Helicopter Facts: हेलीकॉप्टर हो या हवाई जहाज़ दोनों का महत्व बचपन में बहुत था. आसमान में दोनों में से किसी को भी देख लो तो लगता था कि जन्नत देख ली. उसे तब तक देखते थे जब तक वो आंखों से ओझल नहीं हो जाता था. बड़े-बड़े पंखे, तेज़ सरसराती आवाज़ सुनाई दे जाए तो कहीं से भी दौड़ कर बाहर आकर आसमान देखने लगते थे. मगर तब बच्चे थे तब हेलीकॉप्टर हो या जहाज़ दोनों को बस देखते ही थे. जब बड़े हुए तब इसका मैकेनिज़्म की तरफ़ दिमाग़ गया. ये तो हम सब जानते हैं कि हेलीकॉप्टर अपने बड़े-बड़े पंखों से उड़ता है लेकिन कभी सोचा है कि इतना विशाल हेलीकॉप्टर आसमान में मुड़ता कैसे है?
नहीं सोचा तो कोई बात नहीं आइए जानते हैं कि वो क्या तकनीक है जिसके सहारे हेलीकॉप्टर उड़ते समय मुड़ता है और आगे-पीछे होता है? (Helicopter Facts).
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हवाई जहाज़ के विंग्स के समान ही हेलीकॉप्टर में रोटेटिंग विंग्स होते हैं, जिन्हें रोटर या ब्लेड कहा जाता है. इनका काम भी एक जैसा ही होता है. रोटर के घूमने से दबाव पड़ता है, जिसे लिफ़्ट कहते हैं. इसी की मदद से हेलीकाप्टर हवा में उड़ता है. ऊपर लगे रोटरों के अलावा, हेलीकॉप्टरों के पिछले हिस्से में भी एक रोटर होता है. पिछला रोटर अलग-अलग दिशाओं का सामना कर सकता है, जिससे हेलीकॉप्टर आगे-पीछे और दायें-बायें होता है.
हेलीकॉप्टर कई ऐसे काम कर सकता है जो हवाई जहाज़ नहीं कर सकता. उदाहरण के लिए, हेलीकॉप्टर सीधे ऊपर या नीचे जा सकते हैं और बिना हिले-डुले हवा में उड़ सकते हैं. वे पीछे और बग़ल में भी उड़ सकते हैं. बिना रनवे के भी उड़ान भर सकते हैं या उतर सकते हैं! इन्हीं क्षमताओं के चलते हेलीकॉप्टरों को कई साहसिक कामों या ख़ास मकसद के लिए इस्तेमाल किया जाता है. जैसे, सैनिकों को स्थानांतरित करने, आपूर्ति वितरित करने और उड़ान एंबुलेंस के रूप में सेवा करने के लिए भारतीय सेना में हेलीकॉप्टर का इस्तेमाल किया जाता है. इसके अलावा, हेलीकॉप्टर पहाड़ों और महासागरों जैसी जगहों में भी पहुंचाया जा सकता है.
भौतिक विज्ञान के अनुसार, हेलीकॉप्टर के उड़ान भरने में Bernoulli’s Principle लागू होता है. Bernoulli’s Principle में प्रेशर बढ़ता है तो स्पीड घटती है और स्पीड बढ़ती है तो प्रेशर घटता है. इस तरह स्पीड और प्रेशर एक दूसरे के विपरीत काम करते हैं और एक-दूसरे से संबंधित भी होते हैं.
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हेलीकॉप्टर के विंग्स का ऊपरी हिस्सा कर्व्ड होता है और निचला हिस्सा फ़्लैट होता है. इसकी वजह से ऊपर से गुज़रने वाली हवा की गति नीचे से गुज़रने वाली हवा की गति के मुकाबले ज़्यादा होती है. इससे ऊपर हवा का प्रेशर कम हो जाता है और नीचे हवा का प्रेशर बढ़ जाता है, जिससे विंग्स को ऊपर उठने में मदद मिलती है.
आसान शब्दों में जब हेलीकॉप्टर को बाएं तरफ मूव करना है तो दाएं तरफ़ के ब्लेड्स के एंगल को बढ़ा दिया जाएगा और जब दाएं तरफ़ मूव करना है तो बाएं तरफ़ के ब्लेड्स के एंगल को बढ़ा दिया जाएगा. इससे विपरीत दिशा में फ़ोर्स पैदा होता है जिससे हेलीकॉप्टर उसी दिशा में मूव करेगा जिस दिशा में आप कराना चाहते हैं. इसी तरह, आगे करते समय फ़्रंट रोटर ब्लेड को कम किया जाएगा और पीछे वाले रोटर ब्लेड्स के एंगल को बढ़ाया जाएगा.
आपको बता दें, हेलीकॉप्टर के पायलट के पास 5 बेसिक मूवमेंट और स्टीयरिंग कंट्रोल होते हैं, जिनमें दो हैंड लीवर्स जिन्हें कलेक्टिव और साइक्लिक पिच कहा जाता है एक थ्रोट और दो फ़ुट पेडल्स शामिल होते हैं. कलेक्टिव पिच कंट्रोल (Collective Pitch Control) पायलट की सीट के बाईं ओर होता है, जिसे वो अपने बाएं हाथ से ऑपरेट करता है. साइक्लिक पिच कंट्रोल (Cyclic Pitch Control) आमतौर पर पायलट के पैरों के बीच या कुछ मॉडलों में दो पायलट सीटों के बीच कॉकपिट फ़र्श से ऊपर की ओर होता है, जिसकी मदद से पायलट हेलीकॉप्टर को किसी भी दिशा में उड़ा पाता है, आगे, पीछे, बाएं और दाएं.