‘मैं जीने के लिए अपने पिता का ऋणी हूं, मगर अच्छे से जीने के लिए अपने गुरु का…’, आज मैं आर्टिकल की शुरुआत एपीजे अब्दुल कलाम जी के इस कोट से इसलिए कर रही हूं क्योंकि शिक्षण कार्य ही एक ऐसा पेशा है, जो किसी व्यक्ति के चरित्र का निर्माण कर सकता है, किसी के भविष्य को आकार भी दे सकता है.
मगर इसमें कोई दोराय नहीं है कि शिक्षक बनना आसान काम नहीं है. और जब बात हो बच्चों को पढ़ाने की, तब ये और भी मुश्किल हो जाता है. एक शिक्षक को बच्चों से प्यार के साथ सख़्ती भी बरतनी पड़ती है और इसके लिए उनको बहुत अधिक धैर्यवान होने की ज़रूरत होती है.
हमारे देश में ऐसे कई टीचर्स हैं, जो बच्चों को पढ़ाने के लिए और अपनी जॉब के लिए न जाने कैसे-कैसे रास्ते तय करते हैं. ऐसे ही एक टीचर से हम आज आपको मिलवाने जा रहे हैं, जिनका नाम संजय सेन है और जो दिव्यांग हैं.
संजय सेन साल 2009 से ‘शिक्षा संबल प्रोजेक्ट’ के अंतर्गत बच्चों को पढ़ा रहे हैं. राजस्थान में भारत सरकार द्वारा चलाया गया एक प्रोजेक्ट है ‘शिक्षा संबल’. ये प्रोजेक्ट राजस्थान के अजमेर, भिलवाड़ा, चित्तौड़गढ़, राजसमंद और उदयपुर के कई जिलों में फैला है. इसका मक़सद आर्थिक तंगी के कारण पढ़ाई छोड़ने वाले छात्रों की मदद करना है, इसके अलावा जिन स्कूलों के पास बच्चों को पढ़ाने के लिए पर्याप्त अध्यापक नहीं हैं, को सहायता प्रदान करवाना है.
वर्तमान में ‘शिक्षा संबल’ का लाभ 9वीं से 11वीं तक के 7 हज़ार छात्रों को मिल रहा है. राजस्थान के 55 स्कूलों में चल रहे इस प्रोजेक्ट के तहत बच्चों को इस प्रोजेक्ट में साइंस, इंग्लिश और गणित विषय को पढ़ाये जाते हैं.
इन दिनों सोशल मीडिया पर संजय सेन की एक फ़ोटो वायरल हो रही है. इस फ़ोटो को अनीता चौहान नाम की एक ट्विटर यूज़र ने अपने अकाउंट से 9 सितंबर को पोस्ट किया था.
Salute for his dedication.👏
Meet a real hero Sanjay Sen, a physically challenged man, teaching at a village school in Rajasthan under the Shiksha Sambal Project since 2009.#RespectSanjaySen 🙏 pic.twitter.com/Lo87c1pMOO— Anita Chauhan (@anita_chauhan80) September 10, 2018
फ़ोटो को शेयर करते हुए अनिता ने लिखा, ‘सलाम है इनकी समर्पण और प्रतिबद्धता को!… मिलिए संजय सेन से, जो दिव्यांग हैं. वो शिक्षा संबल प्रोजेक्ट के साथ साल 2009 से राजस्थान के एक गांव के स्कूल में पढ़ा रहे हैं.’
इस फ़ोटो में साफ़ दिख रहा है कि अपनी अक्षमता के बावजूद ये शिक्षक बच्चों के प्रति कितना समर्पित है. इसके अलावा इस फ़ोटो का एक दुखद पहलू ये है कि इस टीचर के पास एक व्हीलचेयर तो छोड़ो बैसाखी तक नहीं है.
सोशल मीडिया पर ये फ़ोटो पोस्ट होने के बाद यूज़र्स संजय की तारीफ़ करते नहीं थक रहे हैं. यूज़र्स उनकी फ़ोटो को शेयर और लाइक कर रहे हैं.
मगर ये संजय की कर्तव्यनिष्ठा ही है कि अपनी अपंगता के बाद भी वो ज़मीन पर बैठकर बच्चों को पढ़ा रहे हैं. अपनी मजबूरी को अपने कर्तव्य और बच्चों की शिक्षा के बीच रोड़ा न बनाते हुए संजय सेन ने साबित कर दिया कि शिक्षक का मुख्य कार्य शिक्षा से प्यार करना और अपने विद्यार्थी को एक उज्वल भविष्य देना है.