जब ये लड़की वैज्ञानिक बनी, तब उसकी मां को भी एक डिग्री मिली, उसके उतार-चढ़ाव में साथ निभाने की

Kundan Kumar

एक इंसान के तौर पर हम जिस पर सबसे ज़्यादा भरोसा करते हैं, वो हैं हमारे माता-पिता और हमारी शिकायतें भी उन्हीं से सबसे ज़्यादा होती हैं. मां-बाप हमारी सभी बातों को समझते हैं लेकिन हम यही मान कर चलते हैं कि उन्हें कुछ समझ नहीं आता.

जिन बच्चों को ये बात सही वक़्त पर समझ आ जाती है, वो अपने सपने भी मा़ं-बाप के नाम कर देते हैं. अपनी हर उपलब्धि का क्रेडिट उन्हें ही देते हैं, क्योंकि वो समझ जाते हैं कि ये जीत अकेले उनकी नहीं है.

ये कहानी भी ऐसी ही है, रिफ़्यूजी रेखा से डॉक्टर रेखा बनने तक का सफ़र. वैसे तो डॉक्टरेट सिर्फ़ रेखा को मिली लेकिन उस मां के लिए भी कोई उपाधि होनी चाहिए थी, जिसके बिना इस संघर्ष का शुरू होना भी शायद संभव न था.

Humans of Bombay

सात जन का परिवार मुंबई के एक चॉलनुमा घर के एक कमरे में रहता था. मां ख़ुद अनपढ़ थी लेकिन उन्हें शिक्षा की एहमियत पता थी. बच्चों का दाखिला अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में कराया गया.

रेखा का पढ़ने में मन लगता था, दसवीं में रेखा को 63 प्रतिशत नंबर आए थे. उस वक़्त और वैसी परिस्थिती में ये बड़ी बात थी. मां अपनी बेटी की कहती थी- तू बड़ी होकर डॉक्टर बनेगी.

रेखा कॉलेज में पहले साल की परीक्षा में बीमारी के कारण फ़ेल हो गई. इस पर रेखा के आंसू रोके नहीं रुक रहे थे. मां ने सांत्वना देते हुआ बस इतना कहा, ‘अगर तुमने पूरी मेहनत की तो रोने की बात नहीं, तुम्हारे बस में इतना ही था.’ अगले साल रेखा अच्छे नंबर से पास हुई.

मां ने रेखा को दो बातें सिखाई थी- परिवार से बढ़ कर कुछ भी नहीं होता और अगर आप दुनिया में अच्छे काम करेंगे, तो आपके साथ भी अच्छा ही होगा.

संघर्ष चलता रहा, रेखा अच्छे नंबर के साथ पास होती रही, इस बीच पिता का साथ छूट गया. और वो दिन भी आ गया जब रेखा डॉक्टरेट की उपाधि मिलनी थी. वैसा रेखा की मां कभी किसी कार्यक्रम में नहीं जाती थीं,लेकिन आज का दिन ख़ास था. उन्होंने बालों में फूल लगाया, लिपस्टिक भी लगाई.

Humans of Bombay

जब रेखा को अवॉर्ड मिल रहा था तब दोनों के आंखों में आंसू थे, आखिर दोनों ने इस सफ़र को साथ में तय किया था.

इस कहानी को रेखा ने फेसबुक पेज Humans Of Bombay के साथ शेयर किया है, आप इस कहानी को उन्हीं के ज़बानी भी पढ़ सकते हैं.

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