15 अगस्त 1947 को हमारा देश आज़ाद हुआ. देश अभी सही तरीके से आज़ादी का जश्न मना भी नहीं पाया था कि उससे पहले ही विभाजन के काले साये ने पूरे देश को घेर किया. भारत छोड़ कर पाकिस्तान जाने वाले और पाकिस्तान से भारत आने वाले लोगों के लिए वो दिन आज भी ख़ुशी से ज़्यादा दहशत मन में पैदा कर जाता है. विभाजन के दौरान उठे आतंक के तूफ़ान ने 10 लाख से ज़्यादा लोगों को मौत के घाट उतार दिया. करोड़ों लोगों को अपना घर-परिवार, ज़मीन-जायदाद और रिश्तेदारों को छोड़ कर दूसरी जगह जाना पड़ा.
उस भयानक दौर में, जहां सभी एक-दूसरे के बिना सोचे समझे दुश्मन बने हुए थे. कुछ इंसान ऐसे भी थे, जो जाति, धर्म और देश से ऊपर उठ कर इंसानियत की खातिर पीड़ित लोगों की जान बचाने में लगे हुए थे. अनेक लोगों ने उस दौर में अपनी जान की परवाह किये बिना कई लोगों की जान बचाई थी, जिन्हें वो जानते तक नहीं थे.
इतिहास में ऐसे लोगों का कहीं जिक्र नहीं मिलता. राजनीतिक रूप से ऐसे लोगों को कोई महत्व नहीं मिला, जिस वजह से आम जनता भी इंसानियत को ज़िन्दा रखने वाले इन फरिश्तों से अनजान रही. ऐसे ही कुछ हीरोज़ के बारे में आज हम आपको बताते हैं, जिन्हें इतिहास भुला चुका है.
1. हरिजन बाबा
विभाजन के समय लगभग 1.5 करोड़ लोगों को अपने मूल जन्मस्थान को छोड़ कर ऐसी जगह जाना पड़ा, जहां उनकी जान को कोई खतरा नहीं हो. दोनों देशों में उस तरफ़ साम्प्रदायिक दंगे अपने चरम पर थे. इन दंगों की सबसे ज़्यादा कीमत छोटे बच्चों और महिलाओं को चुकानी पड़ रही थी. उस समय अनेक महिलाएं अपने घर वालों से बिछड़ कर भटक रही थी. ऐसे माहौल में दिल्ली में एक शख्स थे, जिन्हें लोग हरिजन बाबा कहते थे. उन्होंने सैकड़ों औरतों को पनाह दी, और सही सलामत उन्हें उनके परिवार वालों तक पहुंचने में मदद भी की.
2. ‘Khaksar’ संगठन का एक गुमनाम सिपाही
‘Khaksar’ एक इस्लामिक मिलिटेंट समूह था, जो Inayatullah Khan द्वारा स्थापित किया गया था. इनका मकसद देश को ब्रिटिश हुकुमत से आज़ाद करवाना था. विभाजन के समय इस संगठन के कमांडर ने दंगों को रोकने और पीड़ित लोगों की मदद करने के लिए अपने सदस्यों को कहा.
विभाजन के कुछ समय पहले रावलपिंडी के गॉर्डोन कॉलेज़ के बाहर Khaksar के एक सिपाही को कुरान के फटे हुए कुछ पन्ने मिले. कोई अनहोनी ना हो जाये, इस वजह से उस सिपाही ने वो पन्ने एक कुएं में फेंक दिए. इसके बाद भी उन्हें डर था कि शहर में दंगे भड़क सकते हैं. इसलिए वो लोगों को समझाने एक कोलोनी में गये, वहां उस सिपाही को किसी ने चाकू से गोदकर मार डाला.
3. दत्त भाई और डॉक्टर अब्दुर रौफ
दंगों के समय उग्र भीड़ लोगों की जान लेने पर इतनी उतारु थी कि वो अस्पतालों में हमला करने से भी नहीं झिझक रही थी. अमृतसर में एक अस्पताल में कुछ मुस्लिम मरीज़ भर्ती थे. अचानक हिन्दू और सिख लोगों के एक समूह ने उनके मारने के लिए अस्पताल पर हमला कर दिया. उन सभी को बचाने के लिए उस समय डॉक्टर पुरुषोत्तम दत्त और उनके भाई आगे आए.
इसी तरह अमृतसर के एक डॉक्टर अब्दुर रौफ ने 200 से ज़्यादा गैर मुसलमानों की जान बचाई थी. इसके अलावा शान्ति और अमन का संदेश भी लोगों तक अपने भाषणों से रौफ ने पहुंचाया.
