इंस्टाग्राम पर हर तीसरे इंसान की Fit बॉडी देख कर हो जाते नर्वस? लो आज हकीकत जान लो

Vishu

सोशल मीडिया ने जहां हमारी ज़िंदगियों को आसान बनाया है, वहीं कई स्तर पर लोग इन App के आने से मानसिक तौर पर जूझ भी रहे हैं. इंस्टाग्राम पर स्क्रोल करते हुए आपने भी कई लोगों की खूबसूरत तस्वीरों निहारी होगीं? लेकिन क्या आप जानते हैं कि रोज़-रोज़ इन आकर्षक और फ़िट चेहरों को देखकर कई लोग मन ही मन हीन भावना से ग्रस्त होने लगते हैं?

सारा पुह्तो 20 साल की हेल्थ ब्लॉगर हैं और वे अपने फ़ेसबुक और इंस्टाग्राम अकाउंट पर खूबसूरती के मिथक तोड़ रही हैं. उन्होंने अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर कुछ तस्वीरें पोस्ट की हैं जिससे साबित होता है कि कैसे अलग-अलग एंगल से किसी के शरीर में नाटकीय बदलाव आते हैं.

अपने इंस्टाग्राम अकाउंट पर उन्होंने फ़िटनेस और बॉडी से जुड़े कई पोस्ट किए. उन्होंने अपनी इस तस्वीर के बारे में कहा कि अगर मैंने बाईं तरफ़ मौजूद तस्वीर को एक साल पहले देखा होता तो मुझे अपने शरीर के बारे में बेहद बुरा लगता. मुझे लगता कि शायद इतने साल जिम में पसीना बहाने के बाद भी मुझे किसी तरह के सकारात्मक नतीजे नहीं मिले हैं. कोई भी मुझे देख कर कह सकता था कि मैं जिम में केवल टाइम पास करने जाती हूं. लेकिन सच ये है कि हर किसी का बॉ़डी टाइप अलग होता है. ज़्यादातर लोगों का शरीर भी हर एंगल से आकर्षक नज़र नहीं आ सकता.

फ़िटनेस के लिए पौष्टिक खाना एक बात है लेकिन शेप में रहने के लिए खाना छोड़ देना बेहद गलत है, आप भले ही कितनी भी कोशिश करें लेकिन ये सच है कि फ़िटनेस स्टार भी पूरे साल शेप में नहीं रह पाते, ऐसे में अपने शरीर से असंभव अपेक्षाएं आपके मानसिक स्वास्थ्य के लिए सही नहीं है. अपनी कमियों को पहचाने और अगर उनसे छुटकारा नहीं पा सकते हैं तो इनसे प्यार करना सीखें. समाज की खूबसूरती को लेकर बनी बनाई धाऱणा में Fit होने के बजाए अपना खुद का एक्स फ़ैक्टर ढूंढने की कोशिश करें.

चूंकि आपकी तस्वीरें अच्छी नहीं आती इसका मतलब ये नहीं कि आप अपने आप से नाखुश रहने लगें. अपने आपको तनाव देना बंद कीजिए. आप सबसे बेहतरीन तभी दिखाई देते हैं जब आप ज़िंदगी मुस्कुराहटों के साथ बिता रहे होते हैं. ज़िंदगी कोई प्रतियोगिता नहीं है जिसमें आपको हर समय परफ़ेक्ट ही दिखना हो. आप जैसे हैं, वैसे ही बेहतरीन हैं. हां, बेहतर होने की कोशिशें करने में कोई हर्ज़ नहीं है लेकिन अपने आप से असंभव अपेक्षाएं हानिकारक है.

सारा की मुहिम का मकसद परेशानी से गुज़र रहे लोगों को आत्मिक संबल प्रदान करना था. लोग जितना जल्दी अपनी स्किन में कंफ़टर्बेल होंगे, उतना उनके लिए बेहतर होगा.

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