अभिनंदन के अलावा, 1971 की जंग के 54 जवान भी पाकिस्तान की क़ैद में थे, जिन्हें लोग भूल चुके हैं

Kundan Kumar

विंग कमांडर अभिनंदन भारत आने वाले हैं. बुधवार को 38 वर्षीय भारतीय वायु सेना का ये बहादुर पायलट पाकिस्तान के जेट से लड़ते हुए उसकी सीमा में घुस गया और उनका MiG-21 Bison क्रैश कर गया. दो दिन चली डिप्लोमैटिक बात-चीत के बाद पाकिस्तान अभिनंदन को भारत भेजने के लिए तैयार हो गया. 

इस बीच ‘Prisnor Of War’ शब्द ख़ूब सुनने को मिला, अभिनंदन को इसलिए सौंपा जा रहा है क्योंकि वो जंगी कैंदी हैं. जब ये बात चली तो 1971 के भारत-पाक युद्ध तक पहुंची. उस युद्ध में भारत के 54 जवान पाकिस्तान की क़ैद में चले गए थे, जिन्हें आज भी ‘The Missing 54’ के नाम से जाना जाता है. पाकिस्तान ये मानने को तैयार नहीं होता कि उसके पास भारत के 54 जंगी कैदी मौजूद हैं. 

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1971 के युद्ध के बाद इन जवानों को Missing In Aciton या Killed In Action का दर्जा दिया गया है. हालांकि, ये भी माना जाता है कि ये पाकिस्तान की अलग-अलग जेलों में ज़िंदा हैं. 

54 में से 30 जवान भारतीय सेना के हैं के और 24 एयर फ़ोर्स के. आर्मी के जवानों में से एक लेफ़्टिनेंट, 2 सेकेंड लेफ़्टिनेंट, 6 मेज़र, 2 सुबेदार, 3 नायक लेफ़्टिनेंट, 1 हवलदार, 5 गनर और 2 सिपाही हैं. वायु सेना के लापता जवानों में 3 फ़्लाइट ऑफ़िसर्स, 1 विंग कमांडर, 5 स्कॉ़ड्रन लीडर और 16 फ्लाइट लेफ़्टिनेंट हैं. 

ये लिस्ट साल 1979 में लोकसभा में तत्कालीन विदेश राज्य मंत्री समरेंद्र कुंडु ने एक सवाल के जवाब में पेश की थी. 

लापता जवानों के परिवारों ने संयुक्त राष्ट्र और अंतरराष्ट्रीय कमेटियों के भी दरवाज़े खटखटाए लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई. 

वहीं भारत ने 1971 के युद्ध में ही लगभग पूरी पाकिस्तानी फौज़ को कब्ज़ें में ले लिया था, लेकिन शिमला शांति समझौते के तहत वापस कर दिया था. 

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साल 1989 तक पाकिस्तान इस बात से पूरी तरह इंकार करता रहा कि उसकी क़ैद में भारतीय सैनिक हैं लेकिन तब की प्रधानमंत्री बेनज़ीर भुट्टो ने अपने भारतीय दौरे में कहा था कि लापता जवान उनके जेलों में ही है. दिसंबर,1989 में भारतीय प्रधानमंत्री राजीव गांधी के इस्लामाबाद के दौरे पर भी लापता सैनिकों की रिहाई के मुद्दे पर बात हुई. 

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कुछ सालों के बाद तब के पाकिस्तानी राष्ट्रपति परवेज़ मुशर्रफ़ वादों से पलटते हुए जवानों के पाकिस्तान में मौजूद होने के बात से इंकार करने लगे. 

The Diplomat ने अपनी एक रिपोर्ट में लिखा है कि 1972 में टाइम पत्रिका ने पाकिस्तान जेल के भीतर कैदियों की तस्वीर छापी थी. परिवार वालों ने भी जहां उन्हें शहीद मान लिया था इस तस्वीर को देखने के बाद उनको पहचान लिया. 

पूर्व BBC संवाददाता और बेनज़ीर भुट्टो की जीवनी लिखने वाले Victoria Schoffield ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि पाकिस्तानी वकील ने उन्हें बताया था कि भारतीय जंगी कैदी लाहौर के कोट लखपत जेल में क़ैद हैं. 

The Diplomat के 2015 के रिपोर्ट के अनुसार, ही एक अमेरिकी जनरल Chuck Yeager ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि उन्होंने निजी तौर भारतीय जंगी कैदियों से पाकिस्तान में बात की थी. 

1 सितंबर, 2015 को सुप्रिम कोर्ट ने केंद्र सरकार को तलब करके 54 लापता सैनिकों के बारे में पूछा, कोर्ट ने पूछा, ‘क्या वे लोग अभी भी ज़िंदा हैं?’, इसका जवाब सोलिसेटर जनरल रंजित कुमार ने दिया, ‘हमे नहीं पता.’. 

उन्होंने अपने जवाब में कहा कि हम मानते हैं कि उनकी मौत हो गई है क्योंकि पाकिस्तान अपने जेल में उनकी मौजूदगी से इंकार कर रहा है. 

जिनेवा कन्वेंशन की शर्तें तभी लागू होती हैं, जब दोनों देश के बीच घोषित रूप से युद्ध नहीं चल रहा हो. ख़ासतौर पर 1949 में हुए तीसरे जिनेवा कन्वेंशन में युद्ध कैदियों के साथ किए जाने वाले बर्ताव को भी तय किया गया था. 

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