कैप्टन कम्बमपति नचिकेता: कारगिल युद्ध का वो सैनिक जिसे पाकिस्तान ने बंदी बनाया लेकिन वो टूटा नहीं

Kratika Nigam

Aircraft Pilot Kambampati Nachiketa: कारगिल युद्ध के दौरान देश के कई मांओं के बेटों ने पराक्रम दिखाते हुए अपनी जान भारत माता के नाम समर्पित कर दी. 3 मई से 26 जुलाई 1999 तक चले इस युद्ध में कई शूरवीरों ने अपनी जान गंवा दी, जिनमें कैप्टन विक्रम बत्रा के अलावा एयरक्राफ़्ट पायलट, फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट और ग्रुप कैप्टन कम्बमपति नचिकेता (Kambampati Nachiketa) का नाम भी शामिल है. 26 साल के नचिकेता IAF दल-9 में युद्ध-प्रभावित बटालिक क्षेत्र में सेवारत थे.

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इस दौरान, 27 मई 1999 को नचिकेता को जो ज़िम्मेदारी दी गई थी, वो ये थी कि उन्हें 17,000 फ़ीट की ऊंचाई पर बैठे दुश्मन के ठिकानों पर हमला करना था. नचिकेता ने अपने फ़ाइटर प्लेन मिग-27 से निशाना साधते हुए फ़ायर किया, लेकिन वो उल्टा पड़ गया, जिससे उनके फ़ाइटर प्लेन में आग लग गई.

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Aircraft Pilot Kambampati Nachiketa

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हालांकि, प्लेन में आग लगे के बाद भी नचिकेता ने डरे और नहीं हिम्मत हारी उन्होंने आग को बुझाने की बहुत कोशिश, लेकिन जब आग नहीं बुझी तो उन्हें अपने प्लेन को पहाड़ी मुन्थूदालो में लैंड करना पड़ा. वहीं, दूसरी तरफ़ उनके दोस्त और स्क्वॉड्रन लीडर अजय आहूजा मिग-21 से नचिकेता की तलाश कर रहे थे, लेकिन वो नचिकेता को ढूंढ पाते उससे पहले पाकिस्तान सैनिकों की मिसाइल अन्जा ने आहूजा को निशाना बना लिया.

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कैप्टन कम्बमपति नचिकेता ने 2016 में अपने इंटरव्यू में बताया था, India Today के अनुसार,

मेरा प्लेन लैंड हुआ भी नहीं था कि दुश्मनों ने उन पर हमला करना शुरू कर दिया तब उन्होंने अपनी बंदूक में गोलियां भरी और दुश्मन का सामना करने लगे, लेकिन गोलियां ख़त्म होते ही दुश्मनों ने उनको घेर लिया और बंदी बना लिया. पाकिस्तानियों ने मुझे रावलपिंडी की जेल में रखा. पाकिस्तानी सेना ने उन पर भारत के राज़ जानने के लिए बहुत ज़ुल्म ढाए, लेकिन नचिकेता ने हार नहीं मानी.

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कैप्टन नचिकेता ने आगे बताया कि,

पाकिस्तानी सेना के मनसूबों को जानने के बाद उन्हें कभी नहीं लगा था कि वो अपने वतन वापस आएंगे क्योंकि पाकिस्तानी सेना उन्हें एक दुश्मन मानती थी और उन्हें मार डालना चाहती थी. तभी पाकिस्तानी सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने कैप्टन नचिकेता के केस में हस्तक्षेप किया तो उन्हें पता चला कि वो युद्धबंदी हैं और युद्धबंदियों के साथ व्यवहार करने के कुछ नियम होते हैं तो कैप्टन नचिकेता के साथ भी वैसा ही होना चाहिए. तब जाकर उन पर होने वाले अत्याचारों पर विराम लगा.

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कैप्टन नचिकेता ने Hindustan Times को बताया कि,

मुझे कभी नहीं लगा था कि मैं वापस आ पाऊंगा. ये समय मेरे लिए बहुत कठिन था, जिसे मैं शब्दों में बयां नहीं कर सकता. उस समय मुझे मौत सबसे आसान लग रही थी, लेकिन मैं भगवान का शुक्रगुज़ार हूं कि उन्होंने मेरा साथ दिया. मैंने 3-4 दिन उस जेल में मानसिक और शारीरिक दोनों यातनाएं झेली थी.

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पाकिस्तान की जेल में कैप्टन नचिकेता 3 जून 1999 तक रहे, इसी बीच पाकिस्तानी सेना पर भारत, संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय मीडिया का इतना दबाव पड़ना शुरू हुआ कि, पाकिस्तानी सेना ने उन्हें रेड क्रॉस सोसाइटी की अंतरराष्ट्रीय समिति को सौंप दिया फिर उन्हें वाघा बॉर्डर के रास्ते भारत भेज दिया गया.

नचिकेता के वतन वापसी के बाद उन्हें मीडिया ने हीरो कहना शुरू किया तो उन्होंने साफ़ मना कर दिया और कहा,

मैं हीरो नहीं, सैनिक हूं, जो अपनी अगली उड़ान के लिए तैयार है. एक पायलट का दिल हमेशा कॉकपिट में रहता है.

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हालांकि, नचिकेता को रीढ़ की हड्डी में गंभीर चोटें आई थीं, जिसकी वजह से उन्हें लंबे मेडिकल ट्रीटमेंट से गुज़रना पड़ा और फिर वो कभी प्लेन नहीं उड़ा पाए, लेकिन उन्हें इंडियन एयरफ़ोर्स के परिवहन बेड़े में शामिल कर लिया गया.

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आपको बता दें, फ़्लाइट लेफ़्टिनेंट नचिकेता को कारगिल युद्ध के दौरान अपने अतुल्य योगदान के लिए साल 2000 में वायु सेना गैलेंट्री पदक से नवाजा गया.

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