मंदिर में चढ़ने वाले फूलों का क्या होता है? इस समस्या का नायाब हल ढूंढ लिया है झंडेवालान मंदिर ने

Kundan Kumar

दिल्ली के मशहूर झंडेवालान मंदिर के बाहर कई दुकानें लगी होती हैं, जिनमें पूजा के लिए फूल बिकते हैं. प्रतिदिन यहां पांच से दस हज़ार श्रद्धालु आते हैं और लगभग 200 किलो फूल चढ़ाते हैं. मंगलवार और रविवार को ये आंकड़ा 500 किलो तक चला जाता है और नवरात्र में हज़ार किलो के भी ऊपर.

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चढ़ावे के बाद इन फूलों का क्या होता है?

पिछले 24 सालों से मंदिर में काम कर रहे सुरेंद्र कुमार उस मशीन को चलाते हैं, जो मंदिर में पिछले साल लगाई गई है. वो बताते हैं, ‘मैं फूलों को बुरादे और बैक्टेरिया के साथ मशीन में डालता हूं, मशीन चलाता हूं और खाद बाहर निकलता है’. सुरेंद्र कुमार इस मशीन को हर 15वें दिन चलाते हैं और इससे प्रतिदिन 30 किलो खाद तैयार होती है. इस गंधरहित खाद की मांग स्थानीय स्कूलों और हरियाणा में बहुत ज़्यादा है.

भारत के धार्मिक स्थल कब से ऐसे किसी मशीन की खोज में थे, जो उनकी इस समस्या से निजात दिला सके. भारत में लगभग प्रतिदिन 20 लाख टन फूल कूड़े की शक्ल ले लेते हैं. बाद में इन्हें ज़मीन में गिरा दिया जाता है लेकिन बाकी कचरे से मिलने की वजह से ये प्राकृतिक रूप से खाद में परिवर्तित नहीं हो पाते.

दिल्ली में आठ धार्मिक स्थलों पर ये मशीन लगाई गई है. इसकी पहल Angelique Foundation ने की है, ये दिल्ली की ही Angelique International नाम की कंस्ट्रक्शन कंपनी के ‘Corporate Social Responsibility’ के तहत संपादित हुई है.

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रस्तोगी का कहना है, ‘हम लोगों को ये भी समझाते हैं कि आप इसे फ़ेंक दे क्योंकि लोगों की धार्मिक भावनाएं जुड़ी होती हैं. उनमें तुलसी के बीज भी होते हैं, जिन्हें रोपा जा सकता है’.

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मुंबई में निखिल और प्रीथम गंपा ने Green Wave की शुरुआत की है. वो इन फूलों को धूपबत्ती का रूप दे देते हैं. उन्होंने 15 मंदिरों को अपने साथ जोड़ रखा है. मुंबई, लखनऊ और हैदराबाद से कुल 300 किलो कूड़ा इकट्ठा किया जाता है. Green Wave में 40-50 महिलाएं काम करती हैं. एक किलो फूल के कूड़े से 800-1000 अगरबत्ती तैयार हो जाती है.

जो मंदिर आज Green Wave के साथ जुड़ गए हैं, पहले वो अपने कूड़े को पास के तालाब और नाले में फेंका करती थी या खुले में छोड़ देती थी.

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कूड़े को खाद के रूप में बदलना सस्ता भी है. फूल को बाहर फेकने के लिए झंडेवालान मंदिर को पहले तीन हज़ार रुपये ख़र्च करने पड़ते थे, अब मात्र पांच सौ में मशीन की मदद से उनका खाद बन जाता है.

Angelique Foundation के CSR की हेड जयश्री गोयल कहती हैं, ‘जो फूल मिट्टी से निकलता है, वो बाद में खाद बन कर मिट्टी में मिल जाता है. धर्म हमें यही तो सिखाता है. ये हमें जीवनचक्र की याद भी दिलाता है’.

Feature Image: dailyhunt

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