भारत में अधिकतर लोग ‘नागा साधुओं’ को लेकर यही जानते हैं कि वो हर वक़्त समाधी में लीन या भांग के नशे में चूर रहते हैं, लेकिन ऐसा कतई नहीं है. दरअसल, तन पर नाममात्र के कपड़े और बदन पर भष्म लपेटे नागा साधुओं का इतिहास योद्धाओं का रहा है.
अगर आपको ऐसा लगता है कि हमारे संत समाज ने भारत की आज़ादी के लिए कोई लड़ाई नहीं लड़ी है तो आप ये जानकार हैरान रह जाएंगे कि ‘नागा साधुओं के युद्ध‘ में भारत माता की रक्षा के लिए 2000 साधु संत शहीद हो गये थे. कहा जाता है कि इस युद्ध में दुश्मन 4 कदम भी आगे नहीं बढ़ पाया था.
इतिहासकार बताते हैं कि तब नागा साधुओं के एक हाथ में तलवार थी दूसरे में धार्मिक किताबें. इस दौरान संतों को धर्म भी बचाना था और देश भी. उस वक़्त अगर अफ़गान शासक आगे बढ़ जाते तो लाखों लोगों का कत्लेआम हो सकता था. हिन्दू मंदिर तोड़ दिए जाते, लेकिन हर साधू ने अपनी बहादुरी का परिचय दिया और मरने से पहले एक-एक साधु ने सैंकड़ों दुश्मनों को धूल चटा दी थी.
जब सन्यासियों ने जोधपुर को बचाया था
कहा जाता है कि जब क़ाबुल और बलोचिस्तान से आये मुग़लों ने जोधपुर पर आक्रमण किया तो चारों तरफ़ हाहाकार मच गया था. मंदिर तोड़े जा रहे थे और कत्लेआम हो रहा था. मुस्लिम शासकों ने हर व्यक्ति पर भारी कर लगा दिया था. तब इन्हीं सन्यासियों ने मुस्लिम शासकों करारी शिक़स्त दी थी.
जब क्रूर अहमदशाह अब्दाली ने किया था भारत पर आक्रमण
कहा जाता है कि जब अहमदशाह अब्दाली दिल्ली और मथुरा पर आक्रमण करता हुआ गोकुल तक आ गया था. इस दौरान उसके सैनिक लोगों का कत्लेआम कर रहे थे. महिलाओं के साथ बलात्कार हो रहे थे और बच्चे देश के बाहर बेचे जा रहे थे. तभी गोकुल में अहमदशाह अब्दाली का सामना नागा साधुओं से होता है.
क़रीब 5 हज़ार साधुओं की सेना कई हज़ार सैनिकों से लड़ गयी थी. पहले तो अब्दाली साधुओं को हल्के में ले रहा था लेकिन तभी अब्दाली को एहसास हो गया था कि ये साधू अपनी भारत माता के लिए जान तक दे सकते हैं. इस युद्ध में 2000 नागा साधु वीरगति को प्राप्त हुए थे. इस युद्ध की सबसे ख़ास बात ये रही थी कि दुश्मनों की सेना चार कदम भी आगे नहीं बढ़ा पाई थी. जो जहां था वहीं ढेर कर दिया गया था या फिर पीछे हटकर भाग गया था.
इस तरह जोधपुर की ओर बढ़ रही अब्दाली की सेना को नागा साधुओं ने गोकुल से बैरंग ही लौटा दिया.
तबसे कई मुस्लिम शासक जब ये बात सुनते ही कि युद्ध में नागा साधु भाग ले रहे हैं तो वो लड़ते ही नहीं थे. तो इस प्रकार से साधु-संतों ने देश की आज़ादी के लिए भी कई युद्ध लड़े हैं और अपनी कुर्बानियां दी हैं.
आपको बता दें कि आप इस युद्ध की विश्वसनीयता को जांचने के लिए कुछ पुस्तकें भी पढ़ सकते हैं. इनमें लेखक डा. नित्यानंद की क़िताब ‘भारतीय संघर्ष का इतिहास’