दोस्तों आपने ये कहावत तो कई बार सुनी होगी, कभी किसी तर तंज कसते हुए, तो कभी गोविंदा के गाने में. साफ़ शबदों में कहा जाए तो हज़ारों बार आप ये कहावत आम बोलचाल में सुन चुके होंगे. कई बार इसका इस्तेमाल किसी छोटे व्यक्ति की बड़े व्यक्ति से तुलना के लिए किया जाता है. भले ही ये कहावत मज़ाक के तौर पर बोली जाती हो लेकिन इसमें पराक्रम की कहानी भी छिपी हुई है. इस कहावत में दो नाम आते हैं एक तो राजा भोज और दूसरा गंगू तेली. पराक्रमी राजा भोज कौन थे ये, तो शायद आपको पता होगा, लेकिन क्या आपको पता है कि ये गंगू तेली कौन था? क्योंकि इस ऐतिहासिक चरित्र के बारे में बहुत कुछ कहा ही नहीं गया है.
कोई बात नहीं आज हम आपके लिए गंगू के बारे में पूरी जानकारी लेकर आये हैं. मगर उससे पहले थोड़ा सा हम आपको राजा भोज के बारे में भी बता देते हैं.
कौन थे राजा भोज?
मध्यप्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब ढाई सौ किलोमीटर दूर धार की नगरी को राजा भोज की नगरी कहा जाता है. 11 वीं सदी में ये शहर मालवा की राजधानी रह चुका है. राजा भोज 11 वीं सदी में मालवा और मध्य भारत के प्रतापी राजा थे. इतिहास के पन्नों में दर्ज है कि राजा भोज शस्त्रों के साथ-साथ शास्त्रों के भी महा ज्ञाता थे.
उनको वास्तुशास्त्र, व्याकरण, आयुर्वेद और धर्म-वेदों का भी ज्ञान था. उन्होंने इन विषयों पर कई किताबें और ग्रंथ भी लिखे. राजा भोज ने अपने शासनकाल के दौरान कई मंदिरों और इमारतों का निर्माण करवाया था.
कौन थे गंगू तेली?
इस कहावत से जुड़ी एक कहानी और भी प्रचलित है जिसके अनुसार, राजा भोज के महाराष्ट्र के पनहाला किले की दीवार बार-बार गिरती रहती थी, तब इसके उपाय के लिए किसी ने उन्हें बताया कि अगर किसी नवजात बच्चे और उसकी मां की बलि इस जगह पर दे दी जाए तो दीवार गिरना बंद हो जाएगी. कहते हैं कि “गंगू तेली” नाम के शख़्स ने इसके लिए अपनी पत्नी और बच्चे की कुर्बानी दी. मगर बाद में उसको अपने इस काम पर घमंड हो गया और लोग उसके घमंड को देखकर कहने लगे – ‘कहां राजा भोज और कहां गंगू तेली’. मगर इस कहानी पर इतिहास कारों के अलग-अलग मत हैं.