जब हम बच्चे थे, तो हर तरह के सपने बेझिझक देखते थे चाहे वह सपना आसमान छूने का ही क्यों न हो! लेकिन जब हम बड़े हो जाते हैं तो हमारे सपने भी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कहीं पीछे छूट जाते हैं. जब कभी हम बचपन के वो पल याद करते हैं तो हमें वो सपने भी याद आ जाते हैं जिन्हें हम कभी साकार करना चाहते थे पर आज हम उन्हें नज़रअंदाज करने का फैसला कर चुके हैं.
परिस्थितयां चाहे जो भी रही हों जिन लोगों ने खुद से समझौता किया है ज़िंदगी ने उनसे हमेशा औसत खुशियां ही दी हैं लेकिन अगर आप खुद कुछ करना चाहते हैं तो नेतृत्व करना होता है समझौता नहीं. इमोशनल फूल्स का यह वीडियो हमारे रोज़ के संघर्ष को बख़ूबी दिखता है जो हमारे ज़िंदगी और सपनों के बीच कहीं गूम हो जाता है.