संसद भवन भारत की ऐतिहासिक धरोहर के साथ-साथ देश के सबसे आलिशान भवनों में से एक है. संसद भवन सन 1927 में बना था. 93 साल पुरानी संसद भवन की इमारत आज भी भारतीय वास्तुकला का बेजोड़ नमूना पेश करती है.
राजधानी दिल्ली के रायसीना इलाके में स्थित संसद भवन को देखने न सिर्फ़ भारतीय, बल्कि विदेशी पर्यटक भी आते हैं. भारत के संसद भवन को देखने लोग इसलिए भी आते हैं क्योंकि संसद के दोनों सदन लोक सभा व राज्य सभा भी यहीं मौजूद हैं.
संसद भवन की नींव 12 फ़रवरी 1921 को ‘ड्यूक ऑफ़ कनाट’ ने रखी थी. संसद भवन का नक्शा दो मशहूर आर्किटेक्ट्स सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर ने तैयार किया था. इसके निर्माण में 6 वर्ष लगे और इसका उद्घाटन समारोह भारत के तत्कालीन गवर्नर जनरल लॉर्ड इर्विन ने 18 जनवरी, 1927 को किया था.
आज हम आपको भारत के संसद भवन के ‘सेंट्रल हॉल’ से जुड़ी एक दिलचस्प बात बताने जा रहे हैं-
हमारे घरों में अक्सर पंखे छत से नीचे की तरफ़ लटके होते हैं, लेकिन देश की संसद भवन में पंखे ज़मीन से छत की तरफ़ लटके हुए हैं यानि कि उल्टे लगे हुए हैं. क्यों हो गए न हैरान! है न अजीब बात.
अगर आपने कभी पार्लियामेंट के सेंट्रल हॉल की कोई तस्वीर देखी हो तो यहां लगे पंखों को ग़ौर से देखना. यहां सभी पंखे छत के बजाय ज़मीन पर खंबे के सहारे उलटे लगाए गए हैं. अब आप सोच रहे होंगे ऐसा करने के पीछे क्या वजह रहे होगी? तो बता दें इसके पीछे की वजह संसद भवन का आर्किटेक्चर है.
इतिहासकार मानते हैं कि जब संसद भवन बना था तो इसके गुंबद को ही इसकी असल पहचान बताया गया था. इस गुंबद को काफ़ी ऊंचाई पर बनाया गया है सीलिंग ऊंची होने के कारण इस पर पंखे लगाए नहीं जा सकते थे. लंबे डंडों के सहारे पंखों को लटकाने से सेंट्रल हॉल की ख़ूबसूरती बिगड़ रही थी. इसलिए पंखों को खंबों के सहारे ज़मीन पर लगाने का फ़ैसला किया गया.
संसद भवन को गुंबदनुमा बनाने के पीछे भी है एक कारण
दरअसल, भारत के संसद भवन का निर्माण एक मंदिर की तर्ज़ पर हुआ है. इसका नाम ‘चौसठ योगिनी मंदिर’ है. भारत में कुल 4 चौसठ योगिनी मंदिरों में से 2 मध्यप्रदेश में तो 2 ओडिशा में हैं. मध्यप्रदेश के मुरैना स्थित मंदिर को सबसे प्राचीन व मुख्य मंदिर माना जाता है. सन 1323 ई. में वृत्तीय आधार पर बना ये मंदिर अपनी शानदार वास्तुकला और ख़ूबसूरत निर्माण के लिए जाना जाता है. इस मंदिर में 64 कमरे हैं, प्रत्येक कमरे में एक-एक शिवलिंग है. इस मंदिर तक पहुंचने में 200 सीढ़ियां चढ़नी होती हैं.
ब्रिटिश आर्किटेक्ट सर एडविन लुटियंस और सर हर्बर्ट बेकर ने इसी मंदिर को आधार मानकर भारत के संसद भवन का निर्माण कराया था. इस मंदिर के वृत्तीय आधार की तरह ही संसद भवन भी 101 खंबों पर टिका हुआ है. यहां बालुई पत्थर के बने 144 स्तंभ भी हैं, प्रत्येक स्तंभ की ऊंचाई 27 फ़ुट है. करीब 6 एकड़ में फैला संसद भवन का मुख्य आकर्षण उसका गुंबद है. संसद भवन के कुल 12 द्वार हैं जिनमें से संसद मार्ग पर स्थित द्वार संख्या 1 मुख्य द्वार है.
विशेषज्ञों की माने तो संसद भवन के ये पंखे शुरू से ही इसी तरह से उलटे लगे हुए हैं. संसद भवन की ऐतिहासिकता को बनाए रखने के चलते इनके साथ कोई छेड़छाड़ नहीं की गई और इन्हें आज भी वैसे ही रखा गया है, जैसे ये पहले थे.