देश में बचे आख़िरी दुर्लभ आदिवासियों को बचाने की मुहिम में जुटा है ये फ़ोटोग्राफ़र

J P Gupta

2011 में हुई जनगणना के अनुसार हमारे देश में क़रीब 8.6 फ़ीसदी आदिवासी रहते हैं. यानी लगभग 10 करोड़ लोग भारत के अंदरूनी इलाकों में अपना जीवन यापन कर रहे हैं. लेकिन समाज और सरकार की उपेक्षा के चलते इनके अस्तित्व पर संकट के बादल मंडराने लगे हैं. उन्हें बचाने की मुहिम पर निकले हैं एक फ़ोटोग्राफ़र. ये उनकी तस्वीरें खींच कर उनसे संबंधित सभी जानकारी का एक डाटाबेस तैयार कर रहे हैं.

इनका नाम है अमन चोटानी, जो तेज़ी से हो रहे शहरीकरण के बीच कहीं खो चुके आदिवासियों के संरक्षण में जुटे हैं. अमन देशभर में घूम घूमकर आदिवासियों की तस्वीरें खींचते हैं. साथ ही वो उनकी कला, संस्कृति आदि से संबंधित सभी जानकारियों को एक डेटाबेस में स्टोर भी कर रहे हैं.

thelastavatar

उनके इस ख़ास प्रोजेक्ट का नाम है The Last Avatar. इसकी शुरुआत इन्होंने साल 2018 में की थी. इसके पीछे उनका मकसद एक ऐसा डाटाबेस (संग्रह) बनाना है, जो आदिवासियों से जुड़े हर सवाल का जवाब दे सके. ये हमारी आने वाली पीढ़ी को उनके बारे में जानने और उनके जीवन को समझने में मदद करेगा.

उन्होंने इसके लिए एक वेबसाइट भी तैयार की है. साथ ही The Last Avatar नाम का एक इंस्टाग्राम अकाउंट भी शुरू किया है. यहां पर वो आदिवासियों की तस्वीरें शेयर करते हैं.

इनकी टीम ने आदिवासियों पर ख़ूब रिसर्च की है. भारत में मौजूद 645 आदिवासी समुदायों की लिस्ट से इन्होंने 25 को शॉर्ट लिस्ट किया है. उनमें से क़रीब 15 को ये अभी तक कवर कर चुके हैं. इनमें कोनयाक, अघोरी, भील, ड्रोगपा, अपतानी, बंजारा, गड्डी, कौंधा, रायका जैसी जनजातियों के नाम शामिल हैं.

अमन आदिवासियों से पहले बात करते हैं, उनके साथ घुलते-मिलते हैं और फिर जब वो सहज हो जाते हैं तब उनकी तस्वीरें खींचते हैं. उनका कहना है कि धीरे-धीरे उनके जीवन पर बदलती दुनिया की छाप दिखाई देने लगी है. इन समुदायों के नौजवान अब मोबाइल, इंटरनेट, टीवी आदि का इस्तेमाल करने लगे हैं. यही नहीं, इनके पहनावे पर भी इसी साफ़ झलक दिखाई देने लगी है. इस तरह उनकी परंपराओं के विलुप्त होने का ख़तरा मंडरा रहा है. 

उन्हें बचाए रखने के लिए सरकार को उचित कदम उठाने चाहिए. इसलिए अमन अपने इस प्रोजक्ट को बहुत ही ज़रूरी बताते हैं. उनका कहना है कि हमसे जो भूल हुई है, उसे सुधारने का ये एक मौका है. व्यवसायिक गतिविधियों के चलते आदिवासियों की भूमी पर कब्ज़ा करना और जंगलों को नष्ट करने के मामले तेज़ी से बढ़ रहे हैं. इसके चलते आदिवासी समुदायों के अस्तित्व पर ही ख़तरा मंडराने लगा है.

उम्मीद है अमन चोटानी की ये पहल समाज और सरकार की नज़र में आएगी और सभी आदिवासियों के संरक्षण के लिए आगे आएंगे. 

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