पति और बेटी को खोया. ब्रेस्ट कैंसर से लड़ीं और आज कई लोगों की ज़िन्दगी बदल रही हैं ये सुपरवुमन

Sanchita Pathak

ज़िन्दगी किसी के लिए नहीं रुकती. कोई हो या न हो, जब तक लिखा है सुबह का सूरज और रात के तारे देखने ही होंगे. मुश्किलें आती हैं, शिकायतें करने के बावजूद हमें उनसे लड़ना पड़ता है.


विपरीत परिस्थितियों में भी इंसानों के अंदर की शक्ति पता चलती है. बुरे से बुरे हालातों में भी शांत रहकर आगे बढ़ने वाले न सिर्फ़ अपनी बल्कि दूसरों की भी ज़िन्दगी बदलते हैं. 

ऐसी ही एक सुपरवुमन की कहानी शेयर की है Humans of Bombay ने.  

‘मैं अपनी पीढ़ी की उन चुनींदा महिलाओं में से थी, जिन्हें पढ़ने और यहां तक की नौकरी करने का मौका मिला. मेरी ज़िन्दगी में एक ऐसा दौर भी आया जब मेरे पिता और भाई बेरोज़गार थे और मैं Raioning Office में सीनियर इंस्पेक्टर थी. ज़ाहिर सी बात है, जब शादी करने का वक़्त आया तो मैं हिचकिचाने लगी पर मेरे माता-पिता ने मेरा ढांढस बंधाया. 


क़िस्मत से मुझे एक ऐसा साथी मिला, जिसने मेरा हर कदम पर साथ दिया. वो काफ़ी दयालु थे और मुझे और ज़्यादा मेहनत करने के लिए प्रेरित करते. मिलने के एक साल के अंदर हमने शादी कर ली और कुछ समय बाद हमारी बेटी ने जन्म लिया 

Humans of Bombay

पहले दिन से मेरा सपना था कि मैं उसे अपने से ज़्यादा न भी हो सके तो कम से कम अपने जैसा सक्षम बनाऊं. वो भी काफ़ी मेहनती थी. उसने 10वीं और 12वीं दोनों में टॉप किया. बहुत ही कम उम्र से वो अपने पैरों पर खड़े होने की बातें करती और मैं उसके सभी सपने सच करना चाहती थी.


वो अपने करियर में भी अच्छा कर रही थी और एक वक़्त के बाद उसने शादी करने का निर्णय लिया. उसने शादी की और उसके भी दो प्यार बच्चे हुए. जब हमारा परिवार पूरा लग रहा था तो मेरी बेटी को ब्रेन ट्यूमर है और वो हम सब को छोड़ के चली गई. हम इससे उबर ही रहे थे कि हमने अपने दामाद को सड़क दुर्घटना में खो दिया. 

देखते ही देखते हमारी दुनिया उजड़ गई पर हम दुख को ख़ुद पर हावी होने नहीं दे सकते थे. हमारे पोते-पोती को हमारी ज़रूरत थी. हमने उन्हें पाल-पोसकर बड़ा किया. हम दिल्ली शिफ़्ट हो गए पर मैं काम करना चाहती थी. मैंने सीनियर्स सिटिज़न्स वेलफ़ेयर एसोशिएसन जोएन कर लिया और ज़रूरतमंदों की मदद करने लगी.  

Humans of Bombay

मैंने एक मेडिकल कैंप लगवाया था, उसमें पता चला कि मुझे ब्रेस्ट कैंसर है. मुझे शॉक लगा पर मुझे पता था कि मैं ठीक हो जाऊंगी. मेरे पति डर गए थे उन्हें लग रहा था कि हमारा सफ़र ख़त्म होने वाला है. मैं उनसे कहती कि ऐसा कुछ नहीं होने वाला है. मुझे पता ही नहीं चला कि वो अपने जाने की बात कर रहे थे क्योंकि कुछ दिनों बाद लिवर फ़ेल होने से उनकी मृत्यु हो गई.

Humans of Bombay

81 की उम्र में मैंने उन सबको खो दिया जिनसे मैं सबसे ज़्यादा प्यार करती थी. अंदर से टूट चुकी थी. बीतते वक़्त के साथ मैंने ख़ुद को संभाला. मैंने ये जान लिया कि ज़िन्दगी या मौत पर किसी का वश नहीं चलता है. मैंने ख़ुद को समेटा और काम पर वापस लौटी. मैं अपना सारा समय ऐसे लोगों को देने लगी जिनका परिवार नहीं है, जिनके पास ज़रूरती साधन नहीं है और जिस किसी भी तरह की मदद की ज़रूरत है. मैं सीनियर सिटिज़न्स एसोशिएशन की हेड हूं और स्पेशल नीड्स वाले बच्चों के लिए स्कूल भी चलाती हूं. मुझे रोज़ अपने पति और बेटी की याद आती है. जब भी कोई मुझे उनकी हेल्प करने के लिए धन्यवाद करता है तो ऐसा लगता है मानो मेरे पति और बेटी मेरा हाथ पकड़े हों और मेरी पीठ थपथपा रहे हों. मुझे ऐसा लगता है मानो उन्हें मुझ पर गर्व है कि मैं भले ही उनकी मदद न कर पाई पर मैं अपनी क्षमता के अनुसार दूसरों की मदद कर रही हूं.’   

ये कहानी पढ़कर सभी की आंखें नम हो गईं 

Humans of Bombay
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