अक़्सर बचपन की कोई घटना हमारे मन पर गहरी छाप छोड़ जाती है. एक ऐसी ही घटना ने एक आम से असम के लड़के को बना दिया देश का एलिफ़ेंट डॉक्टर.
यहां बात हो रही डॉ. कुशल कोंवार सर्मा की. डॉ. कुशल पिछले 32 साल से हाथियों का इलाज कर रहे हैं और वो छुट्टी भी नहीं लेते.
कुशल के दिमाग़ में अब भी लक्ष्मी की छवि बसी है. बचपन में वे लक्ष्मी के साथ बहुत खेलते थे. मम्मी-पापा के मना करने के बावजूद वे लक्ष्मी के साथ फलों के बागान में घूमते, फल तोड़ते, चिड़िया और परिंदों के पीछे दौड़ते.
कुशल जी के पिता का ट्रांसफ़र हो गया और लक्ष्मी के साथ उनका खेलना भी बंद हो गया. 2 साल बाद जब वे अपनी दादी से मिलने गए तो उन्हें दादी ने बताया कि लक्ष्मी की मृत्यु हो गई. लक्ष्मी एक हथिनी थी.
लक्ष्मी को काम के लिए ले जाया गया था और वहां वो चोटिल हो गई. इलाज के अभाव में उसकी मौत हो गई.
मेरी उम्र मुश्किल से 8 साल रही होगी. ये घटना तक़रीबन 20 सालों तक मुझे परेशान करती रही. उसने अपनी जान इसलिए गंवाई क्योंकि उसका इलाज करने के लिए कोई स्पेशलिस्ट नहीं था, इसलिए मैं वेटरिनेरियन डॉक्टर बना.
-कुशल
कुशल 1983 में वेटरिनेरियन डॉक्टर (जानवरों के डॉक्टर) बने.
उत्तर पूर्व में Remote Tranquilizing Injection Technique की शुरुआत की. कई ‘मस्त’ हाथियों को पकड़ने से लेकर कई ज़ख़्मी हाथियों का इलाज भी किया है. एशियन हाथियों के भारत में संरक्षण के लिए भी उन्होंने काम किया.
‘मस्त’ हाथी वैसे उन हाथियों को कहते हैं, जो बहुत गुस्सैल होते हैं. उनमें Testosterone लेवल भी ज़्यादा होता है. डॉ. कुशल Darts और Tranquilizer Gun से उन्हें वश में करते हैं. इसके लिए वे अपनी जान को जोख़िम में डालकर ख़तरनाक हाथियों के क़रीब जाते हैं
डॉ. कुशल आम लोगों से भी ख़तरनाक Protection Traps के बजाए Bio-Fencing लगाने की अपील करते हैं.
कम से कम 20 बार उनकी जान जाते-जाते बची है पर अब भी वो हाथियों के इलाज और संरक्षण का काम कर रहे हैं.