मक्खन हमारी संस्कृति में काफ़ी अहमियत रखता है. सिर्फ़ खाने में नहीं, लोग इसे कई बार लगाने में भी इस्तेमाल करते हैं. लेकिन कभी आपने सोचा है कि आखिर ये मक्खन का इतिहास क्या है? आखिर कब और कैसे इसकी खोज हुई? हमने मक्खन के बारे में देव कथाओं में सुनी है, भगवान कृष्ण को मक्खन काफ़ी प्रिय था. सनातन धर्म के नज़रिए से इसका इतिहास खोजना थोड़ा मुश्किल है. लेकिन हम दूसरे धर्मों की कहानियों पर गौर करें, तो शायद इसके पास पहुंच सकते हैं.
अलग-अलग धर्मों में मक्खन का बखान मिल जाता है. बौद्ध से ले कर बाइबल तक में मक्खन की बात कही गई है.
तिब्बत के इतिहास को पलट कर देखने की कोशिश करें, तो मिलता है कि प्राचीन काल में लोग खाने को मक्खन से ही बनाते थे. याक के दूध से मक्खन निकालने की बात इसमें मिलती है. तिब्बत में भेड़ खाने का रिवाज़ सालों से है. उनके इतिहास में भेड़ को बनाने का सबसे अच्छा तरीका मक्खन के साथ उसे पका कर बताया गया है. 2500 साल से ज़्यादा पुरानी इस डिश को आज भी वहां के लोग बनाते हैं. तिब्बत में आज भी मार्च के महीने में Butter Festival मनाया जाता है. जहां इस डिश को सबसे ज़्यादा महत्व दिया जाता है.
इस डिश के बारे में कहा जाता है इसे खाने से लोग बेहतर ध्यान लगा सकते हैं. अब इसमें कितनी सच्चाई है इसे बारे में तो इस डिश को खाने के बाद ही पता चलेगा.
बाइबल में भी मक्खन की बात कही गई है. इसे गॉड का खाना बताया गया है. बाइबल के छंद में लिखा है कि जब Jesus ने पानी मांगा, तब उन्हें दूध दिया गया. उन्होंने उससे मक्खन निकाला और महिला को दिया और कहा कि इसे खाने से शैतान दूर रहता है.
Iceland के इतिहास में भी मक्खन की कहानी देखने को मिलती है. वहां की दंत कथा के अनुसार, इंसानी हड्डी के ज़रिए Tilberi नाम के शैतान को लगातार तीन रविवार तक Wine थूक कर एक रिवाज़ के जरिए ज़िंदा किया गया था.
ये शैतान गांव के अलग-अलग घरों से दूध चोरी करता था और अपने मुंह में उसे तेज़ी से मिलाता था, जिसके बाद मक्खन निकल कर आता था. 400 ई.पू. मक्खन को लोग ज़मीन के काफ़ी अंदर दबा कर रखते थे. वहां के लोगों के लिए ये एक ख़जाने की तरह था.
मक्खन के बारे में ऐसी कहानियां हमने कभी नहीं सुनी, लेकिन इसका इतिहास कितना पुराना इसके बारे में कोई भी पुख़्ता तौर पर नहीं बोल सकता. लेकिन हां इनकी कहानियों को सुन कर पता लगता है कि इसके स्वाद की तारीफ़ हर युग में होती रही है.