सभ्यता और कल्चर की बेड़ियों को तोड़कर, ये शख़्स जी रहा है प्रकृति की शरण में अपनी मन की ज़िंदगी

Vishu

अस्तित्ववादी संबंधी स्थितियों से गुज़रते समय कितनी ही बार ऐसा ख्याल आता है कि रोज़मर्रा की भागती-दौड़ती दुनिया से दूर एक शांत जगह ज़िंदगी बिताई जाए. एक ऐसी दुनिया में जहां सभ्यता और कल्चर की बेड़ियां न हो, जहां दुनिया की अपेक्षाएं न हों, जहां प्रकृति की शरण में साधारण लेकिन अद्भुत अनुभवों को जिया जा सके.

2007 में आई एक फ़िल्म Into The Wild का नायक भी एक ऐसी ही भौतिकवादी दुनिया के खिलाफ़ था. पूंजीवादी समाज को ठोकर मारते हुए उसने एक मिनिमिल लाइफ़स्टाइल अपनाई और दुनिया की कई ख़ूबसूरत जगहों की यात्रा की. ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी से पास आउट होने वाला ये शख़्स दूसरों के हिसाब से नहीं जिया बल्कि अपनी ज़िंदगी से Individualism की नई मिसाल पेश की.

Alphacoders

कॉरपोरेट कल्चर में ज़बरदस्त ट्रेंड हो रही इस तरह की लाइफ़स्टायल को आज दुनिया में कई लोग अपने-अपने तरीकों से अमल में ला रहे हैं.

अमेरिका के बेनेडिक्ट की लाइफ़स्टाइल भी कुछ ऐसी ही है. वे अपने पिता की बोट पर एक फ़िशिंग गाइड की तरह काम करते हैं. छह महीने काम करने के बाद बाकी छह महीने अपनी साइकिल पर दुनिया घूमते हैं. 35 साल के बेनेडिक्ट इस दौरान महज 10 डॉलर में अपना पूरा दिन बिता देते हैं.

बेनेडिक्ट ने बताया कि मैं कॉलेज गया, वहां डिग्री हासिल कर नौकरी की तलाश जारी की. नौकरी मिली फ़िर घर, स्टूडेंट लोन, शादी की ज़िम्मेदारी, कार और ये सिलसिला कभी ख़त्म होने वाला नहीं था. मुझे जल्दी ही एहसास हो गया कि मैं इस लाइफ़स्टाइल के लिए नहीं बना हूं.

मुझे ये कहने में कोई शर्म नहीं कि मुझे काम करना पसंद नहीं है. मैं 9 से 5 के जीवन के लिए अनफ़िट हूं. मुझे लगता है कि ये प्रकृति के खिलाफ़ है. पेपर वर्क, बिजली-पानी के बिल भरते हुए मुझे तनाव होता है. मैं अपनी ज़िंदगी के सबसे बेहतरीन साल कुछ ऐसा काम करते हुए नहीं बिताना चाहता, जो एकदम नीरस हो और जिसे मैं वैल्यू ही नहीं करता. हालांकि मुझे अपनी साइकिल चलाना और कैंपिंग करना बेहद रास आता है.

बेनेडिक्ट हालांकि ये नहीं जानते कि वे साल में कितने पैसा कमा लेते हैं, लेकिन उनका मानना है कि वे साल में 10,000 डॉलर्स में आराम से अपनी ज़िंदगी बिता सकते हैं. वे अपने ज़्यादातर कैश को प्लास्टिक बैग्स में रखते हैं और उनके पास बैंक अकाउंट भी केवल इसलिए है, ताकि वे ऑनलाइन साइट्स से अपनी साइकिल के पुर्ज़ों को बेच और खरीद सकें.

बेनेडिक्ट लगभग छह सालों में अपने काम और ज़िंदगी के बीच तालमेल बिठाने में कामयाब रहे हैं. उन्होंने कहा कि मैं भविष्य के बारे में ज्यादा नहीं सोचता. मैं हर दिन के हिसाब से अपनी ज़िंदगी की दिशा तय करता हूं. मेरा ज़िंदगी का कोई खास मकसद नहीं है. मैं बस अपनी साइकिल चलाते हुए रिलैक्स करना चाहता हूं. दुनिया भर की जगहें घूमना चाहता हूं और ज़िंदगी को बेहद गंभीरता से नहीं लेना चाहता.

कोई भी लोन, बिल या कार पेमेंट जैसी चीज़ों से दूर, बेनेडिक्ट केवल अपनी साइकिल से ही नॉर्वे से लेकर न्यूज़ीलैंड जैसी जगहें घूमने में सफ़ल रहे हैं. कभी-कभी वो अकेले निकल जाते हैं. तो कभी उनके कारवां में पुराने और नए दोस्त भी जुड़ते हैं.

अपनी ज़िंदगी को ऐडवेंचर बना देने वाले बेनेडिक्ट की यात्रा के अद्भुत लम्हों को उनके इंस्टाग्राम अकाउंट पर महसूस किया जा सकता है.

आपको ये भी पसंद आएगा
लॉन्च हो गया है दुनिया का सबसे महंगा ‘लिफ़ाफ़ा’, क़ीमत जानकर ‘मिडिल क्लास’ लोग पकड़ लेंगे माथा
बिरयानी, रसगुल्ला या डोसा नहीं, इस साल लोगों ने Swiggy से सबसे ज़्यादा ऑर्डर की ये डिश
Old Monk: जानिए इस ‘देसी रम’ की बोतल पर किसकी तस्वीर छपी होती है, दिलचस्प है कहानी
ये है दुनिया की सबसे महंगी धूल, करोड़ों रुपये है क़ीमत, सिर्फ़ तीन देशों के पास है इसका स्टॉक
Magic Moments: यूपी में बनी इस देसी वोदका की आज दुनिया है दीवानी, बन चुकी है वर्ल्ड की बेस्ट वोदका
सर्दियों में मिलते हैं ये 10 फूल, इन्हें खाया भी जा सकता है, जिनके हैं ज़बरदस्त फ़ायदे