एक हालिया रिपोर्ट के अनुसार, भारत पिछले तीन वर्षों में अपनी विकास दर में गिरावट दर्ज कर रहा था और इस महामारी से पहले की तिमाही में मुश्किल से 3% की रफ़्तार से आगे बढ़ पा रहा है. रिपोर्ट में ये भी कहा गया है कि भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 24% की कमी आई है और अर्थशास्त्रियों को उम्मीद है कि 2020-21 में सकल घरेलू उत्पाद में 10% की गिरावट होगी.
ऐसे वक़्त में ये याद रखना महत्वपूर्ण है कि क़रीब 300 साल पहले भारत दुनिया की जीडीपी में 25 फ़ीसदी की हिस्सेदारी रखता था. हालांकि, अंग्रेजों के हमारे देश पर कब्जा करने के बाद शेयर गिरने लगे, लेकिन उस वक़्त भी हमारे देश के राजा और बादशाह अकाल और कई अन्य आर्थिक संकटों के बीच देश के राजस्व को बरकरार रखने में कामयाब रहे.
ये हैं वो 5 भारतीय शासक, जिन्होंने हमारे देश की अर्थव्यवस्था को मज़बूत रखने के लिए बेहतरीन फ़ैसले किए.
1. चोल
चोल, जिन्होंने क़रीब 430 साल (C.E 850 -1280) शासन किया, उन्होंने 9 वीं शताब्दी में अर्थव्यवस्था को उभारने के लिए कई अहम फ़ैसले किए. निष्पक्ष कराधान प्रणाली स्थापित करने के लिए सबसे पहले उन्होंने भूमि को सर्वेक्षण और ग्रेडिंग देने का काम किया. इसके साथ ही उन्होंने प्राचीन रोम तक बड़े व्यापारिक मार्गों को विकसित किया.
चोल अर्थव्यवस्था का निर्माण विभिन्न स्तरों पर किया गया था, जो कस्बों या ’नगराम’ से शुरू होती थी, जो उत्पादन के लिए वितरण केंद्रों के रूप में काम करती थी और अंतर्राष्ट्रीय व्यापार के लिए स्थानीय कारीगरों द्वारा बनाए गए उत्पादों के लिए एक स्रोत थी. चोल शासकों ने बुनाई उद्योग को भी सक्रिय रूप से प्रोत्साहित किया और उसकी बिक्री से राजस्व प्राप्त किया.
उस समय उत्तर की मुख्य कृषि अर्थव्यवस्थाओं के विपरीत चोल शासकों ने गहन व्यापार और शहरीकरण के माध्यम से अपने राज्य को विकसित किया. उनके पास केंद्र से ‘शासन’ और ‘स्व-शासन’ के बीच एक समान वितरण भी था, जिसमें नगराम और अन्य केंद्रों को उनके द्वारा अर्जित की गई संपत्ति के कुछ हिस्सों को पुनर्व्यवस्थित करने की अनुमति दी गई थी.
ऐसा नहीं कि कृषि की अनदेखी की गई. मसलन, चोल शासकों ने कावेरी में पत्थर के बांध बनाए, जिनमें से राजा करिकालन द्वारा बनाया गया 2000 साल पुराना कलानी बांध अभी भी उपयोग में है. कहा जाता है कि इस बांध से 69,000 एकड़ भूमि सिंचित होती है. चोलों ने कृषि को फलने-फूलने के लिए पानी वितरित करने के लिए चैनल भी बनाए.
2- आसफ़-उद-दौला
अवध (वर्तमान लखनऊ) के चौथे नवाब, नवाब आसफ़-उद-दौला ने 1775 में सिंहासन संभाला और अपने प्रांत की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण बदलाव लाया. व्यापक रूप से उन्हें सार्वजनिक रोजगार के अपने प्रयासों के लिए जाना जाता है, नवाब ने 1784 के अकाल के दौरान ‘काम के लिए भोजन’ कार्यक्रम शुरू किया, जो 11 वर्षों तक चला.
लखनऊ में सबसे प्रतिष्ठित संरचनाओं में से एक बड़ा इमामबाड़ा इसी कार्यक्रम के चलते बना था, जिसमें हजारों नागरिक कार्यरत थे. उनके इस काम के चलते कहा जाने लगा था कि, ‘जिसको न दे मौला, उसके दे आसफ़-उद-दौला’. कहा जाता है कि बड़ा इमामबाड़ा के निर्माण के लिए नवाब ने 20,000 से ज़्यादा लोगों को काम पर रखा था.
आज नवाब द्वारा पीछे छोड़ दिया गया ये ऐतिहासिक स्मारक न केवल एक वास्तुशिल्प का आश्चर्य है, बल्कि आर्थिक स्थिरता के लिए एक गवाही के रूप में भी खड़ा है, जो उन्होंने अपने नागरिकों को दी थी.
3- शेरशाह सूरी
तुर्की के विजेता तैमूर द्वारा 1398 में दिल्ली सल्तनत पर आक्रमण किया गया था, जिसके चलते न सिर्फ़ सल्तनत बर्बाद हुई बल्कि नागरिकों ने भी अपना सबकुछ खो दिया. अर्थव्यवस्था भी बुरी तरह से पटरी से उतर गई थी.
