क्यों नहीं बनती तवायफ़ के आंगन की मिट्टी के बिना मां दुर्गा की मूर्ति? इसकी हैं ये 4 मान्यताएं

Kratika Nigam

चप्पल उल्टी नहीं रखते 

जाते समय पीछे से आवाज़ नहीं देते 
घर से निकलते समय तेल का नाम नहीं लेते

ये सब हम सदियों से मानते आ रहे है. मगर इन सबके पीछे का कारण जब भी मम्मी से पूछा, तो एक ही बात वो बोलती थी, बड़े ऐसा कहते थे. हालांकि, समय के साथ-साथ इनके पीछे के कारण भी पता चल गए हैं. ऐसा ही एक रिवाज़, जो मैंने फ़िल्म ‘देवदास’ में देखा था वो सीन आपने भी देखा होगा, जब पारो दुर्गा माता की मूर्ति के लिए चंद्रमुखी के कोठे पर जाती है मिट्टी मांगने, क्योंकि चंद्रमुखी एक तवायफ़ होती है. 

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उस सीन के बाद कभी मन में ये जानने की इच्छा हुई कि ऐसा क्यों होता है? दुर्गा माता की मूर्ति के लिए तवायफ़ के आंगन की मिट्टी क्यों लाई जाती है? नहीं सोचा न? मगर हमने सोचा और इसके पीछे का कारण हम आपको आज बताएंगे.

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समाज का वो हिस्सा जिसे पूरी तरह से नकारा जा चुका है, जिसका कोई अस्तित्व नहीं है. उनका मां दुर्गा की मूर्ति में इतना बड़ा योगदान बहुत बड़ी बात है. इनके आंगन की मिट्टी के अलावा गंगा घाट की मिट्टी, गौमूत्र और गोबर भी मिलाया जाता है. ऐसा होने के पीछे चार मान्याताएं हैं. 

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1. पहली मान्यता ये है कि जब कोई पंडित तवायफ़ के आंगन में मिट्टी मांगने जाता है, तो उसकी सारी अच्छाइयां और पवित्रता उनकी चौखट पर रह जाती हैं. इससे उनके आंगन की मिट्टी पवित्र हो जाती है. और पंडित तब तक वापस नहीं आते जब तक मिट्टी मिल न जाए. 

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2. दूसरी मान्यता ये है कि ये समाज का वो हिस्सा है जिसे एक सड़े हुए अंग की तरह काटकर फेंक दिया गया है. इन्हें नारी शक्ति का प्रतीक माना जाता है. इसलिए इन्हें सम्मान देने के लिए ऐसा किया जाता है. 

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3. तीसरी मान्यता है कि एक वेश्या थी जो मां दुर्गा की बहुत बड़ी भक्त थी. उसकी भक्ति से प्रसन्न होकर और समाज में उसे सम्मान दिलाने के लिए मां ने एक वरदान दिया. वो वरदान था मेरी मूर्ति तब तक पूरी नहीं होगी, जब तक तेरे आंगन की मिट्टी उसमें न मिले. 

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4. चौथी मान्यता ये है कि, वेश्याओं ने जो काम अपने लिए चुना है वो बहुत ही ख़राब काम है. उनके बुरे कर्मों से मुक्ति दिलाने के लिए ही इनके आंगन की मिट्टी का इस्तेमाल किया जाता है. 

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समाज का ये हिस्सा भी शक्ति, भक्ति और सम्मान का पात्र है. Life से जुड़े आर्टिकल ScoopwhoopHindi पर पढ़ें. 

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