अपनी जान गंवा कर गांव और उसकी महिलाओं की रक्षा करने वाला, Real Life Hero बरुन बिस्वास याद है?

Akanksha Tiwari

अकसर हम फ़िल्मों में देखते हैं कि हीरो आम जनता की जान बचाने के लिए अपनी जान दांव पर लगा देता है, लेकिन ऐसा सिर्फ़ मूवीज़ में ही नहीं, बल्कि रियल लाइफ़ में भी होता है. असल ज़िंदगी के ऐसे ही नायकों में से एक नाम बरुन विश्वास का भी है, जिन्होंने अपनी गांव की महिलाओं को बचाने के लिए अपनी ज़िंदगी गंवा दी.

2000 से लेकर 2002 तक, वेस्ट बंगाल के सुतिया गांव के रहने वाले लोग, 33 से अधिक बलात्कार, दर्ज़नभर से ज़्यादा हत्याएं और अनगिनत विस्फोटों के गवाह हैं. उस समय पूरे गांव पर सुशांत चौधरी नामक स्थानीय गैंगस्टर की हुक़ूमत चलती थी और उसके गिरोह ने ग्रामीणों को बंदूक की नोक पर बंधक बना कर रखा हुआ था. यही नहीं, जिसने भी इस अत्याचार के विरुद्ध आवाज़ उठाने की कोशिश की उसे या तो अपनी जान से हाथ धोना पड़ा या फिर उसके परिवार की किसी महिला को रेप का शिकार बनाया गया.

ग़रीब और बेसहारा लोगों को कष्ट में देख कर सामाजिक कार्यकर्ता और शिक्षक बरुन ने उनकी ओर मदद का हाथ आगे बढ़ाते हुए सभी ग्रामीणों को इक्ठ्ठा किया और एक प्रतिभावादी मंच का गठन किया. ये मंच बलात्कारियों के ख़िलाफ़ खड़ा किया गया था. इसके बाद उन्होंने पीड़ितों को क़ानूनी कार्रवाई करने के लिये काफ़ी प्रोत्साहित किया और बरुन की मेहनत रंग लाई. मामले में चौधरी समेत पांच आरोपियों को ता-उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई गई.

बरुन ने न सिर्फ़ पीड़ितों को न्याय दिलाया, बल्कि उन्हें दोबारा से ज़िंदगी जीना भी सिखाया. अब वो बिल्कुल फ़िल्मी हीरो की तरह गांव का रियल नायक बन चुका था, लेकिन इस दौरान कुछ लोग ऐसे भी थे, जो लगातार उसे नीचा दिखाने का प्रयत्न कर रहे थे.

कहते हैं न अच्छे लोगों को भगवान अपने पास जल्दी बुला लेते हैं. बरुन की अच्छाई उसकी ज़िंदगी पर भारी पड़ गई और सबूतों के कमी के कारण उस समय कुछ आरोपियों को हिरासत से रिहा कर दिया गया. इसके बाद वही हुआ, जिसका सबको अंदेशा था. 2012 में उस गिरोह के एक सदस्य ने गांव के नायक बरुन की गोली मार कर हत्या कर दी.

अपने भाई को याद करते हुए बरुन के भाई असित विश्वास ने एक इंटरव्यू में बताया, ‘बरुन को पता था कि उसका जीवन ख़तरे में था, लेकिन उसने अपनी जान की परवाह नहीं की, उसने अपने पास एक साहस की लकीर खींच रखी थी.’

बरुन वो रियल हीरो है, जिसकी शहादत को आज पूरा गांव याद करता है. साथ ही उन्हें लीज़ेंड का पद भी दिया गया है. हमारी तरफ से ऐसे जांबाज़ को दिल से सलाम!

Source : SW

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