4. एक सिख जिसने सैकड़ों मुसलमानों को आश्रय स्थल मुहैया करवाया
जून 1947 में अमृतसर में भयानक रूप से दंगे भड़के हुए थे. मुसलमानों को हिन्दू और सिख समुदाय के लोगों की उग्र भीड़ खोज-खोज कर मार रही थी. उस समय मुस्लिम समुदाय के कुछ लोगों का समूह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के एक स्थानीय नेता बावा घनश्याम के पास मदद के लिए गया. अपनी जान की परवाह किये बिना इस शख्स ने इन लोगों को अपने घर में पनाह दी.
5. एक बहादुर पुलिसवाला और एक गुमनाम नौजवान
अगस्त 1947 में पूर्वी पंजाब के फिरोजपुर में लगभग 300 मुस्लिमों ने अपनी जान बचाने के लिए एक स्थानीय मस्जिद में शरण ले रखी थी. इसी मस्जिद के पास में ही एक पुलिस स्टेशन भी था. यही प्रमुख वजह थी कि उन लोगों ने इस जगह को अपने आश्रय स्थल के रूप में चुना था. पुलिस ऑफिसर त्रिलोकनाथ ने दंगों के समय भी इस मस्जिद की सुरक्षा में कोई ढिलाई नहीं बरती. इस वजह से सभी शरणार्थियों की जान बच गई.
इन्हीं शरणार्थियों में एक बीमार शख्स की दवाई रात के समय एक दिन खत्म हो गई. ऐसे उपद्रव के माहौल में भी एक नौजवान उस शख्स की मदद करने के लिए दवाई लेने बाहर निकल पड़ा और वो बहादुर युवक दोबारा नहीं लौटा. बाद में पता चला कि वेह्शी भीड़ ने उसे मौत के घाट उतार डाला था.
6. एक हिन्दू आश्रम जो बना मुसलमानों के लिए पनाहगाह
दिल्ली के नरेला क्षेत्र में विभाजन के समय स्वामी सरूपानंदजी का आश्रम अनेक मुस्लिम लोगों के लिए तत्कालीन समय में किसी खुदा से कम नहीं था. यहां के धार्मिक नेता ने ना केवल मुसलमानों को रहने की पनाह दी, बल्कि अपनी जान की परवाह किये बिना उन्हें यमुना पार उनके रिश्तेदारों तक भी सही-सलामत पहुंचने में मदद की.
7. The Tapiala Dost Muhammad Village Peace Committee
लाहौर के Sheikhupura जिले के गांव Tapiala में मुस्लिम सम्प्रदाय के लोगों की तादाद काफ़ी ज़्यादा थी. यहां कुछ ही घर खत्री हिन्दू और सिख परिवारों के थे. गांव के मुसलमानों ने उन गैर मुसलमानों की जान की हिफाजत के लिए एक शान्ति सभा का गठन किया था.
8. एक शख्स जिसने अभिनेता सुनील दत्त के परिवार को बचाया
आज के पाकिस्तान में स्थित झेलम कस्बे में स्थित खुर्द अभिनेता सुनील दत्त के पूर्वजों का पुश्तैनी गांव था. दंगों के समय इन्हें अपने गांव को छोड़ कर पास के गांव में एक मुस्लिम दोस्त याकूब के घर में शरण लेनी पड़ी. जब दंगाइयों को इस बात की भनक लगी, तो उन्होंने याकूब के घर धावा बोल दिया. ऐसे हालात में याकूब और उसका भाई बंदूक लेकर अपने दोस्त के परिवार की जान बचाने भीड़ के सामने खड़े हो गये. इस तरह उन्होंने सुनील दत्त के परिवार की रक्षा की.
9. एक हिन्दू परिवार जिसने पाकिस्तानी क्रिकेटर इंज़माम-उल-हक के माता-पिता को बचाया
इंज़माम के परिवार को दंगों के समय हरियाणा के हिसार में पुष्पा गोयल नामक एक महिला के परिवार वालों ने उग्र भीड़ से बचाया था. इंज़माम के घर वाले 70 साल बाद भी इस बात को नहीं भूले हैं. इंज़माम की 1999 में हुई शादी में भी उनके माता-पिता ने पुष्पा जी को मुल्तान बुलाया था.
हमारी पीढ़ी ने विभाजन के उस भीषण कातिलाना दौर को नहीं देखा. लेकिन जिन लोगों ने उस स्याह दौर को देखा है, आज भी जब वो उसे याद करते हैं, तो उनकी रुंह कांप जाती हैं. पूरी दुनिया में अनेक ऐसे मौके आये हैं, जब इंसान ही इंसान की जान का दुश्मन बना है. ऐसे माहौल में भी कुछ लोग ऐसे सामने आ हो जाते हैं, जो इंसानियत को ज़िन्दा रखने के लिए अपनी जान की भी परवाह नहीं करते हैं. ऐसे लोगों को इतिहास की किताबों में चाहे जगह ना मिल पाई हो, लेकिन जिन लोगों को उन्होंने बचाया, उनके परिवार वालों के दिल में आज भी उनके लिए सम्मान ज़िन्दा है.