90 के दशक को आज के बच्चे ब्लैक एंड वाइट युग कहा जा सकता है, क्योंकि न तो उस दौर में कलर्ड टीवी हुआ करते थे और न ही चारों तरफ़ छितराए हुए स्मार्टफ़ोन. टेक्नोलॉजी ने जिस तरह आज के बच्चों की लाइफ़ इतनी सरल बना दी है, वो शायद तब नहीं थी. उस ज़माने में बच्चों को एक फ़ोटो लेने के लिए रील वाले कैमरे और टीवी पर अपने फ़ेवरेट शो को देखने के लिए टीवी के बटन से जद्दोजहद करनी पड़ती थी, लेकिन फिर भी ज़िंदगी बड़ी रंगीन थी. तो चलिए एक बार फिर से 90’s की उन यादों को एक बार से ताज़ा कर लेते हैं.
कैसेट रिकॉर्ड करवाना
आज तो बच्चे झट से अपना स्मार्टफ़ोन निकालते हैं और अपना मनचाहा गाना सुनते हैं. लेकिन पहले अपने फे़वरेट गाने को सुनने के लिए किसी दोस्त से कैसेट उधार लेनी पड़ती थी. कई बार तो रेडियो पर अपने गाने के प्ले होने का इंतज़ार करना होता था, ताकि वो उसे रिकॉर्ड कर सकें. वो भी इस दुआ के साथ, कि आरजे गाने के बीच में फ़ालतू का ज्ञान न दे.
वॉकमैन
अगर किसी बच्चे को उस ज़माने में वॉकमैन मिल जाता था, तो उसे बहुत ही ख़ुशनसीब समझा जाता था. गली-नुक्कड़ के सारे बच्चे उसके आस-पास ही नज़र आते थे. साथ ही वॉकमैन के साथ मॉर्निंग वॉक करने की जंग तो शायद ही कोई भुला पाया होगा.
स्कूल प्रोजेक्ट
तकनीक ने बच्चों के मनोरंजन के साथ ही उनकी पढ़ाई को भी Easy बना दिया है. पहले बच्चों को स्कूल प्रोजेक्ट के लिए अपने हाथ से सभी चीजे़ं इकट्ठी कर बनानी होती था. लेकिन अब इंटरनेट की मदद से प्रिंट आउट निकाला और एक फ़ाइल में उसे सजाकर पेश कर दिया.
लैंडलाइन फ़ोन
घर में मौजूद एक मात्र लैंडलाइन वाले फ़ोन पर घंटों अपने दोस्त की कॉल का इंतज़ार करना. वहीं अगर किसी एक दोस्त का बार-बार फ़ोन आने पर परिवार वालों के सैंकड़ों सवालों का जवाब देना के लिए तैयार रहना होता था.
मैसेज भेजना
नोकिया के वो मोटे-मोटे फ़ोन तो हर किसी को याद होंगे, जिनमें मैसेज टाइप करना पहाड़ पर चढ़ने जैसा थकाऊ था. तब Predictive Text नाम की तो कोई चीज़ ही नहीं होती थी. एक मैसेज को टाइप करने के लिए सैंकड़ों बटन दबाने होते थे.
सेल्फ़ी/ग्रुप फ़ोटो लेना
आजकल तुरंत अपनी जेब से फ़ोन निकाला और सेल्फ़ी ले ली, लेकिन पहले इस तरह फ़ोटो लेना इतना आसान न था. तब किसी ऐसे दोस्त को तलाशा जाता था, जिसके पास वो रील वाल कैमरा हो, हर हसीन पल को कैद करने के लिए तब काफ़ी जद्दोजहद करनी पड़ती थी.
टीवी
टीवी पर किसी चैनल को सर्च करने के लिए बार-बार बटन दबाना पड़ता था. कई बार तो छत पर जाकर एंटिना एडजस्ट करना होता था ताकि स्क्रीन पर सबकुछ साफ़ नज़र आए.
कंप्यूटर गेम्स
उन दिनों एक अदने से गेम को खेलने के लिए उस दोस्त की खु़ुशामद करनी पड़ती थी, जिसके पास कंप्यूटर होता था. आजकल तो बच्चे अपने मोबाइल पर ही ऑनलाइन गेम खेलते नज़र आते हैं.
कपड़े ख़रीदना
आजकल तो बच्चे अपने लिए ख़ुद ही ऑनलाइन कपड़े ऑर्डर कर लेते हैं. जबकि पहले मां-बाप संडे को बच्चों को बाज़ार लेकर जाते थे और हमेशा बच्चों को उन्हीं की पसंद के कपड़े ख़रीदने होते थे.
पेंसिल से कैसेट को सुधारना
एक गाने को रिवाइंड करने के लिए पेंसिल से कैसेट की रील को पीछे करना होता था. कई बार अगर कैसेट की रील चलते-चलते अटक जाए, या बाहर निकल आए, तो उसी से सुधारना पड़ता था.
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