भारत के इस बहादुर सैनिक के आगे फेल हो गई थी जापानी सेना की मशीन गन

Priyodutt Sharma

आज हम आपको बताने जा रहे हैं एक ऐसे भारतीय सैनिक की कहानी जिसने अपने आप को मार कर अपने देश की रक्षा की. वैसे किसी भी देश की सेना में ऐसे मामले देखने-सुनने को मिलते हैं. हरेक सैनिक अपने अंदर एक जज़्बा लेकर जीता है.

बात दूसरे विश्वयुद्ध के समय की है. जापानी फौज इंफाल से भारत में घुसने की कोशिश कर रही थी.

जापानी फौज के 90,000 सैनिक ब्रिटिश इंडियन आर्मी की ओर बढ़ रहे थे और उनका इरादा इंफाल को अपनी ओर करने का था. भारत के कुछ जासूसों ने यह पता लगाया कि जापानी सेना उत्तर दिशा की ओर बढ़ रही है.

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उसी समय जमादार राऊ अब्दुल हाफिज़ खान की पलटन वहां पहुंच गई. और उन्होंने पूरी तरह से उस जगह को घेर लिया.

अब्दुल हाफिज़, ब्रिटिश इंडियन आर्मी की 9वीं जाट रेजीमेंट में जमादार थे. मूलत: पंजाब के कलानौर से थे. उन्हें आदेश मिला था कि अपने 40 प्लाटून के साथ वो पहाड़ की चोटी पर तैनात हो जायें. यहां ना उनको कोई बैक-अप मिलना था, ना ही किसी तरह की अन्य सुविधा. यह पूरी तरह से एक सुसाइड मिशन था. ना जाने अब्दुल हाफिज़ ने अपनी पलटन से क्या कहा कि उन सब को आज अपना अंतिम दिन प्रतीत होने लगा और डर बहुत दूर भाग गया.

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जापानी सेना के पास मशीनगन थी. उस मशीनगन के सामने इनकी आधी प्लाटून ढह गई थी. अब्दुल हाफिज़ के भी पैर पर गोली लगी थी. वो हार मानने वालों में से नहीं थे. आधी सेना के बलबूते उन्होंने मशीनगन के सामने आकर ग्रेनेड फेंकना शुरु कर दिया.

हाफिज़ ने मशीनगन को चारों ओर घूमाना शुरु कर दिया. उनकी मशीनगन का बैरेल गर्म हो चुका था. पहले चाकू से उसे निकला फिर अपने बहादुर हाथों से उसे घूमना शुरू कर दिया.

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दूसरी ओर से भी धड़ाधड़ गोलीबारी चलने लगी, लेकिन हाफिज़ ने उन्हें जल्द ही बचाव करने पर मज़बूर कर दिया.

हाफिज़ ने ऑटोमैटिक गन अपने हिप से बांधी और मैदान में कूद पड़े. सामने से निकली गोली उनकी छाती पर लगी लेकिन यह बहादुर छाती पर गोली खाने से कहां रुकने वाला था?

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वो पेट के बल लेट कर गोली-बारी करने लगे और उन्होंने अपनी प्लाटून से कहा कि, “अपने डिफेंसिव मोड में जाओ और मैं कवर फायर देता हूं”. यह उनके अंतिम शब्द थे.

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इस बहादुरी के लिए जमादार अब्दुल हाफिज़ राऊ को विक्टोरिया क्रास से सम्मानित किया. ऐसे सैनिकों की बदौलत ही देश की सुरक्षा को खतरे से बचाया जाता है. ऐसे बहुत से किस्से हैं, जो या तो कहीं दबे हुए हैं या किसी की ज़ुबान से निकलने वाले कहींं लिखे नहीं गये. गर आपको भी किसी ऐसे बहादुर सैनिक के बारे में पता है तो हमें इत्तला करें. हम उनपर लिखने से नहीं कतरायेगें.

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