राव तुला राम: 1857 की क्रांति का वो योद्धा जिसने एक महीने तक अंग्रेज़ों को अपने गढ़ में उलझाए रखा

J P Gupta

राव तुला राम मार्ग, राव तुला राम अस्पताल, कॉलेज और राव तुला राम फ़्लाईओवर. देश की राजधानी दिल्ली में राव तुला राम के नाम से कई सड़कें और इमारतें हैं. इन्हें देखते हुए अकसर लोगों के जेहन में सवाल आता होगा कि आख़िर ये हैं कौन. ऐसा होना भी लाज़मी है, क्योंकि देश के स्वतंत्रता संग्राम में अहम भूमिका निभाने वाले इस योद्धा के बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. आज इनकी बर्थ एनिवर्सरी है. इस ख़ास मौक़े पर हम इतिहास के पन्नों से उनसे जुड़ी सारी जानकारी लेकर आए हैं, जिसके बारे में जानकर आपको भी उन पर गर्व होगा.

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9 दिसंबर 1825 को राव तुला राम का जन्म रेवाड़ी के रामपुरा में हुआ था. उस वक़्त रेवाड़ी, जिसे अहिरवाल का लंदन भी कहा जाता है, वहां उनके पिता राव पूर्ण सिंह का राजा था. उनकी रियासत आज के दक्षिण हरियाणा में फैली थी, जिसमें क़रीब 87 गांव थे.

14 साल की उम्र में संभाली थी राजगद्दी

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 राव तुला राम जब 14 साल के थे तो उनके पिता का देहांत हो गया था. उसके बाद 14 साल की उम्र में ही उन्हें राज गद्दी संभालनी पड़ी थी. लेकिन पिता की मौत के बाद अंग्रेज़ों ने उनकी रियासत पर कब्ज़ा करना चाहा.

अंग्रेज़ों ने धीरे-धीरे उनकी आधी से अधिक रियासत पर कब्ज़ा कर लिया था. फिरंगियों की इस हरकत के बाद राव तुलाराम का ख़ून खौलना लाज़मी था. उन्होंने धीरे-धीरे अपनी एक सेना तैयार की. रेवाड़ी के लोगों ने भी इसमें योगदान दिया. उन्होंने अपनी 500 सैनिकों की एक सेना भी तैयार कर ली थी. 1857 के विद्रोह की आग जब मेरठ तक पहुंची तो वो भी इस क्रांती में कूद पड़े. इसमें उन्हें दिल्ली के बादशाह का भी साथ मिला.  

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अंग्रेज़ों की नाक में कर दिया था दम राव तुलाराम और उनके भाई के नेतृत्व में रेवाड़ी की सेना ने अंग्रेज़ी हुक़ूमत की नाक में दम कर दिया और रेवाड़ी व उसके आस-पास के कई इलाकों पर कब्ज़ा कर लिया. एक तरफ मेरठ में सैनिकों का कारतूस न इस्तेमाल करने का विवाद और दूसरी तरफ राव तुलाराम का बढ़ता कद. इन दोनों से ही अंग्रेज़ी हुक़ूमत तिलमिलाई हुई थी.

एक महिने तक अंग्रेज़ी सेना को उलझाए रखा था 

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इसलिए उन्होंने राव तुला राम को ख़त्म करने के इरादे से अपनी सेना को भेजा. उन्होंने ब्रिगेडियर जनरल सोबर्स को एक भारी सेना सहित रेवाड़ी की ओर रवाना किया. 5 अक्टूबर 1857 को पटौदी में उनकी झड़प राव तुला राम की एक सैनिक टुकड़ी से हुई. उनके सैनिकों ने पूरे 1 महीनों तक अंग्रेज़ों को घेरे रखा और आगे बढ़ने नहीं दिया. फिर अंग्रेज़ों ने कर्नल ज़ैराल्ड को उनके साथ लड़ने के लिए भेजा. 16 नंवबंर 1857 में अंग्रेज़ी सेना और राव तुला राम की सेना के बीच नसीबपुर के मैदान में भीषण जंग हुई. 

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राव तुला राम की सेना ने अंग्रेज़ी सेना को कड़ी टक्कर दी. उनकी सेना का पराक्रम देखकर ब्रिटिश सरकार भी दंग रह गई. इस युद्ध में कर्नल ज़ैराल्ड की मौत हो गई. इसके बाद अंग्रेज़ों ने चाल चलते हुए पास की रियायतों को अपनी ओर से राव तुलाराम के ख़िलाफ लड़ने के लिए राज़ी कर लिया. नारनौल में हुई लड़ाई में उनकी सेना के कई अहम योद्धा मारे गए. राव तुला राम अंग्रेज़ों को चकमा देकर तात्या टोपे की सेना में शामिल हो गए, लेकिन बदले की आग को उन्होंने कभी बुझने नहीं दिया. 

देश को आज़ाद कराने के लिए विदेशी राजाओं से भी मांगी थी मदद 

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फिर वहां से राव तुला राम ईरान के राजा की मदद लेने के लिए ईरान पहुंच गए. वहां से अफ़ग़ानिस्तान पहुंचे और वहां के राजा को भी भारतीय सेना की मदद करने के लिए तैयार कर लिया. मगर इसी बीच काबुल में वो किसी गंभीर बीमारी का शिकार हो गए. 23 सितंबर 1863 को उन्होंने काबुल में अंतिम सांस ली. वहां पर उनका शाही सम्मान के साथ अंतिम संस्कार किया गया था.

राव तुला राम ने भारत को आज़ाद कराने में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. अपनी सेना खड़ी करने से लेकर भारतीय सेना को अंग्रेज़ों के खिलाफ़ मज़बूत बनाने के लिए विदेशों से भी मदद मांगने में उन्होंने कोई कसर नहीं छोड़ी. उनके इस योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के इस ज़ाबाज़ सेनानी को हमारा शत-शत नमन.

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