पिछले 40 सालों से उत्तराखंड का ये शख़्स कर रहा है लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार

J P Gupta

हमारे देश में सैंकड़ों लोग ऐसे हैं जो सड़कों पर रहने को मजबूर हैं. वो जिये या मरे उनसे शायद ही किसी को कोई वास्ता होता है. ऐसे लोग मर भी जाएं तो उनका दाह-संस्कार करने वाला कोई नहीं होता. यहां तक कि लोग उनके शव को हाथ लगाने से भी कतराते हैं. वहीं दूसरी तरफ कुछ लोग ऐसे भी हैं जो लावारिस लाशों का अंतिम संस्कार कर इस दुनिया में मरती इंसानियत को ज़िंदा रखे हैं.

उत्तराखंड के देहरादून ज़िले में भी ऐसे ही शख़्स रहते हैं, जो पिछले 4 दशकों से इलाके के लावारिस शवों का अंतिम संस्कार करते आ रहे हैं. ये नेक काम करने वाले इस शख़्श का नाम है जयप्रकाश, जिन्हें लोग प्यार से कालू भगत कहकर पुकारते हैं.

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जयप्रकाश जी 60 साल के हैं और जब से उन्होंने लावारिस शवों का दाह संस्कार करना शुरू किया है, तब से लेकर आज तक उन्होंने इस काम को कभी रुकने नहीं दिया. उनका कहना है कि किसी के मृत शरीर को सड़ने के लिए छोड़ देना ऐसा लगता है जैसे आपने किसी की आत्मा के प्रति निर्दयता दिखाई हो.

जयप्रकाश जी ने कभी गिनती तो नहीं कि लेकिन उनका कहना है कि उन्होंने क़रीब 2000 शवों का अंतिम संस्कार किया है. दाह संस्कार करने के बाद वो इनकी अस्थियां हरिद्वार में विसर्जित भी करते हैं. एक दर्दनाक हादसे ने उन्हें ये कार्य करने के लिए प्रेरित किया.

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इसे याद करते हुए उन्होंने बताया कि 40 साल पहले वो देहरादून के लक्खी बाग के श्मशान घाट में अपने एक रिश्तेदार के अंतिम संस्कार के लिए गए थे. वहां उन्होंने एक लावारिश लाश को पड़े हुए देखा. इसे देखने के बाद उन्होंने श्मशान घाट के केयर टेकर से उसके बारे में पूछा. तब उन्हें पता चला कि वो लाश लावारिस है और जल्द ही उसका क्रिया करम किया जाएगा. मगर कई घंटे बीत जाने के बाद कुछ नहीं हुआ.

तब जयप्रकाश जी ने अपने पिता से बात कि और उसका अंतिम संस्कार करने की इच्छा ज़ाहिर की. उनके पिता और वो तब एक जूस का ठेला लगाते थे. दोनों ने किसी तरह पैसे का इंतज़ाम कर उस लाश का अंतिम संस्कार किया. तभी से ही वो इस तरह के शवों का दाह संस्कार करते आ रहे हैं.

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इस काम में आस-पास के लोग भी उनकी आर्थिक रूप से मदद करते हैं. आजकल वो बीमार रहते हैं और कोरोना महामारी के कारण इस काम में भी थोड़ी बाधा आई है. लेकिन उन्हें जब भी किसी लावारिस लाश का पता चलता है तो वो उसका दाह संस्कार करने की पूरी कोशिश करते हैं. कुछ स्वयंसेवकों का ग्रुप आजकल इस कार्य में उनकी मदद करता है.

ये कार्य वो अपनी मन की शांति के लिए करते हैं. इनकी यही सोच बताती है कि इनका दिल कितना बड़ा है.

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