तालिबान के कब्ज़े के बाद ‘ग्रेवयार्ड ऑफ़ एम्पायर्स’ अफ़ग़ानिस्तान रोज़ किसी न किसी मुद्दे को लेकर चर्चा में बना रहता है. इसे ग्रेवयार्ड ऑफ़ एम्पायर्स इसलिए कहा जाता है, क्योंकि इस जगह पर जिसने भी कब्ज़ा करना चाहा उसे मरना ही पड़ा है और उन सबकी कब्रें यहीं बनी हैं. 1979 से 1989 के बीच इस पर कब्ज़ा करने के चलते लगभग 10 हज़ार से भी ज़्यादा सोवियत सैनिकों की जान गई थी. इसके अलावा 2001 से 2021 के बीच भी कई अमेरिकी सैनिक अफ़ग़ानिस्तान में मारे गए थे.
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अफ़ग़ानिस्तान में ऐसी ही एक जगह है, जहां कई लोगों की जाने गई थीं. इसलिए इस जगह को हॉन्टेड कहा जाता है. ये एक मिलिट्री आउटपोस्ट है, जहां पर कई रहस्यमयी और अजीबो ग़रीब आवाजों के साथ-साथ कई अजीबो ग़रीब घटनाएं भी होती रहती हैं.
ऑपरेशन एनड्यूरिंग फ़्रीडम के पहले ये मिलिट्री आउटपोस्ट अफ़ग़ानिस्तान के हेलमंद प्रोविंस में स्थित था, तब इसे ‘द रॉक’ के नाम से जाना जाता था. जब अमेरिकी सेना अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करना चाह रही थी तब वो जगह तालिबानी आतंकियों के कब्ज़े में थी.
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इस पर स्थानीय लोगों का कहना है कि अमेरिका ने अफ़ग़ानिस्तान पर कब्ज़ा करने के लिए जब मिसाइल से हमला किया तो ये जगह पूरी तरह से तबाह हो गई थी. इस हमले में कई तालिबानी आतंकी ज़िंदा ही दफ़न हो गए थे. इस जगह पर जब मरे हुए आतंकियों की खोजबीन की गई तो यहां पर कई 100 साल पुरानी हड्डियां भी मिली थीं. ग़ौर करने वाली बात ये है कि सुरक्षा कारणों के चलते इस जगह की पूरी तरह से छानबीन नहीं हो पाई है.
इस हॉन्टेड आउटपोस्ट से पहले यहां पर एक क़िला था, जिसके बारे में यहां पर तैनात मरीन सैनिकों और ब्रिटिश सेना के लोगों का कहना था कि यहां पर स्टेटिक रेडियो की रहस्यमयी आवाज़ें सुनाई देती हैं और उन्होंने कई रहस्यमयी रौशनी भी देखी है.
इसके अलावा, कुछ सैनिकों का कहना था कि रात के समय में उनको रशियन लोगों की आवाज़ें सुनाई देती थीं और लगता था कि उन्हें कोई देख रहा है. साथ ही उनको सड़े मांस की बदबू भी आती थी. हालांकि, अफ़ग़ानिस्तान के इस मोस्ट हॉन्टेड मिलिट्री आउटपोस्ट का रहस्य अब तक रहस्य ही बना हुआ है.