सुबह दूध पी कर ऑफ़िस के लिए निकल रहा था तब घरवालों ने बताया कि सिर्फ़ दूध पी कर घर से निकलना अशुभ होता है, कुछ और खा लो.
घर में सब लोग टीवी देखते हैं, फ़िल्में देखते हैं कुल मिलाकर 21वीं सदी के जीव ही हैं, फिर भी उनकी दिनचर्या में अंध विश्वास रच-बस गया है. ये बात सिर्फ़ मेरे परिवार पर लागू नहीं होती, ये सच्चाई भारत के अधिकांश परिवारों की है.
अभी कुछ ही साल पहले तक एक बाबा सफ़लता दिलाने के लिए हरी चटनी के साथ समोसा खिला रहे थे और कई न्यूज़ चैनल वाले उनका प्रोग्राम पैसे लेकर चलाते थे. ख़ैर, बाबा की दुकान तो बंद हो गई लेकिन उनके अंधविश्वास के ख़रीदार अभी भी हैं और कहीं और से शॉपिंग कर रहे हैं.
इंटरनेट पर आपको ऐसे कई वीडियो मिल जाएंगे जिसमें एक शर्ट पैंट और टाई लगाया इंसान लोगों से अजीब हरकतें करवा रहा है. आधुनिक सा दिखने वाला ये इंसान माथे पर DVD सटा कर आपके भीतर दिव्य शक्तियां डालने की क्षमता रखता है.
हमारी पहुंच मंगल ग्रह तक हो गई है फिर भी हम किसी बड़े काम को शुरु करने के लिए मंगलवार का इंतज़ार करते हैं. अपनी छोड़िये दूसरों के सैटेलाइट भी हमारे रॉकेट से अंतरिक्ष में जा रहे हैं और हम बिल्ली के रस्ता काटने से गली के आगे नहीं बढ़ पाते.
आज ये बात इसलिए हो रही है क्योंकि आज नेशनल साइंस डे है. आज ही के दिन साल 1928 में महान वैज्ञानिक सी.वी. रमन ने रमन इफ़ेक्ट की ख़ोज की थी और जिसके लिए उन्हें नोबल प्राइज़ भी मिला था. सी.वी. रमन के इस देश में लोगों के जीवन में विज्ञान की क्या एहमियत चवन्नी बराबर नहीं है?
हमारे संविधान में लिखा है कि देश के हर नागरिक को वैज्ञानिक सोच रखनी चाहिए और वैज्ञानिक सोच को बढ़ावा दिया जाना चाहिए. उन्होंने परिकल्पना की थी एक दिन हमारा समाज तर्कों पर आधिरत समाज होगा, वो दिन अगले सौ-पचास साल तक आता नहीं दिख रहा.
फ़िलहाल, आम इंसान तो छोड़िए जो लोग सम्मानित ओहदों पर बैठे हैं और जो समाज की दशा-दिशा तय करते हैं उन तक ही वैज्ञानिक सोच नहीं पहुंची है. आपको भी एक सेवानिवृत जज साहब याद होंगे, जिन्होंने कहा था कि मोरनी मोर के आंसुओं को चुग कर गर्भवती होती है.
न्यूज़ देखते होंगे तो आपने भी देखा होगा कि एक एंकर साहिबा गाय के लाभ गिना रही थीं, उन फ़ायदों में एक फ़ायदा ये भी था कि घी को जलाने से ऑक्सिज़न उत्पन्न होता है.
मेरठ में 500 टन आम की लकड़ी इसलिए हवन में जला दी गई थी क्योंकि वो वायु प्रदूषण ठीक करना चाहते थे, उसी रोज़ विडंबना की मौत अस्थमा से हो गई थी!
गाहे-बगाहे हमारे सम्मानित नेतागण भी अपनी प्रतिभा का प्रमाण दे ही देते हैं. कोई कहता है कि महाभारत के समय इंटरनेट था, तो किसी के अनुसार भगवान गणेश की प्लास्टिक सर्जरी हुई थी. एक साहब तो और आगे जा कर हनुमान भगवान की जाति भी पता कर आए थे.
जब ऐसे लोग समाज का मार्गदर्शन करेंगे, तो साधारण लोग किस ओर जाएंगे। ख़ैर, जिधर भी जाएं उन्हें रास्ते में विज्ञान तो नहीं मिलने वाला.