मेघालय की राजधानी शिलॉन्ग को भारत के पूर्व का स्कॉटलैंड कहा जाता है. समुद्र तट से 1500 मीटर की ऊंचाई पर स्थित इस शहर में आपको जंगल, पहाड़, ख़ूबसूरत झील, झरने और बर्फ़ से ढकी पहाड़ियों के नज़ारे देखने को मिलेंगे. इस छोटे से हिल स्टेशन से जुड़े कई किस्से हैं. इन्हीं में से एक यहां के जंगल से जुड़ा है.
ये किस्सा है Mawphlang के जंगलों का, जो पूरी दुनिया में Sacred Forest और Sacred Grove Mawphlang के नाम से फ़ेमस हैं. ऐसी मान्यता है कि यहां खासी जनजाति के देवता लबासा(Labasa) का वास है. उनकी इजाज़त के बिना इस जंगल से कोई एक सूखी पत्ती तक नहीं ले जा सकता.
यहां के एक निवासी Babiang Warjri ने इससे जुड़ी कहानी के बारे में बताया है. उन्होंने कहा कि 700-800 साल पहले इस जंगल पर Blah जनजाति का राज था. लेकिन 70-80 एकड़ में फैले इस जंगल को वो संभाल नहीं पा रहे थे. इसलिए उन्होंने इसकी रक्षा के लिए Lyngdoh जनजाति की एक महिला के बेटे का चुनाव किया, परंतु उस महिला ने एक शर्त रख दी.
उसने 5 पौधे लगाए और कहा अगर ये पेड़ बन जाते हैं, तो वो अपने बेटे को इस काम को करने देंगी. पौधे तेज़ी से बढ़े और पेड़ बन गए. तभी से ही Lyngdoh जनजाति के लोग इस जंगल की रक्षा करते आ रहे हैं. उनका मनना है कि इस जंगल में रहने वाले देवता उनकी रक्षा करते हैं. इसलिए वो उन्हें ख़ुश करने के लिए समय-समय पर भेड़-बकरी की बलि भी चढ़ाते हैं.
Warjri ने इससे जुड़ा एक और किस्से को सुनाया. उसने बताया कि एक बार इंडियन आर्मी यहां से सूखे पेड़ों को काटकर ले जाना चाहती थी. ये देवता को पसंद नहीं आया और उनका ट्रक ख़राब हो गया. तब से लेकर अब तक, यहां से कोई भी कुछ नहीं ले जा पाया है.
Sacred Forest का एंट्री पॉइंट टहनियों से बने टनल जैसा है. कहते हैं इस जंगल में अनेक प्रकार की औषधियां मिलती है. यहां जाने से पहले आपको देवता को ख़ुश करना होता है, किसी चीज़ की बलि देकर. अगर आप ऐसा नहीं करते, तो आपकी एंट्री इस जंगल में नहीं हो सकती.
अगर देवता ख़ुश होते हैं, तो चीते का रूप धारण कर आपके सामने आते हैं. अन्यथा सांप के रूप में. अगर आप इस जंगल के बारे में बुरा-भला कहते हैं, तो आप बीमार पड़ जाते हैं. यहां तक कि आपकी मौत भी हो सकती है. इन्हीं मान्यताओं कि वजह से इस जंगल में बिना किसी गाइड के जाना मना है.
कभी शिलॉन्ग जाना हो तो एक बार यहां ज़रूर जाना.