कैंसर हो या कोई अन्य समस्या उससे किस तरह लड़ना है, ये हमें इस रिटार्यड प्रोफ़ेसर से सीखना चाहिए

Sanchita Pathak

इतने मायूस तो हालात नहीं

लोग किस वास्ते घबराए हैं

जां निसार अख़्तर के ये लफ़्ज़ कितने सटीक हैं. कई बार हम परेशान तो बेहद हो जाते हैं पर देखा जाए तो परेशानी की कोई बात नहीं होती. दुनिया में कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो बड़ी से बड़ी परेशानी को हंसकर टाल जाते हैं, मानो कुछ हुआ ही न हो.

Humans of Bombay ने अपने Instagram पेज पर ऐसे ही एक ज़िन्दादिल और मज़बूत रिटार्यड प्रोफ़ेसर की कहानी शेयर की है. पढ़िए, आपके नकारात्मक विचार बदलेंगे.

’10 साल पहले पता चला कि मुझे कैंसर है. मुझे अच्छे से वो पल याद है, ये मेरे साथ नहीं होना था. मेरे परिवार ने मुझे नहीं बताने का निर्णय लिया था. उनके चेहरे पर साफ़ नज़र आ रहा था. मुझे यक़ीन नहीं हुआ. मुझे कभी सिरदर्द ने भी तकलीफ़ नहीं दी थी. मैंने उनसे कुछ नहीं कहा… बस अब तक की ज़िन्दगी के कुछ लम्हे मेरे ज़हन में घूमते रहे. उससे मुझे एहसास हुआ कि मेरी ज़िन्दगी इससे बड़ी है. उस लम्हे में मैंने समझ लिया था कि मुझे क्या करना है. मैं ज़िन्दगीभर एक खिलाड़ी रहा हूं, एक ऐसा शख़्स रहा हूं जिसने ज़िन्दगी को अच्छे से जिया है. मेरे रास्ते में कैंसर कैसे आ सकता है? एक रिटायर्ड प्रोफ़ेसर होने के बावजूद मैंने अपनी दिनचर्या के हिसाब से चलने का निर्णय लिया. कैंसर के लिए इसमें कोई जगह नहीं. मैं इसे ख़ुद पर हावी होने नहीं दूंगा. जब मेरे परिवार ने मुझे मेरी बीमारी के बारे में बताया तो मैंने बस इतना कहा,’ठीक है.’

कैंसर से पहले और बाद में मेरी ज़िन्दगी में कोई फ़र्क नहीं आया है. जब मैं काम कर रहा था तो मेरा दिन 4:30 बजे शुरू होता था और रात के 11 बजे ख़त्म होता था. मैं प्रोफ़ेसर था और बच्चों का स्पोर्ट्स कोच भी. मैं बच्चों के बीच कभी आराम से न बैठने के लिए मशहूर था. प्रैक्टिस के बीच वो कहते कि वो बूढ़े हो जाएंगे लेकिन मुझे थकते हुए नहीं देखेंगे.

लोग मुझसे अक़सर पूछते हैं कि मेरा सिक्रेट क्या है- मुझे लगता है कैंसर से लड़ने वाला हर व्यक्ति आपको ये बताएगा. ये एक मानसिक गेम है. मैं सुबह 4:30 बजे उठता हूं और कपड़े धोने से लेकर इस्त्री करने तक अपना सारा काम करता हूं. अपनी Hobbies ( क्लासिकल गाने सुनना और एस्ट्रोलोजी के बारे में पढ़ना) से मैं अपने दिमाग़ को व्यस्त रखता हूं. और हां, अपनी पत्नी को भी समय देता हूं- एक रिटायर्ड प्रोफ़ेसर के लिए ये बेहद ज़रूरी है. हम दोनों को पुरानी फ़िल्में बेहद पसंद है. और बाहर जाना भी! हम डिनर पर जाते हैं और अनगिनत फ़िल्में देख चुके हैं.

अगर कोई मुझसे मेरी रिटायर्ड ज़िन्दगी के बारे में पूछता है तो मुझे नहीं लगता कि मैं रिटायर्ड हूं, बल्कि मुझे लगता है कि मैं कुछ और कर रहा हूं. स्पोर्ट्स मेरी ज़िन्दगी का अहम हिस्सा रहा है. मैं रोज़ाना 4 घंटे टेबल टेनिस खेलता हूं. पलावा आने के बाद मैं टेबल टेनिस एसोसिएशन का मेंटर हूं. मैं 40 के ऊपर की उम्र के लोगों को कोचिंग देता हूं. जवान बच्चों को उनकी एनर्जी देखकर आश्चर्य होगा. कुछ बदलाव आया है तो वो है डॉक्टर के अपॉइंटमेंटस और दवाइयां. इसके अलावा मेरी ज़िन्दगी पहली की तरह ही चल रही है. कल मैं डॉक्टर के पास गया था और कल मैं एक टेबल टेनिस मैच में हिस्सा ले रहा हूं. मुझे कैंसर को अपनी दिनचर्या का हिस्सा बनाना है, मेरी ज़िन्दगी का नहीं. मैं उसे ख़ुद पर हावी होने नहीं देता. मैंने उससे न भागने, उसे नज़रअंदाज़ न करने का निर्णय लिया है. मैंने उसे उम्मीद और जुनून से कड़ी चुनौती देने का फ़ैसला किया है.’

एक बात याद रखिए. जो भी हालात अभी हैं, ज़रूरी नहीं कि आगे भी वही होगा. अगर आज का दिन ठीक नहीं तो क्या हुआ, सिर्फ़ 1 दिन की ही तो बात है. कल का दिन बेहतरीन होगा.

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