90 के दशक में लाइट जाने पर जो मस्ती होती थी, उसको इन 8 यादों के साथ दोबारा जी लो

Kratika Nigam

90 का दशक (90’s Nostalgia) ऐसा दशक था, जिसमें सिर्फ़ प्यार, अपनापन और शरारतें थीं. झगड़े भी होते थे तो दोस्तों की और अपनों की भलाई के लिए. हर वक़्त कुछ न कुछ शरारत चलती रहती थी. 90 का वो दशक बहुत ही प्यारा था. लाइट भी चली जाए तो उसमें भी मज़ा ढूंढ लेते थे. कमियों को भी ख़ुशियों में बदल लेते थे. कभी दुख का एहसास ही नहीं होता था, कम में भी सब कुछ पास होता था. लाइट जाने का मतलब था कि पूरा घर एक साथ बैठकर बातें करेगा, आज लाइट जाए या आए पास होते हुए भी दूरियां हैं. और उस वक़्त दूरियां होते हुए भी सब पास आ ही जाते थे. दादा जी चांद की कहानी सुनाते थे, अपनों के बारे में बताते थे, जो हर दिल में अपनापन जगा देता था. तारों के साथ अनगिनत सपने देखते थे, आज भले ही वो पूरे न हुए हों, लेकिन तारे उसे सुनते किसी दोस्त की तरह ही थे.

ऐसी ही 90 के दशक की कुछ यादें (90’s Nostalgia), जो लाइट जाने से जुड़ी हैं चलिए आपसे शेयर करते हैं, हो सकता है आपको अपना बचपन भी इन यादों में कहीं दिख जाए.

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90’s Nostalgia

1. लाइट जाने पर पढ़ने से छुट्टी मिल जाती थी

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2. अंधेरे आइस पाइस या छुपन छुपाई खेलने में बड़ा मज़ा आता था

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3. छत पर सब एक साथ लेटते थे, कोई बातें करता था कोई चांद को निहारता तो कोई तारे गिनता था. इन तारों और चांद के साथ न जाने कितने सपने साझा किए हैं

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4. रात के अंधेरे में दूसरों का गेट बजाकर भागने में जो मज़ा आता था अब उस शरारत को करने के लिए तरस जाते हैं

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5. हाथ वाले पंखे से हवा करते थे, वो ज़िंदगी का सबसे पहला कॉम्प्टीशन था कि कौन कितनी देर पंखा कर सकता है? 

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6. दादा जी, दादी जी के साथ बैठ कर कहानियां सुनना. घर के अन्य सदस्यों के बारे में उनसे जानना या फिर उनके ज़िंदगी के अनुभव सुनना, ये सब हमेशा कुछ न कुछ सिखाते थे, जो आज बहुत मदद करते हैं

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7. लाइट जाने पर सबसे ज़्यादा दुख तब होता था जब दूसरों के घर की लाइट आ रही हो और कहीं वो दोस्त का घर हुआ तो टेंशन दोगुना हो जाती थी, क्योंकि वो तब तक चिढ़ाता था जबतक हमारी लाइट आ नहीं जाती थी

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8. लाइट जाते ही सारी पढ़ाई याद आती थी, हम उन बच्चों में से थे, जिन्हें पढ़ने पर शाबाशी नहीं, बल्कि ताने और डांट मिलती थी, कि सारा दिन नहीं पढ़ना है बत्ती जाते ही दिखावा करने लगे.

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बचपन की यादें तो इतनी हैं कि पूरी ज़िंदगी कम पड़ जाए, उन्हें याद करते-करते. 90 के दशक के सभी लोग मेरी इन बातों से पूरी तरह से सहमत होंगे. इसलिए आपके पास भी कुछ यादें हों तो हमसे ज़रूर शेयर करिएगा.

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