परंपराओं के नाम पर पशुओं से अमानवीय व्यवहार का उदाहरण है इंडोनेशिया की Tengger जनजाति का ये उत्सव

Anurag

दुनियाभर के लगभग सभी धर्मों में अपने ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए तरह-तरह के कर्मकांड की परंपरा है. लोग अपने इष्ट देवी या देवता की कृपा पाने के लिए, उन्हें तरह-तरह की वस्तुएं भेंट करते हैं. बदलते ज़माने और बढ़ती समझ के साथ, बहुत सी अप्रासंगिक परंपराएं ख़त्म हो गई हैं. मगर आज भी कुछ जगहें ऐसी हैं, जहां धार्मिक कर्मकांड के नाम पर कुछ अमानवीय परंपराओं का पालन किया जा रहा है.

आज हम आपको बताएंगे इंडोनेशिया के Tengger जनजाति में प्रसिद्ध एक ऐसी ही परंपरा के बारे में, जिसमें ज़िन्दा पशुओं को ज्वालामुखी में फेंक दिया जाता है.

Tengger जनजाति को प्राचीन Javanese साम्राज्य का वंशज माना जाता है, जो लगभग 15वीं शताब्दी के आसपास ख़त्म हो गया था. उस समय ज़्यादातर हिन्दू, उस क्षेत्र को छोड़कर मॉडर्न इंडोनेशिया में बस गए मगर एक छोटा समूह ब्रोमो पर्वत के पास ही रुक गया. 

Tengger लोगों के वार्षिक आयोजन Yadna Kasada Festival के दौरान, पर्वतों के देवता Bromo से आशीर्वाद पाने के लिए, ये लोग फल, फूल, सब्ज़ियां, अनाज और पशुओं को उन्हें भेंट करते हैं. तस्वीर में एक शख़्स ज़िन्दा मुर्गे को ब्रोमो पर्वत के हवाले कर रहा है.

यूं हुई परंपरा की शुरुआत

मान्यता है कि Yadna Kasada Festival की परंपरा, Majapahit साम्राज्य के समय से यानी कि 13वीं शताब्दी से चली आ रही है. इसके पीछे एक कहानी है. 

इस क्षेत्र की राजकुमारी Roro Anteg को बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हो रही थी. उसने पर्वतों के देवता से प्रार्थना की, जिसके बाद उसे 25 बच्चे हुए. मगर देवता ने ये शर्त रखी थी कि राजकुमारी को अपना 25वां बच्चा पर्वत के ज्वालामुखी को भेंट करना होगा. राजकुमारी ने ऐसा ही किया और तब से इस दिन को वार्षिक उत्सव की तरह मनाया जाने लगा.

1. इस उत्सव को ब्रोमो पर्वत के आस-पास रहने वाले Tengger जनजाति के लोग हर साल मनाते हैं. वो ज़िन्दा जानवरों को पर्वतों के देवता को ख़ुश करने के लिए ज्वालामुखी में फेंक देते हैं.

2. Tengger जनजाति के इस उत्सव में हजारों Tenggers के अलावा अन्य टूरिस्ट भी शामिल होते हैं.

3. पास के गांव का एक व्यक्ति अपने कंधे पर इस बकरी को भेंट करने के लिए ले जाते हुए. 

4. Tenggers को ब्रोमो पर्वत तक पहुंचने के लिए, लम्बे रेत के मैदान से होते हुए, पहाड़ पर चढ़ना पड़ता है. 

Source: hindustantimes

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