दुर्गा पूजा के भोग और उसमें बनने वाले पकवानों के बारे में जान लो, उत्सव का मज़ा दोगुना हो जाएगा

J P Gupta

नवरात्रि के त्यौहार में दुर्गा पूजा की धूम होती है. ख़ासकर पश्चिम बंगाल की दुर्गा पूजा को देखने के लिए तो देश-विदेश से पर्यटक पहुंचते हैं. यहां पर दुर्गा पूजा के लिए ख़ास तरह का भोग तैयार किया जाता है. वहां पर दुर्गा पूजा के लिए बड़े-बड़े पंडाल लगाए जाते हैं. बंगाल में दुर्गा पूजा को ‘पूजो’ के नाम से भी जाना जाता है. इस उत्सव में भोग के अलावा कई तरह के अन्य पकवान भी बनाए जाते हैं. 

आइए जानते हैं उन व्यंजनों के बारे में…

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पश्चिम बंगाल में दुर्गा पूजा के उत्सव की शुरुआत महालया यानी नवरात्रि शुरू होने से एक दिन पहले ही जाती है. इस बार महालया 28 सितंबर को था और उसके अगले दिन नवरात्री का पहला दिन. इस बार का दुर्गा उत्सव पंचमी यानी 3 अक्टूबर से शुरू होकर दशमी यानी 8 अक्टूबर को समाप्त होगा.

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ऐसी मान्यता है कि इन 9 दिनों में मां दुर्गा धरती पर आती हैं और अपने भक्तों के घर जाती हैं. इस दौरान भक्त दुर्गा पूजा के लिए भोग और प्रसाद तैयार करते हैं. माता को भोग लगाने के बाद इसे पंडाल में मौजूद सभी लोगों में बांटा जाता है. मां दुर्गा के लिए इस मौके पर ख़ास तौर पर खिचड़ी, बैंगन भाजा, लबरा(मिक्सवेज), पयेश और रसगुल्ला शामिल होते हैं. 

खिचड़ी 

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इसे बासमती चावल और मूंग की दाल से बनाया जाता है. 

बैंगन भाजा 

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बैंगन से बने पकौड़ों को बैंगन भाजा कहा जाता है. 

लबरा 

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ये एक तरह की मिक्स वेज होती है, जिसे खिचड़ी के साथ खाने के लिए बनाया जाता है. 

पयेश 

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ये एक बंगाली मिठाई है. इसे चावल से बनाया जाता है. इसका स्वाद कुछ-कुछ खीर जैसा ही होता है. 

रसगुल्ला 

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इसके बारे में तो सभी जानते हैं. इस मिठाई को दूध को फ़ाड कर बनाया जाता है. 

दूर्गा पूजा से जुड़े अन्य पकवान 

भोग के अलावा भी लोग दुर्गा पूजा में अन्य प्रकार के व्यंजनों का लुत्फ़ उठाते हैं. पश्चिम बंगाल के दुर्गा पूजा के पंडालों में बंगाली स्वीट्स और स्नैक्स भी खाने को मिलते हैं. जैसे घुघनी, काठी रोल, फ़िश कटलेट, मुग़लई पराठा आदि. दुर्गा पूजा का मुख्य आकर्षण आनंद मेला होता है. ये पंचमी या फिर षष्ठी को मनाया जाता है.

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आनंद मेले में घर के बने पकवान पंडाल में रखे जाते हैं, जिन्हें पंडाल में आए लोग खा सकते हैं. जैसे बिरयानी, मुग़लई पराठा, पयेश, पतिशपता, कबाब, छोलर दाल लुची, आलू पोस्तो, मोछर चोप, काच्चा आमेर चटनी, कोलर बोरा आदि. दशमी के दिन शाम को लोग फिर इक्कठा होते हैं दुर्गा पूजा के आख़िरी भोज के लिए.

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शायद यही वजह है कि दुर्गा पूजा का मतलब बंगाल में कुछ लोगों के लिए एक तरह के फ़ूड फ़ेस्टिवल जैसा होता है. क्योंकि इस दौरान तरह-तरह के बंगाली फ़ूड जो खाने को मिलते हैं. यक़ीन न आए तो एक बार अपने किसी बंगाली फ़्रेंड से ज़रूर पूछ कर देखना, वो भी हमारी बात से सहमत होगा.

हैप्पी दुर्गा पूजा!

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