दुनिया के हर एक इंसान को नरसंहार पर लिखा गया ये ट्विटर थ्रेड पढ़ना चाहिए

Sanchita Pathak

दुनिया के हालात किसी से छिपे नहीं हैं. प्रजातंत्र वाले देशों में भी किसी एक पार्टी या शख़्स की इच्छाओं पर देश के देश चल रहे हैं. नरसंहारों के बारे में तो सभी ने पढ़ा-सुना होगा, पर बहुत कम लोग ‘नरसंहार के पहले की प्रक्रिया’ से परिचित होंगे.


पूर्व Naval Aviator और Trans Activist Brynn Tannehill ने ट्विटर पर नरसंहार को बाक़ायदा समझाने की कोशिश की है. ट्वीट्स को जस का तस रखने की कोशिश की है.  

‘मैं नरसंहार के बारे में पढ़ती हूं. बीते 30 साल से ये मेरा विषय रहा है. सही रूप में कहा जाये तो मैं उन हालातों के बारे में पढ़ाई करती हूं जिनकी वजह से नरसंहार होता है, चाहे वो सांस्कृतिक हों, सामाजिक हों, राजनैतिक हों या आर्थिक आदि…’

‘कॉमन विषय और पैटर्न हैं. आमतौर पर ये ऐसे देशों में होता है जो आर्थिक संकट से गुज़र रहा हो और जहां ज़्यादातर लोगों की जीवनशैली गिर रही हो. शिशु मृत्यु दर एक मुहत्वपूर्ण इंडिकेटर वैरिएबल है.’ 

‘उसे अंजाम देने वाले नेता मशहूर होते हैं, जिन्हें हम और वो वाली कहानियां सुनाकर, देश के हालातों का ज़िम्मेदार कम योग्य व्यक्तियों को बताकर फ़ायदा होता है. वे ऐसे लोगों के बिना अपने ऐतिहासिक/पौराणिक अतीत के लिए तरसते रहते हैं. लोगों को समर्थन पाने के लिए ये बहुत ही सटीक नीति है.’ 

‘इन ‘अन्य लोगों’ को अपराधी, भ्रष्ट, महिलाओं और बच्चों के लिए ख़तरा, घिनौना, और सहानुभूति के लिए अयोग्य बताया जाता है. जो भी माइनॉरिटीज़ का समर्थन करता है उन्हें ये कहा जाता है, ‘तो आप इन बदज़ातों के भयानक कृत्यों का समर्थन करते हैं?’ ‘ 

‘इस वजह से उनके समर्थन में बोलने वालों की आवाज़ें कम होती हैं. दहशतग़र्दों का समर्थक लेबल लगने के डर से लोग नहीं बोलते. 


सरकार के कामों में दख़लअंदाज़ी न हो इसलिए कोर्ट का भी संशोधन किया जाता है.’

’20वीं और 21वीं शताब्दी में पलक झपकते ही ज़ीरो से सारे साफ़, ऐसे नरसंहार नहीं होते थे. रवांडा में भी ऐंटी-टुट्सी प्रचार 1990 में शुरू हुआ. हत्या की प्लांनिंग ने 1992 में आकार लिया. तैयारियां एक साल पहले शुरू हुईं.’ 

‘ऐसे देश जहां एक जनता द्वारा चुनी सरकार हैं, वहां इस प्रक्रिया के फ़ेज़ काफ़ी धीरे-धीरे आगे बढ़ते हैं. पहले प्रोपोगैंडा आता है, जिसके साथ होते हैं टारगेट किये जा रहे लोगों द्वारा किए गये अपराधों का सरकारी डेटा.’ 

‘इसके बाद सार्वजनिक सुरक्षा उपाय हैं. ‘उन लोगों’ को मिलिट्री, फ़ेडरल सर्विस से हटाना. हिंसा पर छाती पिटना पर हिंसा करने वालों को सज़ा न दे पाना’ 

‘बेसिक सिविल अधिकार वापस ले लेना. टारगेट ग्रुप के पास बाक़ी जनता से कम सिविल अधिकार हैं इस बात को सिद्ध करना.’ 

‘अब जब सेकेंड क्लास स्टेटस बन गया है, तो उन्हें शिक्षण व्यवस्था से दूर रखा जा सकता है और उन्हें स्वास्थ्य सुविधाएं देने से भी इंकार किया जा सकता है. नौकरियां न के बराबर. आप ऐसे ज़ोन्स बना सकते हैं जहां माइनॉरिटीज़ को पब्लिक लाइफ़ की पाबंदियां लग जाएं. उन्हें ‘अन्य लोगों’ वाले आईडी कार्ड पहनाए जा सकते हैं.’ 

‘(अगर ये सुना-सुना लग रहा है, तो बता दें जर्मनी ने अपने 1930 के नियमों को उन्हीं नियमों के आधार पर बनाया था जिनके द्वारा अमेरिका ने दक्षिण को अलग-थलग रखा था.)


