घर-घर जाती थी हमारी कंजक, खुशियां देती थी चंद सिक्कों की खनक, ऐसी थी मेरी बचपन की रामनवमी

Kratika Nigam

बड़े ज़रूर हो गए हैं आज, लेकिन बचपन की वो रामनवमी बहुत याद आती है. जब बगलवाली आंटी मम्मी से कहती थीं कि सुबह अपनी बेटी को तैयार करके मेरे यहां भेज देना. इस दिन स्कूल की भी छुट्टी होती थी, तो वो स्कूल की जो नींद थी वो आज बहुत याद आई क्योंकि आज भी रामनवमी है और आज आंटी की आवाज़ नहीं आई, बल्कि मेरा अलार्म बजा और मुझे याद आया कि किसी आंटी के यहां नहीं, बल्कि ऑफ़िस जाना है… वो भी टाइम पर.

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मगर दिल के किसी कोने में इस दिन की कुछ यादें हैं, जो आपसे साझा करने जा रही हूं. झरोखे से झांकती इन यादों में कुछ ऐसे पल होंगे जिनसे हो सकता है आप भी वास्ता रखते हों.  

1. रामनवमी के दिन सुबह-सुबह कंजक के लिए जाना

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दोस्तों के साथ एक टोली बनाकर, अच्छे-अच्छे कपड़े पहन कर और हाथ में बर्तन लेकर निकल जाते थे. लिस्ट तब भी बनानी पड़ती थी कि किस-किस के घर जाना है, लेकिन वो लिस्ट हमारे दिमाग़ में उसी टाइम बनती थी. वो पल सबसे अच्छा था जब लास्ट में पैसे मिलते थे. आज ख़ुद के पास पैसे हैं, मगर वो वाली मासूमियत नहीं है.

2. आज के दिन हमारी बहुत वेल्यू की जाती थी

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बचपन में आज के दिन हर जगह हमारी वैल्यू होती थी. अगर किसी के घर में लड़की होती थी, तो एक रात पहले से लिस्ट बनने लगती थी कि इनकी लड़की हो गई. वो भी तो नए आए हैं, उनके यहां भी दो लड़कियां हैं. तब कहां पता था कि कन्या भ्रूण हत्या भी होती है. जिस जगह मैं रहती हूं, आज वहां बड़ी मुश्किल से कंजक मिल पाती हैं क्योंकि अब लोग Sophisticated हो गए हैं.

3. दोस्तों के साथ मस्ती करना

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कंजक खाने की ख़ुशी और दोस्तों के साथ पूरे रास्ते मस्ती, ऐसी होती थी मेरी बचपन की रामनवमी. कभी-कभी तो उनके यहां भी बिना डर और शर्म के चले जाते थे, जिन्होंने बुलाया भी नहीं होता था. तब बच्चे थे न इसलिए चारों-तरफ़ ख़ुशियां दिखती थीं. आज बड़े हो गए तो सब कुछ फ़ॉर्मल हो गया है और कहीं न कहीं ख़ुशियां कम हो गई हैं. 

4. अपने और दोस्तों के पैसों से कॉम्पिटिशन करना

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आज तो एक-दूसरे से आगे निकलने का कॉम्पिटिशन करते हैं. तब थोड़े से सिक्कों के लिए प्यार वाली लड़ाई करते थे. अगर किसी के पास ज़्यादा पैसे होते थे, तो उसके बराबर अपने पैसे करने के लिए एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते थे, नहीं तो उसके पैसे किसी चीज़ में खर्च करा देते थे. आज तो एक-एक रूपये का हिसाब रखना पड़ता है, तब बस ख़ुशियों का हिसाब रखते थे.

5. वो हलवा-पूरी और चने

बचपन में आज के दिन हर घर में हलवा-पूरी और चने मिलते थे. आज ये हलवा-पूरी मिलना मुश्किल हो गई है. आज मेरे ऑफ़िस में मेरे एक साथी हलवा-पूरी लेकर आए और मुझे अपने बचपन में ले गए. उनकी उस हलवा-पूरी का स्वाद सिर्फ़ मेरे मुंह तक नहीं, बल्कि वो दिल के किसी कोने में आज के दिन को याद करती बच्ची के पास ले गया, जो मेरे ही दिल में सुबह से कहीं बैठी है.

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कोई लौटा दे वो प्यारे-प्यारे दिन…जिनमें सिर्फ़ ख़ुशियां थीं न कि टेंशन. आज कोई मुझे मेरे इन पैसों के बदले मेरे बचपन के चंद सिक्के लौटा दे, तो मैं हंसते-हंसते उन्हें ये पैसे दे दूं.

क्या आप भी ऐसा ही करेंगे. अगर हां, तो हमसे कमेंट बॉक्स में अपनी यादें ज़रूर बांटिएगा.

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