बोइंग-777 प्लेन उड़ाने वाली पहली युवा महिला एनी दिव्या की कहानी मरे हुए जोश को ज़िंदा कर देगी

Akanksha Tiwari

‘एनी दिव्या’ 

ये नाम ख़बरों में कई बार सुना होगा. बोइंग 777 विमान उड़ाने वाली दिव्या ने महज़ 30 साल की उम्र में दुनिया की यंगेस्ट महिला कमांडर का ख़िताब हासिल कर, नया इतिहास रच चुकी हैं. विजयवाड़ा की रहने वाली दिव्या बचपन से ही हवाई जहाज उड़ा कर आकाश में उड़ने का ख़्वाब देखती थी, पर ख़ुद के सपनों को अंजाम तक ले जाना हर किसी के लिये आसान काम नहीं होता.  

ज़िंदगी को लेकर दिव्या का ये सपना भी कुछ ऐसा ही था. हाल ही में Humans Of Bombay ने एक पोस्ट शेयर की है. ये पोस्ट दिव्या के बारे में है, जिसमें दिव्या ने ख़ुद अपने पायलट बनने की कहानी बयां की है.  

पोस्ट के मुताबिक, दिव्या के पापा के सेना में थे और उनकी फ़ैमिली पठानकोट में रहा करती थी, लेकिन बाद वो लोग विजयवाड़ा शिफ़्ट हो गए. दिव्या कहती हैं कि उनकी शिक्षा एक ऐसे स्कूल में हुई, जहां इंग्लिश और हिंदी दोनों में पढ़ना-लिखना सिखाया जाता था. हांलाकि, वहां अंग्रेज़ी का इस्तेमाल कम ही किया जाता था. आगे दिव्या ने बताया कि 9वीं कक्षा के दौरान एक टीचर ने उन्हें 10 वो चीज़ें लिखने के लिये कही, जो उसे से जीवन चाहिए थी. वहीं दिव्या ने भी असाइनमेंट को काफ़ी गंभीरता से लिया और इस सूची में उन्होंने पहली इच्छा पायलट बनने की जताई, तो दूसरा वकील बनना था.  

पर पायलट बनने के लिये दिव्या को हर सबजेक्ट में कम से कम 90 प्रतिशत से अधिक का स्कोर चाहिए और जैसे ही उन्हें ये बात चली वो शिद्दत से पढ़ाई में जुट गई, इसके बाद लगभग हर विषय में 100 नबंर हासिल किये. फ़िलहाल अब समय आ चुका था, दिव्या को फ़्लाइट स्कूल में भेजने का, पर ये सब उनके माता-पिता के बिल्कुल आसान नहीं था. क्योंकि उनके परिवार की वित्तीय हालत इतनी अच्छी नहीं थी कि बिना किसी दवाब के दिव्या को आगे की पढ़ाई के लिये भेजा जा सके. इन सबके बावजूद दिव्या के पापा ने बैंक लोन और दोस्तों से उधार लेकर किसी तरह उन्हें फ़्लाइट स्कूल में भेजा.  

घरवालों की मदद से दिव्या फ़्लाइट स्कूल, तो पहुंच गई, लेकिन आगे का सफ़र और मुश्किल नज़र आने लगा. दरअसल, दिव्या की इंग्लिश बाकि छात्रों की तरह नहीं थी, इसलिये हर कोई उसका मज़ाक उड़ाता था. हांलाकि, इन सारी चीज़ों से भगाने के बजाये दिव्या ने सबका सामना किया और वो बन कर दिखाया जिसकी किसी ने कल्पना नहीं की थी.  

वहीं डिग्री मिलते ही दिव्या को नौकरी मिल गई और पायलट लाइसेंस भी. शायद पूरी कायनात दिव्या को उसके सपनों तक पहुंचाने में लगी थी, वरना पायलट लाइसेंस मिलने से पहले किसी को नौकरी नहीं मिलती, लेकिन दिव्या के केस में ऐसा हुआ और 19 साल की उम्र में वो पायलट का ख़िताब ले चुकी थी. वहीं स्पेन में प्रशिक्षण लेने के बाद वो पहली अधिकारी बन गई. नया शहर, नये लोग, सीमित समय और काम के बाद घर की खाली दिवारें, ये सब दिव्या को काफ़ी परेशान करता था. पर वो अपने लक्ष्य से पीछे नहीं हटी और लगातार ख़ुद को मोटिवेट करती रही.  

इसके बाद दिव्या का अगला टारगेट वकील बनना था और मुंबई आते ही एलएलबी का कोर्स करने लगी. कभी-कभी दिव्या की फ़्लाइट 2 बजे लैंड करती और वो 6 बजे एलएलबी की क्लास लेने के लिये तैयार रहती थी. इस लड़की के अंदर हर वो चीज़ सीखने का जुनून और ख़्वाहिश थी, जिससे उसे लगाव था.  

सारी मुश्किलों को पार कर अपने लक्ष्य तक पहुंचने वाली दिव्या ने सारे लोन चुकाये. इसके साथ ही अपने भाई-बहनों की पढ़ाई का ख़र्च भी उठा रही और देश के साथ-साथ अपने मम्मी-पापा का नाम रौशन कर, उन्हें हवाई जहाज़ से दुनिया की सैर कर रहा रही हैं. इसके साथ ख़ुद भी दुनिया का आनंद ले रही है. इतना सब कुछ हासिल करने के बाद भी दिव्या का कहना है कि Best Is Always Yet To Come! 

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