भारत के सबसे काले क्षणों में से एक, इमरजेंसी से जुड़ी 9 बातें, जो आज की Generation नहीं जानती

J P Gupta

25 जून 1975, भारत के इतिहास का वो काला दिन, जब देश में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने आपातकाल लागू कर दिया था. इसके तकरीबन 2 साल तक दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में लोकतंत्र का सूरज डूबा रहा. इंदिरा और उनकी पार्टी ने अपने ही हिसाब और कानून से देश को नियंत्रित करने की कोशिश की. उनकी ये ज़िद देश के लाखों लोगों पर भारी पड़ी और कईयों को अपनी जान गवानी पड़ी.

इंदिरा गांधी ने आख़िर क्यों लगाई Emergency?

इसकी असल वजह इलाहाबाद हाईकोर्ट का एक फै़सला बना. इसमें अदालत ने राज नारायण सिंह की याचिका पर सुनवाई करते हुए रायबरेली सीट से इंदिरा की जीत को निरस्त कर दिया था. इसके साथ ही 1972 के भारत-पाक युद्ध के बाद से लगातार गिरती अर्थव्यस्था, बेरोज़गारी, महंगाई, भ्रष्टाचार और बिहार में हुए छात्र आंदोलन ने भी इंदिरा को असहज कर दिया था और आख़िर में उन्होंने राष्ट्रपति के साथ मिल कर ये कांड कर डाला.

1990 और उसके बाद की पीढ़ी ने बस इसके बारे में सुना है, लेकिन इसे करीब से कभी महसूस नहीं किया. आज जब इमेर्ज़ेंसी को लगे पूरे 43 साल हो गए हैं, तब इतिहास के उस काले अध्याय को याद करना ज़रूरी है, ताकि आज की पीढ़ी को भी ये एहसास हो सके कि आज़ादी के मायने क्या हैं.

संजय गांधी

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इंदिरा के छोटे बेटे संजय गांधी ने अपनी ख़ुद की राजनीति चमकाने के लिए इसे एक अवसर की तरह इस्तेमाल किया. बिना किसी सरकारी पद के उन्होंने नौकरशाहों और नागरिकों पर अपने हुक्म चलाने शुरू कर दिए. जबरन नसबंदी और स्लम एरियाज़ में बुलडोज़र चलाना इसके कुछ उदाहरण हैं.

ऑल इंडिया रेडियो

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ऑल इंडिया रेडियो पर 25 जून 1975 के इंदिरा गांधी ने देश में आपातकाल लगाने की घोषणा की थी. उस रात देश के कई लीडिंग अख़बारों के दफ्तरों की बिजली काट दी गई थी. इसी कारण देश के बहुत से लोगों को इसकी ख़बर 27 जून को मिली.

जेपी का आंदोलन

जयप्रकाश नारायण ने इंदिरा की इस मनमानी के ख़िलाफ देशव्यापी आंदोलन की घोषणा की. नारायण ने पत्र लिखकर इंदिरा के विरोध में सत्याग्रह करने का संदेश भेजा. उस दौर में उनके द्वारा दिया गया नारा, ‘सिंहासन खाली करो की जनता आती है’, ख़ूब प्रचलित हुआ.

मीडिया पर सेंसरशिप

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देश में मीडिया पर सेंसरशिप थोपी गई, जो भी अख़बार आपातकाल के विरोध में लिखते, उन्हें तरह-तरह की यातनाएं दी गईं. विदेशी मीडिया और उनके पत्रकारों को देश से जाने के लिए बाध्य कर दिया गया. इमरजेंसी के विरोध में इंडियन एक्सप्रेस के संस्थापक और संपादक रामनाथ गोयनका ने अपने संपादकीय कॉलम को कोरा प्रकाशित किया था.

लोगों के मरनोरंजन पर लगा अंकुश

दूरदर्शन पर देव आनंद की फ़िल्मों को रोक दिया गया और एक कार्यक्रम में किशोर कुमार द्वारा शामिल होने से मना करने पर उनके गाने रेडियो पर बैन कर दिए गए.

नेताओं को जेल में ठूंस दिया गया

आपातकाल के दौरान जबरन देश की विपक्षी पार्टियों के नेताओं को जेल में कैद कर दिया गया. मजबूरन कई लीडर्स को अंडरग्राउंड होना पड़ा. रेलवे यूनियन के नेता जॉर्ज फर्नांडिस को भी गिरफ़्तार कर लिया गया.

चुनाव

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इस दौरान सभी तरह के चुनावों पर प्रतिबंध लगा दिया गया था.

कानून

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इंदिरा गांधी ने भारतीय कानून को अपने हिसाब से बदलना शुरू कर दिया ताकि वो अपनी मनमानी जारी रख सकें.

मारे गए लाखों लोग

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लाखों बेगुनाह लोग मारे गए जिनमें से कई के बारे में पता भी नहीं चला.

दो साल बाद जब आपातकाल ख़त्म हुआ तब उसके बाद कांग्रस को मुंह की खानी पड़ी और देश में पहली बार एक गैर-कांग्रेसी सरकार बनी. साथ ही देश की जनता ने ऐसे नेताओं के मुंह पर करारा तमचा जड़ा था, जो उन्हें कमज़ोर और बेवकूफ़ समझने की कोशिश कर रहे थे.

Emergency के इतने सालों बाद भी लोग वो 2 साल नहीं भूले हैं, शायद भूलेंगे भी नहीं. 

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