दुनिया में मानव द्वारा जितना खून बहाया गया है, उतना शायद ही किसी और वजह से बहा हो. तमाम तरह की प्राकृतिक आपदाओं के बीच ये दुनिया अब तक दो विश्व युद्ध देख चुकी है. 1914 से लेकर 1918 तक चले प्रथम विश्वयुद्ध में 16 मिलियन यानि 1 करोड़ 60 लाख लोग मारे गए थे. आस्ट्रिया के Archduke की हत्या ने पहले से ही कई देशों के बीच पनप रहे तनाव को और हवा दी थी और दुनिया ने इसके बाद पहले विश्व युद्ध की भयानक तबाही देखी. इस युद्ध में एक तरफ़ अमेरिका, जापान, यूके, फ़्रांस जैसे देश थे, वहीं सेंट्रल पावर्स में जर्मनी, ऑस्ट्रिया, हंगरी और बुल्गारिया जैसे देश शामिल थे.
द्वितीय विश्व युद्ध में इन देशों की संख्या और भी बढ़ गई थी. 6 सालों तक चले इस युद्ध को दुनिया के सबसे खतरनाक संघर्षों में शुमार किया जाता है. इस युद्ध में 50 मिलियन यानि 5 करोड़ लोग अपनी जान से हाथ धो बैठे थे.
इन दोनों युद्धों ने सब कुछ बदल कर रख दिया. राजनीतिक संबंधों से लेकर व्यापार के रूट, धार्मिक विचारधाराओं से लेकर युद्ध की त्रासदी के बीच पनपते कल्चर. दुनिया में कई बदलाव आ चुके थे.
खतरनाक हथियारों और शक्तिशाली देशों के बीच बढ़ते तनाव के बीच तीसरे विश्व युद्ध को लेकर तमाम तरह के कयास लगाए जाते रहे हैं. क्या ये दुनिया तीसरा विश्व युद्ध survive कर पाएगी?
कई देशों में बढ़ते फ़ासीवाद और तानाशाही प्रवृत्ति के लोगों का चुनकर आना साफ़ ज़ाहिर करता है कि दुनिया तीसरे विश्व युद्ध के बारे में लगाए जा रहे कयासों को हल्के में लेने की भूल नहीं कर सकती है. तो आखिर वो कौन से क्षेत्र हैं, कौन सी वजहें है जिन्हें लेकर पूरी दुनिया को सचेत रहना चाहिए? पेश है मॉर्डन ज़माने के ऐसे 10 कारण, जिनकी वजह से तीसरे विश्व युद्ध की संभावना को बल मिल सकता है.
1. बायोलॉजिकल हथियार
किसी युद्ध के दौरान खतरनाक बैक्टीरिया या वायरस के इस्तेमाल को बायोलॉजिकल हथियार कहा जाता है. ये हथियार दुनिया भर में इस्तेमाल होते रहे हैं, लेकिन इन्हें कभी भी बड़े स्तर पर इस्तेमाल नहीं किया गया है.
1972 में बायोलॉजिकल और टॉक्सिन हथियार कन्वेन्शन पर अमेरिका, यूके और यूएसएसआर समेत कई देशों ने हस्ताक्षर किए थे. इसका मकसद था ज़हरीले पदार्थों के बनाने और जमा करने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाना. हालांकि आज भी कई ऐसे देश हैं जो अपने हथियारों के ज़खीरे को बढ़ाने के लिए इन्हें बनाते हैं और इन पर रिसर्च भी करते हैं. ये सब एक्सपेरिमेंट की आड़ में किया जाता है.
बायोलॉजिकल हथियारों को बेहद खतरनाक माना जाता है क्योंकि ये सीधा मनुष्य के स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ करता है. इतिहास गवाह है कि दुनिया में महामारियों और वायरसों ने कई लोगों की जानें ली हैं. बायोलॉजिकल हथियार इस त्रासदी को कई गुना बढ़ाने की क्षमता रखता है.
