ज़िंदगी की छोटी-छोटी दिक्क्तों से यदि हार मान चुके हैं, तो इन पेड़ों से सीखिए जीने का सलीका

Sumit Gaur

घर से निकलते ही आपने अपने आस-पास न जाने कितने ही पेड़ देखे होंगे. कुछ पेड़ों को देख कर, तो उनकी उम्र का अंदाज़ा ही लगाना मुश्किल-सा लगता है. जबकि कुछ पेड़ तो ऐसी-ऐसी जगहों पर उगे हुए होते हैं कि विश्वास ही नहीं होता कि ऐसी जगह पर भी ये हरा कैसे है? आज हम आपके लिए कुछ ऐसे ही पेड़ों की तस्वीरें ले कर आये हैं, जिन्हें देख कर ऐसा लगता है जैसे इन्होंने मृत्यु में भी अपना जीवन तलाश कर लिया हो.

सरहदों में न बंध पाया एक पेड़.

जब ज़मीन पर जगह न हो, तो आसमान में मकान बनाना ही पड़ता है.

सबसे तन्हा, पर सबसे बुलंद. 

लोगों को रफ़्तार की अहमियत समझाते हुए.

इन्सान बेशक अपनी जड़ें भूल गया हो, पर मुझे अब भी याद है. 

मुझे तो काट दोगे, पर मेरे इरादों को कैसे काटोगे? 

बीच रेगिस्तान भी खुद को बचाए रखने का हुनर कोई इनसे सीखे.

मैं बेशक झुक गया हूं, पर मेरे अब भी हौसले नहीं झुके हैं.

मैं अनंत की तरह हूं, हर जगह अपनी जगह बना लेता हूं.

जिस तरफ़ रोशनी, उस तरफ़ हम. 

हमसे ऊंचा कोई हो सकता है भला!

विश्वास से पाया जीने का हौसला.

लो मैं फिर आ गया.

नई उमंग, नए सपने.

मर कर भी ज़िंदा है ज़िंदगी. 

फ़र्श पर फैली जड़ें. 

ज़िंदगी ख़त्म होने से दुनिया ख़त्म नहीं हो जाती.  

इसे कहते हैं खुली हवा में सांस लेना.

यहां इश्क़बाज़ी के लिए कोई जगह नहीं है. 

आ आज समंदर की थोड़ी गहराई नाप लें.

अकेला हूं, पर सबकी नज़र में हूं.

दो राहों के बीच भी खुद का वजूद बनाये हुए.

इसे कहते हैं खतरों के खिलाड़ी.

चट्टान की तरह सख्त, पर ज़िंदगी की तरह रंगीन. 

पत्थर में पनपता प्यार.

इतिहास के करीब इतिहास को समेटे हुए.

हम लड़ेंगे साथी इस उदास मौसम के लिए.

टेढ़ा है, पर मेरा है. 

ज़िंदगी की तलाश में पहला कदम.

लोगों के सफ़र का एक ठहरा हुआ साथी.

Source: acidcow

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