इनके जज़्बे को सलाम! 68 वर्षीय बुज़ुर्ग महिला ने की दुनिया के सबसे ख़तरनाक ट्रैक ‘हर्षगढ़’ की चढ़ाई

Maahi

अगर मन में कुछ कर दिखाने का जज़्बा हो, तो उम्र बस एक नंबर बनकर रह जाती है. नासिक की रहने वाली 68 वर्षीय आशा अम्बाड़े ने भी ऐसा ही कारनामा कर दिखाया है, जिससे लोग उनकी ख़ूब सराहना कर रहे हैं.

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दरअसल, आशा अम्बाड़े ने दुनिया के सबसे ख़तरनाक ट्रैक में से एक नासिक के ‘हरिहर क़िले’ के टॉप पर पहुंचने का कारनामा कर दिखाया है. इस क़िले की चढ़ाई करने में अच्छे अच्छों के पसीने छूट जाते हैं, लेकिन आशा ताई ने अपने हौसलों से हर किसी को हैरान कर दिया है.

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117 सीढ़ियों के सहारे ज़मीन से 170 मीटर की चढ़ाई करने वाली आशा ताई का एक वीडियो सोशल मीडिया पर खूब वायरल हो रहा है. इस वीडियो में वो खड़ी सीढ़ियों के सहारे क़िले पर चढ़ाई करती नज़र आ रही हैं. इस दौरान वो जैसे ही क़िले के टॉप पर पहुंची उनके साथ आये लोगों ने तालियां और सीटियां बजाकर उनका स्वागत किया.

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सोशल मीडिया पर भी कई लोग आशा ताई के जज़्बे की सराहना कर रहे हैं. महाराष्ट्र सूचना केंद्र के उप निदेशक दयानंद कांबले ने ट्विटर पर ये वीडियो पोस्ट करते हुए लिखा, ‘जहां चाह वहां राह… ‘माऊली’ को बड़ा सैल्यूट’

आख़िर क्या ख़ासियत है हर्षगढ़? 

नासिक से 60 किमी दूर स्थित ‘हरिहर क़िले’ को ‘हर्षगढ़’ के नाम से भी जाना जाता है. इस क़िले के टॉप पर हनुमान जी और भोलेनाथ के मंदिर बने हुए हैं. इनकी काफ़ी मान्यता है इसलिए सालभर श्रद्धालु जान जोख़िम में डालकर यहां दर्शन करने के लिए आते हैं.

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बता दें कि ज़मीन से 170 मीटर की ऊंचाई पर स्थित ये किला दो तरफ़ से 90 डिग्री सीधा और तीसरी तरफ़ 75 की डिग्री पर स्थित है. इस पर चढ़ने के लिए 1 मीटर चौड़ी 117 सीढ़ियां बनी हैं. ट्रैक चिमनी स्‍टाइल में है, लगभग 50 सीढ़ियां चढ़ने के बाद मुख्‍य द्वार, महा दरवाजा आता है, जो आज भी बहुत अच्छी स्थिति में है. यहां से आगे जाने पर दो कमरों का एक छोटा महल दिखता है, जिसमें 10-12 लोग रुक सकते हैं.

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हर्षगढ़ की चढ़ाई को हिमालयन माउंटेनियर दुनिया का सबसे ख़तरनाक ट्रैक मानते हैं. इस ट्रैक पर कई जगह 80 डिग्री से अधिक की खड़ी चढ़ाई है. इस चुनौती को पूरा कर पाना हर किसी के बस की बात नहीं है, क्योंकि ट्रैकिंग के दौरान एक छोटी सी ग़लती आपकी जान ले सकती है. इस क़िले पर सबसे पहले 1986 में हिमालयन माउंटेनियर ने ट्रैकिंग की थी, इसलिए इसे ‘स्कॉटिश कड़ा’ भी कहते हैं. इसे पूरा करने में उन्हें दो दिन लगे थे.

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