2. मिडिल ईस्ट के देशों में टकराव
मिडिल ईस्ट के अंतर्गत सीरिया, लीबिया, तुर्की, फ़िलीस्तीन, इज़राइल, सउदी अरब जैसे देश शुमार हैं. यहां होने वाले संघर्ष के बारे में इस तस्वीर के माध्यम से अनुमान लगाया जा सकता है. अमेरिका, ग्रेट ब्रिटेन और रूस जैसे देश भी यहां होने वाले संघर्ष में किसी न किसी रूप में भागीदार हैं.
बेहद बेसिक लेवल पर अगर बात की जाए तो यहां का टकराव धार्मिक, क्षेत्रीय समस्याएं और कच्चे तेल की वजह से ही है. कई शक्तिशाली देशों की मौजूदगी की वजह से यहां पैसे और हथियारों की सुविधा भी आसान हुई है. यही कारण है कि यहां हालात और भी भयावह हुए हैं.
फ़िलीस्तीन और इज़रायल पिछले कई दशकों से सुरक्षा और बॉर्डर संबंधी समस्याओं के चलते आपस में संघर्षरत हैं. 40 के दशक से चली आ रही इस समस्या का समाधान अभी तक खोजा नहीं जा सका है.
लीबिया पिछले कुछ सालों से कई गृह युद्धों के बीच फ़ंसा हुआ है. वहीं सीरिया का संघर्ष 2011 में शुरू हुआ था और पिछले 6 सालों में ये एक भयानक रूप ले चुका है. आज यहां आईएसआईएस, अमेरिकन आर्मी से लेकर रूस की सेना भी मौजूद है. सीरियन सेंटर फ़ॉर पॉलिसी रिसर्च की फ़रवरी 2016 की रिपोर्ट के मुताबिक, अब तक इस संघर्ष में 4,70,000 लोग मारे गए हैं और 19 लाख लोग घायल हुए हैं. इसका मतलब है कि इस देश के 11.5 प्रतिशत लोग या तो मर चुके हैं या घायल हैं. यहां के लोग अब बड़े पैमाने पर दूसरे देशों में शरण ले रहे हैं और इस स्थिति को लेकर कई देशों का प्रशासन पूरी तरह से तैयार नहीं है.
गौरतलब है कि बाइबल में भी इस बात की भविष्यवाणी की गई थी कि तृतीय विश्व युद्ध मिडिल ईस्ट में ही शुरू होगा और दुनिया की एक तिहाई आबादी को ख़त्म कर देगा.
3 पूर्वी चीन समुद्री टकराव
चीन, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच चल रहा ये टकराव दो दशक पुराना है. ये टकराव EEZ यानि एक्सक्लूज़िव इकोनॉमिक ज़ोन की वजह से बना हुआ है. 1995 में चीन ने पूर्वी चीनी समुद्र के अंदर नैचुरल गैस फ़ील्ड को खोजा था. इसके बाद से ही इस क्षेत्र को लेकर विवाद गहरा हो गया है क्योंकि तीनों ही देश इस फ़ील्ड पर अपना क्लेम कर रहे हैं.
अगर जापान और चीन के बीच चल रहा ये टकराव गहराता है तो ज़ाहिर है अमेरिका के साथ ही कई शक्तिशाली देश भी इस युद्ध में दखल देंगे. आने वाले समय में प्राकृतिक संपदाओं को लेकर होने वाले युद्धों में बढ़ोतरी हो सकती है, जिससे पूरे एशिया की तस्वीर बदल सकती है.
4. उत्तर कोरिया और उसका सरफ़िरा तानाशाह
उत्तर कोरिया दुनिया का एकमात्र ऐसा देश है, जिसने 21वीं सदी में भी परमाणु हथियारों की टेस्टिंग की है. हालांकि इस देश के हथियार और इंफ्रास्ट्रक्चर आज भी अपरिपक्व हालातों में है. ये एक गरीब और पिछड़ा हुआ देश है. किम जोंग उन जैसे सिरफ़िरे तानाशाह होने के बावजूद इसकी संभावना कम ही है कि उत्तर कोरिया दुनिया पर परमाणु हमले की पहल करने की जुर्रत कर सकेगा.
