्य को अंग्रेज़ों से बचाने की ज़िम्मेदारी आ गई.
अंग्रेज़ों से युद्ध का सिलसिला यूं शुरू हुआ
रानी ने 1824 में शिवलिंगाप्पा को गोद लिया और उसे उत्तराधिकारी घोषित कर दिया. ईस्ट इंडिया कंपनी की आंखों में ये चुभ गया.
डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स के आधार पर कंपनी ने शिवलिंगाप्पा के निष्कासन का आदेश दिया. डॉक्ट्रिन ऑफ़ लैप्स को भारतीय राज्यों को हथियाने के लिए ही लाया गया था. इस डॉक्ट्रिन के आधार पर अगर किसी राजा की निस्संतान मौत हो जाती है तो वो राज्य अंग्रेज़ों के अधीन हो जायेगा.
किट्टूर राज्य, धाड़वाड़ के कलेक्ट्रेट, Thackeray के अधीन आया और इस राज्य के कमीश्नर Chaplin थे. दोनों में से किसी ने भी नये राजा को मानने से इंकार कर दिया. किट्टूर को अंग्रेज़ों के राज्य के अधीन आने का संदेश भेज दिया गया. इस सब के बावजूद किट्टूर की रानी ने घुटने नहीं टेके.
किट्टूर की जंग
रानी ने किट्टूर को बचाने के लिए हर तरीका अपनाया. रानी ने बोम्बे के गवर्नर को चिट्ठी लिखी पर गवर्नर ने उनकी बात ठुकरा दी. रानी को न झुकता देख, अंग्रेज़ों ने 21 अक्टूबर, 1824 को 200 सैनिकों और 4 बंदूक लेकर हमला कर दिया. बहादुर रानी के आगे अंग्रेज़ों को जान बचाकर भागना पड़ा. यही नहीं, अंग्रेज़ों के 2 अफ़सर और कलेक्ट्रेट Thackeray को भी गंवा दिया.
रानी चेन्नमा ने कमीश्नर Chaplin के सामने युद्धविराम की शर्त पर ही अफ़सरों को छोड़ने की बात रखी. अंग्रेज़ों ने इस बेइज़्ज़ती का बदला लेने की ठानी. वे मैसूर और शोलापुर से और बड़ी सेना लेकर आये और किट्टूर को चारों तरफ़ से घेर लिया. किट्टूर की रानी ने सेना के साथ बहादुरी से अंग्रेज़ों का सामना किया. पर रानी अपनी ही सेना के दो सैनिकों के धोखेबाज़ी का शिकार हुईं.
अंग्रेज़ों ने बंदी बना लिया
रानी अंग्रेज़ों के आगे हार गईं पर लड़ती रहीं. रानी को अंग्रेज़ों ने बंदी बना लिया और बैलहोंगल किले में क़ैद करके रखा.
क़ैद में रहते हुए रानी सिर्फ़ धर्म से जुड़ी पुस्तकें पढ़ती और अपनी रिहाई की प्रार्थना करती. धीरे-धीरे वो आस भी छूटती गई और रानी का स्वास्थ्य बिगड़ता गया. 21 फरवरी, 1929 को रानी की मृत्यु हो गई.