आखिर कैसे अमेरिका पहुंचा भगवान शिव का ज्योतिर्लिंग, ये है चमत्कार और विश्वास की रोचक कहानी

Nagesh

ईश्वर की महिमा भी अपरमपार है, पहले तो भारत की धरती को ही देवभूमि मानी जाती थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार, हिन्दू धर्म के कई देवताओं ने इसी धरती पर जन्म लिया था और ये धरती ही उनकी कर्मभूमि भी रही है. लेकिन अब भगवान ने नया चमत्कार दिखा दिया है. हमारे देश से हज़ारों मील दूर अमेरिका में भी एक ज्योतिर्लिंग है, जहां बना, श्री महा कालेश्वर मंदिर काफ़ी चर्चित है. आप इंटरनेट पर अगर कैलिफ़ोर्निया में घूमने लायक चीज़ों के बारे में सर्च करेंगे, तो आपको उस लिस्ट में Santa Clara में स्थित ये मंदिर भी देखने को मिलेगा. आपको बता दें कि श्री महाकालेश्वर मंदिर अमेरिका में पहला ज्योतिर्लिंग मंदिर है. ये मंदिर भगवान शिव के रूद्र अवतार को दर्शाता है.

मंदिर में पूजे जाने वाला शिवलिंग दो टन ग्रेनाइट से बनाया गया है. इस शिवलिंग पर 1008 छोटे-छोटे शिवलिंग भी बनाये गये हैं, जिन्हें सहस्त्रलिंगम कहा जाता है. ऐसा माना जाता है कि ये शिवलिंग की शक्ति को हज़ार गुना बढ़ा देता है. इस मंदिर का भारत के साथ बड़ा तगड़ा कनेक्शन है. इसका मूल स्वरुप वाला मंदिर महाकालेश्वर मध्यप्रदेश के उज्जैन में स्थित है. ये देश के 12 मुख्य ज्योतिर्लिंगों में से एक है. भगवान शिव के बारे में प्रचलित कहानियों के अनुसार, US इस मंदिर के दक्षिण में है, जो मृत्यु और विनाश का प्रतीक है. इसलिए ऐसा माना जाता है कि शिव के रूद्र रूप का ये प्रतीक है. शिव के तांडव से सभी जीवों को बचाने के लिए दक्षिण हिस्से में भी उनकी आराधना का एक केंद्र होना ज़रूरी है, इसी बात को ध्यान रख कर इस मंदिर की स्थापना की गई है. ये भी माना जाता है कि इस रूप में शिव मृत्यु और काल पर जीत पा लेते हैं, इसलिए इस समय उनसे कुछ भी मांगने पर वो पूरा हो जाता है.

स्वामी सथाशिवम ने अपनी फाउंडेशन के शाश्वत विश्वास के आधार पर इस मंदिर को प्रतिस्थापित किया था. आपको बता दें कि स्वामी सथाशिवम चेन्नई के महान संत और पुजारी साम्बामूर्ति शिवाचरियर के पुत्र हैं. इस मंदिर का उद्घाटन 2010 में किया गया था. पुजारी साम्बामूर्ति चेन्नई के कालीकंबल मंदिर में प्रधान पुजारी थे. सथाशिवम का अध्यात्मिक सफ़र नौ साल की उम्र में ही शुरू हो गया था, जब वो अकेले मां काली के दर्शन के लिए कोलकाता चले गये थे. उसके बाद वो बनारस आ गये और इस दौरान वो कई संतों के साथ रहे. वो बिना धर्म, जाति और राष्ट्र देखे हर किसी को भक्तिपूर्वक ज्ञान देते थे. 1989 में स्वामी ने 12 पवित्र ज्योतिर्लिंगों को US ले जाने पर विचार किया. उन्होंने इस बात को इंडियन अमेरिकन कम्युनिटी के बीच भी रखा. 2010 में उन्होंने इस सिद्धि के लिए 1008 चंडी यज्ञ किये और भगवान से मनोकामना पूर्ण हो जाने का आशीर्वाद मांगा. उसी यज्ञ के प्रताप से कई पहाड़ों और समुद्रों को पार कर ज्योतिर्लिंग La Honda आ पहुंचा.

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इस तरह से अमेरिका में पहला ज्योतिर्लिंग स्थापित किया गया और वहां के सारे भारतीय को भगवान शिव के दर्शन लाभ से कृतार्थ कर दिया गया. फाउंडेशन के अनुसार, अगले दो ज्योतिर्लिंग Texas और Boston में स्थापित किये जाने वाले हैं. Boston में प्रस्तावित ज्योतिर्लिंग का नाम श्री ओमकारेश्वर ज्योतिर्लिंग नाम दिया जायेगा.

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