उत्तर कोरिया की असली समस्या अपने पड़ोसी देशों के साथ होने वाला संघर्ष है. जापान और दक्षिण कोरिया के साथ इस देश के संबंध अच्छे नहीं हैं. उत्तर कोरिया अगर इन देशों के खिलाफ़ परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करता है, तो कई पश्चिमी देशों से लेकर रूस तक उत्तर कोरिया के इस कृत्य के लिए उसे भयंकर सज़ा दे सकते हैं. ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में ऐसा कुछ भी करना उत्तर कोरिया की इकोनॉमी की रीढ़ तोड़ उसके आर्थिक हालातों को और भी खराब कर सकता है.
5. ताइवान-चीन संघर्ष
ताइवान के पास आज खुद की कोई राजनीतिक पहचान नहीं है. चीन इस देश को अपने साथ मिलाने को आतुर है, लेकिन ताइवान स्वतंत्र ही रहना चाहता है. यही कारण है कि इन दोनों देशों में कोई न कोई विवाद उभरता रहता है. अगर दोनों देशों के बीच मसले ठीक होने शुरू नहीं हुए तो युद्ध की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है. चीन किसी देश के साथ युद्ध में शामिल होगा तो ज़ाहिर सी बात है अमेरिका इस युद्ध में दखलंदाज़ी ज़रूर करेगा. दो सुपरपावर देशों का आपस में युद्ध किसी भी हालातों में धरती के लिए सुरक्षित नहीं कहा जा सकता है.
6. सायबर या डिजिटल हमला
इंटरनेट पर लोगों की बढ़ती निर्भरता ने एक और नए खतरे को जन्म दिया है. आज साइबर दुनिया के ज़माने में कई देश वायरस के हमलों के चलते असुरक्षित हो गए हैं. हथियार के तौर पर केवल एक माउस के सहारे डिजिटल अटैक को अंजाम दे कर, कई देशों को असहाय बनाया जा सकता है.
हालांकि, साइबर अटैक्स को कभी भी एक बेहद बड़े स्केल पर अंजाम देने की कोशिश नहीं की गई है. जो संस्थाएं इस तरह के हमलों से जुड़ी हुई हैं, वे भी बड़े स्तर पर हमला करने से बचती हैं.
आज कंप्यूटर्स और आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस का स्तर दिन-प्रतिदिन बढ़ता जा रहा है. ऐसे में भविष्य में अगर कोई ग्लोबल स्तर पर साइबर हमला होता है तो ऐसे हमलों से बचना मुश्किल होगा. कोई भी व्यक्ति, संस्था या देश ऐसे हमलों के पीछे हो सकता है. यही कारण है कि सिस्टम सिक्योरिटी आज बेहद ज़रूरी है.
7. दक्षिण पूर्व एशिया-चीन का समुद्री संघर्ष
दक्षिण पूर्व एशिया और चीन के समुद्री संघर्ष में चीन, ताइवान, मलेशिया, फ़िलीपींस, इंडोनेशिया और वियतनाम जैसे देश शामिल हैं. इन देशों के बीच होने वाले टकराव की वजह, नैचुरल गैस रिज़र्वस और शिपिंग रुट्स से जुड़ी हुई है. चूंकि हर देश इन रिज़र्वस पर अधिकार जमाने की कोशिश में है, इसी वजह से तनाव इतना गहरा हो चुका है. इन देशों के साथ शांति स्थापित करने के भी प्रयास किए गए हैं, लेकिन इससे कोई खास फ़ायदा नहीं हो पाया है.
ज़्यादातर देश इस मामले में या तो तटस्थ और न्यूट्रल बने हुए हैं या फ़िर चीन की तरफ़दारी कर रहे हैं. इस मामले में चीन का पक्ष मज़बूत होता देख अमेरिका ने भी दखलअंदाज़ी करने की कोशिश की है.
शायद यही कारण है कि दक्षिण पूर्व एशिया और चीन समु्द्री संघर्ष अब चीन और अमेरिका के बीच की लड़ाई बन कर रह गया है. अमेरिका इस मामले में चीन को कई बार चेतावनी भी दे चुका है कि वह इस मामले में ग्लोबल और क्षेत्रीय शांति बनाए रखे. ज़ाहिर है, तनाव की सरगर्मियों के बीच कोई एक गलती, ग्लोबल युद्ध को बढ़ावा दे सकती है.
