पिकनिक… यादों का पिटारा खुल गया न?
बचपन की कई सुनहरी यादों में से एक था दोस्तों या Family/Family Friends के साथ पिकनिक पर जाना. बड़े-बड़े बास्केट्स में खाने की कई चीज़ें ले जाना. कमाल की बात तो ये है कि वही खाने की चीज़ें, घर पर कम टेस्टी और खुले आसमान, हरी घास पर बैठकर ज़्यादा टेस्टी लगती थी.
आज साझा कर रहे हैं पिकनिक से जुड़ी कुछ बातें, जो आपको भी पुरानी यादों की गलियों में ले जायेंगी:
1. ईंटें जोड़कर चूल्हा बनाने की कोशिश
ये काम अक़सर ग्रुप के बड़े भैया लोग करते थे.
2. लकड़ियां ढूंढकर लाना
इसमें काफ़ी मज़ा आता था. मतलब पूरी Feel आती थी. हम अक़सर Competition भी करते थे कि कौन कितनी लकड़ियां ले आयेगा.
3. चादरों से टेंट जैसा कुछ बना देना
पेड़ों के सहारे चादरों को बांधकर टेंट बनाने की कोशिश करना बहुत ही मज़ेदार था. पूरी खानाबदोशों वाली ज़िन्दगी जी लेते थे कुछ घंटों में.
4. घर के बने Snacks
दोस्तों की मम्मी खाने के लिए स्नैक्स भी पैक कर ही देती थी. भले ही उनसे कितनी बार भी कह दो कि हम ख़ुद बनाकर खायेंगे.
पापा और पापा के दोस्तों की Family के साथ पिकनिक पर जाने पर भी यही सीन होता था. घर पर टेस्टी Sandwich, पिकनिक पर और ज़्यादा टेस्टी लगते थे.
5. Games
Flying Disc, Ludo, UNO, Cards, छुपन-छुपाई. लड़कों Vs लड़कियों का Tug Of War.
6. ढेर सारी गप्पें
खाकर खेलना फिर थक कर कोल्ड ड्रिंक्स/कॉफ़ी के साथ बातें करना. दोस्तों के ग्रुप में पिकनिक पर Crush वगैरह की बातें भी हो जाती थी.
Family के साथ पिकनिक में ये नहीं हो पाता था.
7. एक कैमरा जिसमें कैद होती थी कई यादें
उस वक़्त सबके पास कैमरे वाला फ़ोन नहीं था. एक रील वाला कैमरा था, जो कोई अपने घर से लेकर आता था और उस काले से शटर वाले कैमरे में न जाने कितनी ही यादें क़ैद हो जाती थी. फिर हर तस्वीर की कई कॉपियां निकलवाई जाती थी.
8. 1 जनवरी
बहुत से लोग 2-3 की छुट्टी में ही पिकनिक की प्लैनिंग कर लेते थे. हमारे लिए पिकनिक यानि की 1 जनवरी. ये किसी तरह की रीति थी शायद. 1 जनवरी को पिकनिक जाना है तो जाना है.
9. मम्मी-पापा को राज़ी करना
ये भी एक बहुत बड़ा काम हुआ करता था.
‘मम्मी टीवी कम देखेंगे’, ‘पापा! पूरे 1.5 घंटे पढ़ाई करेंगे, जाने दो न.’ ऐसे ही तरीके निकालते थे ताकि मम्मी-पापा पिकनिक पर जाने दे.
10. रिश्तेदार सबसे अच्छे यहीं लगते थे
मज़ाक की बात नहीं. रिश्तेदार सबसे अच्छे पिकनिक पर ही लगते थे. एग्ज़ाम के नंबर्स नहीं पूछे जाते थे और न ही उनके बच्चों से Compare किया जाता था.
दोस्तों के साथ पिकनिक का अलग मज़ा था और परिवार और रिश्तेदारों के साथ पिकनिक का अलग.
11. पापा-मम्मी के दोस्तों के बच्चे बन जाते थे दोस्त
पापा-मम्मी के दोस्तों और उनके परिवार के साथ पिकनिक पर जाने का भी अपना ही अनुभव था. मम्मी-पापा के दोस्तों के बच्चों से हमारी दोस्ती हो जाती थी और दोस्ती का दायरा बढ़ जाता था.
12. देर शाम भारी मन से वापस लौटना
दिनभर जीभर कर मस्ती करने के बाद देर शाम भारी मन से घर लौटते थे. और फिर अगली पिकनिक पर जाने के बारे में सोचने लगते थे.
भागती रही ज़िन्दगी और ये ख़ूबसूरत सी चीज़ कहीं पीछे छूट गई. पिकनिक से जुड़ी अपनी यादों को हमसे ज़रूर शेयर करें.