हम अक्सर ‘भाड़ में जा’ क्यों कहते हैं? जानिए क्या मतलब है इसका और कहां है ये जगह

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भारत में आज भी मुहावरों और लोकोक्तियों का काफ़ी इस्तेमाल होता है. हमारे दैनिक जीवन में ये दोनों चीज़ें चाय में चीनी की तरह घुल चुके हैं. हम अक्सर अपना ग़ुस्सा और दुःख प्रकट करने या किसी बात को एक अलग अंदाज़ में कहने के लिए मुहावरों और लोकोक्तियों का इस्तेमाल करते हैं. लेकिन मुहावरों में जो मुहावरा सबसे ज़्यादा इस्तेमाल होता है वो ‘भाड़ में जा’ है. अंग्रेज़ी में इसका मतलब Go to Hell होता है. इसके अलावा ‘भाड़ में झोंक दो’ और ‘अकेला चना भाड़ नहीं फोड़ सकता’ ये वो मुहावरे हैं जिन्हें हम अपने दैनिक जीवन काफ़ी इस्तेमाल करते है.

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हम अक्सर ग़ुस्से में सामने वाले को ‘भाड़ में जा’ कह देते हैं. आपने भी कभी न कभी किसी न किसी को ‘भाड़’ में ज़रूर भेजा होगा. हम ग़ुस्से में ‘भाड़ में जाओ’ तो कह देते हैं, लेकिन क्या आपने कभी सोचा है इस शब्द का क्या मतलब है और ये जगह ‘भाड़’ कहां है?

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‘भाड़’ शब्द ‘भड़भूजा’ से निकला है. भड़भूजा उसे कहते हैं जो ‘भाड़’ का प्रयोग करके चने और मूंगफली भूनने का काम करता है. इस शब्द के भी कई क्षेत्रीय रूप प्रचलन में हैं जैसे भरभूजा, भड़भूजे आदि. यूपी और बिहार में भड़भूजे (अनाज भूनने वाले) अक्सर एक विशेष प्रकार की ‘भट्टी’ का इस्तेमाल करते हैं. इस ‘भट्टी’ को ही ‘भाड़’ कहा जाता है. इसके अलावा इसमें गीली मिट्टी को भूनकर ‘ईंटे’ भी बनाई जाती है.

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यूपी-बिहार में है बेहद मशहूर

यूपी-बिहार में भाड’ या ‘भट्टी काफ़ी इस्तेमाल होता है. ‘भाड’ एक प्रकार की ‘भट्टी’ है जिसमें धान व कुछ दलहनों को भुना जाता है. इसमें कुरमुरे/भडंग, फुटाना सूखा-चना इत्यादि को बनाया जाता है. किसान अक्सर इसी ‘भाड़’ या ‘भट्टी’ में बालू की मदद से अपने और जानवरों के खाने के लिए ‘अनाज’ भूनते हैं. इसे ‘भूजा’ भी कहते हैं, जो बिहार का लोकप्रिय खाद्य पदार्थ है. भाड़ वाली जगह को गांव की बोलचाल में ‘भरसाई’ भी कहा जाता है.

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इसे ‘भाड़’ क्यों कहा जाता है?

तेज़ आग वाली इस ‘भट्टी’ को ‘भाड़’ कहा जा सकता है. ये एक चकोर ‘भट्टी’ होती है, जिसका मुंह एक तरफ़ से खुला होता है. इसमें लगातार ईंधन झोंकने की आवश्यकता पड़ती है. भाड़ की आग थोड़ी देर तक ही तेज़ रहती है एवं तुरंत धीमी पड़ जाती है. इसीलिए बार-बार भाड़ में आंच को तेज़ करने के लिए इसमें सूखे पत्ते और घास फूस का प्रयोग किया जाता है. भाड़ की आग तेज़ होने पर काफ़ी गर्मी भी महसूस होती है. इसलिए ईंधन झोंकने के लिए किसी बांस इत्यादि का सहारा भी लेना पड़ता है.

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‘भाड़ में जा’ क्यों कहा जाता है?

दरअसल, इस ‘भट्टी’ या ‘भाड़’ का आकार काफ़ी बड़ा होता है. ये इतनी बड़ी होती है कि बंद होने के बाद इसके अंदर एक पूरा का पूरा इंसान प्रवेश कर सकता है. इसलिए जब हमें किसी पर ग़ुस्सा आता है तो हम उसे ‘भाड़ में जा’ कह देते हैं. मतलब ये कि भाड़ की आग में जलकर ख़त्म होना’ या ‘राख होना. ताकि दोबारा परेशान न कर सके.

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‘अकेला चना ‘भाड़’ नहीं फोड़ सकता’

ये कहावत उस चने के लिए है, जो बरतन से उछलकर ‘भाड़’ में गिर जाता है. इस दौरान वो ‘भाड़’ की तेज़ आंच में तपकर फट जाता है, लेकिन ‘भाड़’ पर इसका कोई असर नहीं होता. भाड़ काफ़ी मज़बूत और भाड़ की आग काफ़ी तेज़ होती है इसलिए ‘अकेला चना कभी ‘भाड़’ नहीं फोड़ सकता’ है.

आपने अक्सर देखा होगा कि ‘भीड-भाड’ में भी ‘भाड’ का इस्तेमाल होता है, लेकिन ये केवल एक तुकबन्दी है, इसका अर्थ ‘भीड’ ही है. इसका ‘भाड़’ या ‘भट्टी’ से कोई लेना देना नहीं है.

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