8. साफ़ पानी को लेकर विश्व युद्ध
इस तरह की संभावना को तो आपने भी कहीं न कहीं सुना ही होगा. आम लोगों के साथ ही कई ऐसे विशेषज्ञ भी मानते है कि साफ़ पानी को लेकर तीसरा विश्व युद्ध होने की संभावना काफ़ी ज़्यादा है.
दुनिया में साफ़ पानी की उपलब्धता सीमित है.
धरती का एक बड़ा हिस्सा यूं तो समुद्र से घिरा है, लेकिन समुद्री पानी खारा होने के चलते पीने के लायक इस्तेमाल में नहीं लाया जा सकता है. यही कारण है कि पानी बचाने की मुहिम को कई क्षेत्रों में बेहद गंभीरता से लिया जा रहा है.
विशेषज्ञों का मानना है कि पानी की कमी भविष्य में गृहयुद्धों और देशों के बीच तनाव को बढ़ावा दे सकती है. हालांकि एक हालिया रिसर्च के मुताबिक, दुनिया के तमाम ग्लेशियर्स इस आपदा से मानव सभ्यता को बचा सकते हैं, लेकिन वर्तमान हालातों को देखते हुए ये कितने कारगर साबित होंगे, इस बारे में कहना मुश्किल होगा.
9. कश्मीर समस्या
1947 में भारत और पाकिस्तान के अलग होने के बाद से ही दोनों देशों के बीच कश्मीर को लेकर समस्या जस की तस बनी हुई हैं. राजनीतिक संबंधों से लेकर, अवाम और हाल ही में खेल और कला के लोग भी इस टकराव से प्रभावित हुए हैं.
भारत-पाक के बीच क्रॉस बॉर्डर फ़ायरिंग आम है. दोनों ही देशों की ज़्यादातर अवाम जहां शांति परस्त है, वहीं कई धार्मिक गुरुओं और चरमपंथियों ने इन देशों को ज़हर के रास्ते पर भी धकेलने की कोशिश की है.
ग्लोबलाइज़ेशन के दौर में अगर भारत और पाकिस्तान के बीच कश्मीर को लेकर युद्ध होता है, तो ये केवल दोनों देशों के बीच न होकर एक ग्लोबल युद्ध की तरह ही होगा.
चीन के पुराने रिकॉर्ड, स्वार्थ और दूसरे कई कारणों के चलते संभावना यही है कि चीन इस युद्ध में पाकिस्तान का साथ दे सकता है.
कश्मीर में बद से बदतर होते हालातों को केंद्र सरकार कंट्रोल करने में पूरी तरह से नाकामयाब रही है. ऐसे में भारत-पाकिस्तान के बीच बढ़ते तनाव के बीच इन दोनों देशों की आगे की राह 70 सालों बाद भी धुंधली बनी हुई है.
10. रूस और NATO
तीसरे विश्व युद्ध की जड़ एक बार फ़िर से रूस हो सकता है. नॉर्थ अटलांटिक ट्रीटी संस्था (NATO), जिसके सदस्य अमेरिका, यूके, फ़्रांस, जर्मनी और 22 अन्य देश हैं. इस संस्था का मकसद NATO के किसी भी सदस्य पर बाहरी हमला होने की स्थिति में उसे सुरक्षा मुहैया कराना है.
NATO के खिलाफ़ रूस की लड़ाई का मतलब होगा कि वो सीधा अमेरिका, यूके और जर्मनी जैसे देशों से टक्कर लेगा. साफ़ है ऐसा होने पर पूरी दुनिया की इकोनॉमी पर गहरा असर पड़ेगा.
NATO की सेना वर्तमान में लाटविया, एस्तोनिया और लिथुआनिया जैसे देशों को रूस के खतरे से सुरक्षा मुहैया करा रही है. माना जाता है कि रूस अपनी युद्ध रणनीतियों और परमाणु हथियारों के जख़ीरों की बदौलत किसी भी तरह के हमले या काउंटर अटैक के लिहाज से पूरी तरह से तैयार है. अगर रूस इस युद्ध में थोड़े भी कदम बढ़ाता है तो इसे द्वितीय शीत युद्ध और तृतीय विश्व युद्ध की आहट मान लेना अतिश्योक्ति नहीं होगी.