लेकिन जब शेरशाह सूरी सत्ता में आए तो उन्होंने समाज की हर तबके के लिए नीतियां बनाईं और सल्तनत को फिर से स्थापित किया. उन्होंने विशेषकर उन किसानों के लिए आय का इंतज़ाम किया, जो असल में हकदार थे.
उनके शासन से पहले भूमि के अनुमानित उत्पादन के आधार पर भू राजस्व की गणना की जाती थी. ये एक अनुचित प्रणाली थी क्योंकि उपज हर साल एक सी नहीं रहती थी. शेरशाह सूरी के समय राज्य में खेती के हर भूखंड को ठीक से मापा गया था और उन्हें ग्रेडिंग दी गई थी. हर किसान को एक दस्तावेज दिया जाता था जिसे पट्टा कहा जाता था, जो निर्दिष्ट भूमि पर कर को निर्दिष्ट करता था ताकि राजस्व कलेक्टर किसानों को धोखा न दे सकें. किसानों के पास अनाज या नकदी में भू-राजस्व का भुगतान करने का विकल्प भी था.
इसके साथ ही उन्हें देश के ढांचागत विकास में अपने निवेश के लिए भी जाना जाता है. ग्रांड ट्रंक रोड का निर्माण, मुद्रा के रूप में रुपये का मानकीकरण और एक बड़ी डाक प्रणाली का विकास एक बेहतर प्रशासनिक प्रणाली की दिशा में उनके सभी प्रयास थे, जिसने भारत की उत्पादकता में सुधार किया.
4- चंद्रगुप्त मौर्य
जब 321 ई.पू. में चंद्रगुप्त मौर्य सत्ता में आए तो उन्होंने बुनियादी ढांचा परियोजनाओं के माध्यम से विशेष रूप से सिंचाई के माध्यम से एक मज़बूत अर्थव्यवस्था की स्थापना की. इस बात के साक्ष्य गुजरात के 150 ई.पू. रुद्रदामन के जूनागढ़ के शिलालेख में साक्ष्य मिले हैं. इस शिलालेख में इस बात का ज़िक्र है कि रुद्रदामन ने चंद्रगुप्त द्वारा निर्मित जलाशय और सिंचाई बुनियादी ढांचे की मरम्मत और विस्तार किया.
चंद्रगुप्त मौर्य के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने गिरनार नदी पर एक बांध बनाया था, जिससे एक बड़ी झील का निर्माण हुआ जो इसके निर्माण के लगभग 800 वर्षों बाद तक बनी रही. इस वजह से पूरे क्षेत्र को उत्पादन में थोड़ी स्थिरता मिली और सरकार को अर्थव्यवस्था पर अधिक नियंत्रण मिला.
कृषि में भी उन्होंने सुधार किए. कर देने की प्रथा को उन्होंने केंद्रीकृत किया. राजा ने सारी भूमि को आधिकारिक रूप से अपने हाथ में ले लिया और किसानों ने अपनी उपज का भुगतान सिर्फ़ केंद्रीय अधिकारियों को करना पड़ता था.
सिंचाई के अलावा मौर्य ने उद्योग और व्यापार में भी महत्वपूर्ण सुधार किए. मौर्य साम्राज्य में गिल्ड अर्थव्यवस्था और निर्मित वस्तुओं के उद्योग में प्रमुख योगदानकर्ताओं के मुक्त केंद्र बन गए. साम्राज्य ने बड़े निर्यात उद्योगों का निर्माण किया, जहाज बनाए, जो अंजीर, शराब और चांदी के सामानों का मिस्र जैसी दूर-दराज़ के देशों के साथ व्यापार करते थे.
दिलचस्प बात ये है कि मौर्य युग के दौरान पूंजीवाद का विकास हुआ. कई निजी संस्थाएं प्रमुखता से बढ़ीं, जो भारत में उस समय दुर्लभ था.
5- अकबर
जब 1556 में अकबर सत्ता में आया तो दिल्ली और आगरा पर हेमू विक्रमादित्य के आक्रमण का ख़तरा था. राज्य में स्थिरता लाने के लिए अकबर ने गैर-मुस्लिमों पर लगने वाले तीर्थयात्रा कर को समाप्त कर दिया. उन्होंने मौजूदा राजस्व प्रणाली को एक तरह से विकसित किया, जो किसानों के लिए सुविधाजनक और राज्य के लिए लाभदायक थी.
1580 में उन्होंने पिछले 10 वर्षों के स्थानीय राजस्व के आंकड़ों, उत्पादकता और मूल्य में उतार-चढ़ाव का उपयोग करते हुए विभिन्न फ़सलों की उपज और उनकी कीमतों का औसत निकाला. नई प्रणाली ने अर्थव्यवस्था का तेज़ी से विस्तार किया. जिसके चलते साहूकार और डीलर ग्रामीण क्षेत्रों में सक्रिय हो गए. अकबर ने प्रमुख ग्रामीण समूहों से भी समर्थन हासिल किया और उनके अधिकारियों ने विभिन्न समुदायों के नेताओं के साथ रिलेशन बनाए.
आज जब देश की अर्थव्यवस्था भारी गिरावट का सामना कर रही है, तब यक़ीनन इतिहास के इन शासकों से ज़रूरी सबक सीखें जा सकते हैं.
Image Sources – Thebetterindia