कांवड़ यात्रा का अर्थ सड़क जाम करना, DJ पर ज़ोर-ज़ोर से गाने बजाना, गुंडई करना कब से हो गया?

Sanchita Pathak

श्रावण मास यानी कि रिम-झिम बारिश, हरियाली से भरी प्रकृति और रास्तों में गूंजते ‘बोल बम’ के नारे.

श्रावण मास में भक्तगण कांवड़ यात्रा करते हैं और महादेव पर जल चढ़ाकर उन्हें प्रसन्न करने की चेष्टा करते हैं.

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कांवड़ यात्रा के हैं कई रूट्स

कुछ श्रद्धालु देवघर स्थित वैद्यनाथ धाम में जल चढ़ाते हैं. सुल्तानगंज से गंगाजल लेकर श्रद्धालु देवघर के वैद्यनाथ धाम तक पैदल यात्रा करते हैं.

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वहीं कुछ श्रद्धालु हरिद्वार से जल लेकर बागपत के पुरामहादेव पर जल चढ़ाते हैं.

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पहले की कांवड़ यात्रा

बचपन से हमने कांवड़ियों को कष्ट सहते हुए भक्ति और विश्वास की डोर के सहारे महादेव पर जल चढ़ाते देखा है. कई कांवड़िये बिना कुछ खाए, नंगे पैर ही यात्रा पूरी करते हैं. इनके आगमन के लिए रास्ते धोए जाते थे. लोग घरों के बाहर इनको पानी-शर्बत, लस्सी, चाय आदी पिलाने के लिए खड़े रहते थे. माहौल ही अलग होता था.

Ajab Gajab

लेकिन साल-दर-साल इस यात्रा ने एक अलग ही शक़्ल-ओ-सूरत इख़्तियार की है. जैसे-जैसे हम बड़े होते गए, कांवड़ यात्रा का स्वरूप भी बदलता दिखा.

कांवड़ यात्रा का बदलता चेहरा

भगवा कपड़े पहने, महादेव के भजन गाते और ‘बोल बम’ का नारा लगाते हुए कांवड़िए कब डीजे के गानों पर शोर मचाते, बियर की बोतलों के साथ दिखने लगे पता ही नहीं चला.

मनोरम लोक गीतों की धुन पर गाए जाने वाले भजन की जगह कब ‘लगावेलु जब लिपस्टिक’ की धुन पर गाए जाने वाले भजन ने ले ली, पता ही नहीं चला. ढोल-मंजीरे की जगह कानफाड़ू डीजे ने ले ली, समझ ही नहीं आया.

जब पढ़ने में ये बात इतनी अजीब लग रही है, तो सोचिए देखने में कैसी लगती होगी.

सरकार द्वारा की जाती है व्यवस्था, फिर भक्ति के नाम पर गुंडागर्दी क्यों?

भक्ति के नाम पर गुंडागर्दी तो कहीं से जायज़ नहीं. जिस शिव की अराधना ये कांवड़ कर रहे हैं उनका तो नाम ही ‘भोलेनाथ’ है. दुष्ट को भी वो काफ़ी सोच-समझकर सज़ा देते हैं, तो फिर उनके भक्त इतने उद्दंडी कैसे और क्यों हो गए?

ट्रेन में ज़बरदस्ती सीट हथियाने से लेकर महिलाओं के साथ बदसुलूकी तक, सबकुछ में ‘भोले’ (कांवड़ एक-दूसरे को यही बुलाते हैं) का नाम आ चुका है.

और हाल-फ़िलहाल में तो ये कृत्य भी सामने आया है:

वीडियो में कांवड़ियों की गुंडई और मूक दर्शक बने पुलिस और राहगीर साफ़ देख जा सकते हैं. बीचों-बीच किसी की कार को पलट दिया गया और आरोप ये था कि कार कांवड़ियों को ‘छू कर निकली’.

इससे एक कदम निकलकर बुलंदशहर में कुछ ‘भोले’ पुलिस की जीप की तोड़-फोड़ करते नज़र आए-

कुछ रिपोर्ट्स का ये भी कहना था कि कार चलाने वालों ने कांवड़ियों के साथ बद्तमीज़ी की और वहां से भाग गए.

सवाल कई हैं. जवाब कोई नहीं, पर कष्ट झेलने वाले इन कांवड़ियों के लिए प्रशासन और स्थानीय निवासी भी अपनी-अपनी तरह से इंतज़ाम करते हैं. फिर इस तरह की हरकतें करने की ज़रूरत क्या है? अगर किसी के साथ कोई अभद्र व्यवहार करता है, तो उसकी शिकायत दर्ज करवाई जा सकती है. बीच सड़क में ऐसी हरकत सरासर अशोभनीय है.

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