प्रथम विश्व युद्ध के दौरान अमेरिका का वो ‘काला राज़’ क्या था? जिसकी सज़ा अन्य देशों को भुगतनी पड़ी

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‘प्रथम विश्व युद्ध’ के दौरान जब पूरी दुनिया एक दूसरे से लड़ने में लगी हुई थी, तब अमेरिका ने एक सोची समझी साज़िश के तहत पूरी दुनिया को बेवकूफ़ बनाकर अपनी करेंसी डॉलर को मज़बूत करने की सफल कोशिश की थी. 

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‘प्रथम विश्व युद्ध’ के दौरान दुनिया के अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था ‘वॉर सेन्ट्रिक’ थी. इस दौरान जब सभी देश युद्ध के लिए हथियार बनाने में लगे हुए थे, अमेरिका ने इस परिस्थिति का फ़ायदा उठाने की योजना बनाई. अमेरिका ने युद्ध के सामानों के उलट खाने-पीने की चीजों का उत्पादन शुरू कर दिया, इस बीच उसने सभी देशों से सामान के बदले सोना लेना शुरू कर दिया. 

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इस बीच ‘प्रथम विश्व युद्ध’ ख़त्म होने तक पूरी दुनिया का लगभग 80% सोना अमेरिका के पास था. जबकि दूसरी तरफ़ अन्य देशों की अर्थव्यवस्था बेहद बुरे दौर में थी. अमेरिका की हमेशा से ही नीति रही है कि ‘हालात ऐसे पैदा कर दो कि लोग मजबूर हो जाएं, फिर उनकी मजबूरियों का फ़ायदा उठा लो’.   

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‘प्रथम विश्व युद्ध’ के बाद जब अधिकतर देशों की अर्थव्यवस्था बुरे हालत में थी, तब अमेरिका ने इसका फ़ायदा उठाते हुए इन देशों की एक सभा बुलाई. इस सभा में उसने प्रस्ताव रखा कि उनके पास दुनिया का 80% सोना है, वो दुनिया को लोन देंगे और उतना ही डॉलर छापेंगे जितना सोना उनके पास रिज़र्व है. 

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इस दौरान सभी देशों ने अमेरिका के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और अमेरिका ने भी सबको लोन देना शुरू कर दिया. समय के साथ कुछ देशों को इस बात का एहसास हो गया कि अमेरिका ने उनके साथ धोख़ा किया, क्योंकि उसने बिना किसी लिमिट के रिजर्व सोने से अधिक के डॉलर छाप दिए थे. इस बीच कई देशों ने अमेरिका से अपना सोना मांगना शुरू कर दिया. 

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दरअसल, अमेरिका के इस काले सच का असल मक़सद अमेरिकी डॉलर को मज़बूत बनाना था. इसके बावजूद अमेरिका ने एक और चाल चली, उसने एक तरफ़ से अरब देशों पर इज़रायल द्वारा अटैक करवाया और दूसरी तरफ़ अरब देशों के पास ये प्रस्ताव लेकर पहुंच गया कि आप अपने तेल को डॉलर के बदले पूरी दुनिया में बेचो और बदले में हम इज़रायल से तुम्हारी सुरक्षा करेंगे. 

अरब देशों ने इजरायल से बचने के लिए अमेरिका के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. इस दौरान अमेरिका ने अरब देशों से सस्ते में कच्चा तेल लेकर उसे अन्य देशों को महंगे दामों में बेचना भी शुरू कर दिया था.   

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अमेरिका ने अपनी इसी तरह की चालाकियों की वजह ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ के बाद भी न सिर्फ़ अपनी अर्थव्यवस्था बल्कि डॉलर को भी अन्य देशों के मुक़ाबले मजबूत मुद्रा के रूप में स्थापित किया. 

आज वो दौर है जब पूरी दुनिया में अमेरिका की तूती बोलती है. इसके पीछे सिर्फ़ चालाकियां ही नहीं अमेरिकियों की कड़ी मेहनत भी है. 

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