क्यों 200 साल पहले जैसलमेर के कुलधरा गांव को छोड़कर चले गए थे लोग? इसके पीछे की कहानी दिलचस्प है

Maahi

राजस्थान के जैसलमेर का कुलधरा गांव जिसे भूतिया गांव भी कहा जाता है. किसी ज़माने में हवेलियों से गुलज़ार रहने वाला ये गांव आज खंडहरों में तब्दील हो चुका है. आस-पास के गांव वालों का कहना है कि दिन के समय में तो लोग इस गांव में घूमने-फ़िरने जाते हैं, लेकिन रात होते ही यहां से अजीबो-ग़रीब आवाज़ें सुनाई देने लगती हैं. कहा तो ये भी जाता है कि रात के समय जो भी इस गांव में गया वो वापस नहीं लौटा. लेकिन इसका कोई वास्तविक रिकॉर्ड मौजूद नहीं है. 200 साल से ये गांव यूं ही वीरान पड़ा हुआ है.

एक लड़की की इज़्ज़त बचाने के लिए 84 गांव क्यों हो गए थे वीरान?

lakshmisharath

बताया जाता है कि कुलधरा गांव को 1291 में पालीवाल समाज के लोगों ने बसाया था. क़रीब 8 सदियों तक कुलधरा और आसपास के गांव ख़ूब फलते-फ़ूलते रहे. लोगों के पास धन दौलत की कोई कमी नहीं थी. लेकिन एक रोज़ ऐसा हुआ कि कुलधरा समेत 83 अन्य गांव भी हमेशा के लिए वीरान हो गए. इसकी मुख्य वजह थी मुखिया की 18 साल की बेटी. बताया जाता है कि यहां की रियासत का एक मंत्री सलीम सिंह को मुखिया की बेटी पसंद आ गयी और वो उससे शादी करना चाहता था. लेकिन मुखिया परिवार ने उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया. इसके बाद सलीम सिंह ने पालीवालों को परेशान करने के लिए इस गांव पर कई तरह के कर लगा दिए और उनसे भारी मात्रा में धन भी मांगा जाने लगा. बेटी की इज़्ज़त की ख़ातिर कुलधरा समेत अन्य 83 गांव के पालीवाल समुदाय के लोग एकाएक गांव छोड़कर चले गए.

hindustantimes

इस गांव में एक ऐसा घर भी है, जहां एक सुरंग बनी हुई है बताया जाता है कि मुसीबत के समय पालीवाल समुदाय के लोग इसी सुरंग के रास्ते गांव छोड़कर चले गए थे. 19वीं शताब्दी की शुरुआत में पालीवाल ब्राह्मणों ने रक्षाबंधन के दिन गांव छोड़ने का निश्चय किया. इसलिए पालीवाल समुदाय इस त्यौहार को ‘काला दिवस’ के रूप में देखता है.

lakshmisharath

ऐसी मान्यता है कि गांव छोड़ते वक़्त पालीवाल समुदाय के लोग श्राप देकर गए थे कि इस गांव में फिर से कोई नहीं बस पायेगा और अगर किसी ने बसने की कोशिश भी की, तो वो बर्बाद हो जायेगा. आज दो सौ साल से ये गांव वीरान है.

लेकिन सदियों बाद भूगर्भिकों की एक चार सदस्यीय टीम ने कुलधरा और खभा गांव के खंडहरों की जांच में पाया कि कई साल पहले ये 84 गांव में भूकंप के झटकों के चलते मकान टूट गए थे. जबकि शोधकर्ताओं के मुताबिक, पालीवाल में हुए विनाश की तुलना हम महाराष्ट्र में लातूर के भूकंप प्रभावित क्षेत्रों और गुजरात में भुज से भी कर सकते हैं. 

वहीं भूगर्भ विज्ञानी, मुख्य जांचकर्ता और इंडियन नेशनल एकेडमी ऑफ़ साइंसेज़ के फ़ेलो एबी रॉय का कहना है कि पुरातत्त्वविदों को इस क्षेत्र की ख़ुदाई कर फ़ॉल्ट लाइन्स और कंकालों की जांच करनी चाहिए.

lakshmisharath

जैसलमेर से 18 किलोमीटर दूर पालीवाल को आर्कियोलॉजिकल सर्वे ऑफ़ इंडिया के तहत संरक्षित किया गया है. जबकि खाभा में मंदिरों और ‘छत्रिस’ का नवीनीकरण करना मनाही है.

Source: lakshmisharath

आपको ये भी पसंद आएगा
बेवफ़ा समोसे वाला: प्यार में धोखा मिला तो खोल ली दुकान, धोखा खाये लवर्स को देता है डिस्काउंट
जानिये दिल्ली, नई दिल्ली और दिल्ली-NCR में क्या अंतर है, अधिकतर लोगों को ये नहीं मालूम होगा
जानिए भारत की ये 8 प्रमुख ख़ुफ़िया और सुरक्षा जांच एजेंसियां क्या काम और कैसे काम करती हैं
मिलिए गनौरी पासवान से, जिन्होंने छेनी व हथोड़े से 1500 फ़ीट ऊंचे पहाड़ को काटकर बना दीं 400 सीढ़ियां
ये IPS ऑफ़िसर बेड़िया जनजाति का शोषण देख ना पाए, देखिए अब कैसे संवार रहे हैं उन लोगों का जीवन
अजय बंगा से लेकर इंदिरा नूई तक, CEO भाई बहनों की वो जोड़ी जो IIM और IIT से पास-आउट हैं