क्या आपने कभी सोचा है कि छींकते वक़्त क्यों बंद हो जाती हैं आंखें?

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कई सवाल ऐसे होते हैं, जिनका सामना हम हर रोज़ करते हैं, पर किसी से पूछ नहीं पाते. वजह ये होती है कि हमें वो सवाल बड़े बेतुके लगते हैं. जैसे हम सब जानते हैं कि जब हमें छींक आती है, तो हमारी आंखें बंद हो जाती हैं. पर किसी को ये नहीं पता होगा कि ऐसा आखिर होता क्यों है? आपको न्यूयॉर्क की एक घटना के बारे में बताते हैं, हुआ कुछ यूं था कि एक महिला ड्राइविंग कर रही थी और अचानक उसे छींक आ गई, उसने जबरन आंखें खुली रखने की कोशिश की, तो उसकी आंखें बाहर निकल आईं.

इसका मतलब ये मत समझ लीजियेगा कि छींक के वक़्त आंखें खुली हों, तो वो बाहर निकल आती हैं. उस महिला की आंखों की कोशिकाओं में कुछ प्रॉब्लम थी, इसलिए ऐसा हुआ. अब असली बात पर आते हैं. यूनिवर्सिटी ऑफ़ शिकागो के एक प्रोफेसर के अनुसार, छींकने के दौरान फेफड़ों द्वारा लगाया गया दबाव इतना ज़्यादा नहीं होता कि आंखें अपने खांचों से बाहर आ जायें. अगर ऐसा होता भी है, तो बंद पलकें भी उन्हें बाहर आने से नहीं रोक सकतीं. ये बहुत दुर्लभ ही देखने को मिलता है कि छींकते वक़्त किसी की आंखें खुली रही हों, पर यकीन मानिये वैज्ञानिकों के अनुसार, ऐसा संभव है. हमारी बॉडी में ऐसी कोई व्यवस्था ही नहीं है, जो छींकते वक़्त आंखों को बंद होने पर मजबूर कर दे. तो सवाल ये उठता है कि आखिर ये होता क्यों है?

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सांस लेने के क्रम में अगर नली में कोई धूलकण या महीन रेशा फंस जाता है, तो उसे बाहर निकालने के लिए छींकने की प्रक्रिया अपनाई जाती है. अगर ये धूलकण भारी या बड़ा हो, तो दिमाग उसे बाहर निकाल फेंकने के लिए फेफड़ों को ज़्यादा हवा भेजने का सन्देश देता है. इस दौरान जो पलकें झपकती हैं, उसके लिए ट्राईजेमिनल नर्व ज़िम्मेदार होती हैं. ये नर्व चेहरे, आंख, मुंह, नाक और जबड़े को कण्ट्रोल करती है. दिमाग जो अवरोध हटाने का सन्देश भेजता है, वो इसे भी मिल जाता है. इसी कारणवश, उस दौरान आंखें बंद हो जाती है.

इसलिए इस बात को लेकर ज़्यादा परेशान होने की ज़रूरत नहीं है. आराम से छींकें, पर जब छींकें मुंह पर रुमाल रख लें.

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