पुलिस माइनॉरिटी को टारगेट करके हैरेस करती है, उन्हें छोटे-मोटे कारणों से गिरफ़्तार किया जाता है. सिस्टम में लोग ग़ायब हो जाते हैं. ऐसा करने के पीछे 2 मक़सद हैं.’  

‘पहला पब्लिक को इस तरह के एब्यूज़ का आदि बनाना. लोग तो हमेशा ही ग़ायब होते हैं न?


दूसरा, और यहीं से असल में नरसंहार शुरू होता है, लोगों को ख़ुद देश छोड़ने पर या छिपने पर मजबूर करना.’  

‘ये सांस्कृतिक नरसंहार की शुरुआत है: माइनॉरिटी संस्कृति से ग़ायब होने लगते हैं क्योंकि या तो वो चले गये या फिर अंडरग्राउंड हो गये. 


इस दौरान सरकार इस बात की जांच करती है कि विश्व समुदाय इस सब पर कैसी प्रतिक्रिया देता है.’ 

‘चाहे वो सैन्य आक्रमण के, अतिवादी नेताओं के, पत्रकारों की हत्या के कृत्य हों, विदेशी नागरिकों को ब्लैक होल जैसे कैम्पों में रखना हो, नरसंहार करने के कगार पर खड़ा देश ये देखता है कि क्या वो कोई प्रतिक्रिया भड़का सकता है या नहीं(विश्व समुदाय की). वैसे ऐसा कभी नहीं होता. ‘ 

‘ऐसा इसलिये होता है क्योंकि टारगेट ग्रुप वही होते हैं जिनकी दूसरे देशों को भी कोई ख़ास फ़िक्र नहीं होती. यहूदी, Tutsi, Gays, Roma, South Sudanese, विकलांग, मानसिक अस्वस्थ, ग़रीब प्रवासी, इतिहास गवाह है ये लड़ाई शुरू करने के लायक नहीं माने जाते.’ 

‘एक पॉइंट पर सरकार को ये यक़ीन हो जाता है कि कोई हस्तक्षेप नहीं करेगा और अगला कदम उठाने का कोई दुष्परिणाम नहीं होगा: इसमें वे टारगेट ग्रुप का सफ़ाया करने की प्लानिंग करते हैं.’ 

‘Mass Killing का कोई पैटर्न नहीं है. कभी ये कैम्प और फ़र्क न पड़ना होता है. बंदूक, कुल्हाड़ी, हत्या के मैदान, मृत्यु मार्च होते हैं तो कभी ये सब.’ 

‘मेरे लिए सबसे अहम हैं वॉर्निंग साइन-

* शिशु मृत्यु दर
* सरकार के प्रोपोगैंडा का प्रचार
* हम Vs वो
* माइनॉरिटीज़ मुक्त पौराणिक अतीत
* जनवादी सरकार
* लोकतांत्रिक मापदंडों को तोड़ना
* एक पार्टी का पक्ष लेने वाला कोर्ट’

‘* फ़ेडरल सर्विस से माइनॉरिटी को निकालना

* क़ानूनी तौर पर ये निश्चित करना की माइनॉरिटीज़ और बाक़ियों को समान अधिकार मिलने चाहिए
* Stochastic हिंसा को बढ़ावा देना
* स्वास्थ्य सुविधाएं न देना
* शिक्षा से दूर रखना’

‘* पेनल्टी ऑफ़ लॉ के अंतर्गत आम जनता से अलग करना

* माइनॉरिटी की पहचान वाली चीज़ें (ID, नाम आदि)
* किसी को भी गिरफ़्तार कर लेना
* ‘ब्लैक होल’ जैसे डिटेंशन सेंटर
* विदेशी सरकारों का रवैया देखना’

‘*माइनॉरिटीज़ का देश छोड़कर भागना


अगर आपको ये आख़िरी दो पॉइंट्स दिख रहे हैं तो समझ लीजिये काफ़ी देर हो चुकी है. मुझे ऐसा कोई वक़्त याद नहीं है जब वक़्त रहते दुनिया ने नरसंहार रोका हो और शर्णार्थियों के प्रति दुनिया का रवैया देखकर यही कहा जा सकता है कि कुछ ही बच पाते हैं.’

‘आपको अब तक चिंता हुई? वैसे तो होनी चाहिए.


क्योंकि मैं बहुत, बहुत चिंतित हूं. मैं ये नहीं कह रही कि ये होगा ही पर हालात वैसे ही हैं और नरसंहार से पहले के इवेंट्स चल रहे हैं.’  

‘मेरे स्पाउस और बच्चे कनेडियन हैं.


हम 2021 तक वहां वापस जाने की तैयारियां कर रहे हैं. ग़ौरतलब है कि मेरे पास वहां कोई नौकरी नहीं है.’  

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